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    Devshayani Ekadashi 2025: त्रिपुष्कर योग समेत इन संयोग में मनाई जाएगी देवशयनी एकादशी, हर काम में मिलेगी सफलता

    सनातन शास्त्रों में निहित है कि देवशयनी एकादशी (Devshayani Ekadashi 2025) के दिन से भगवान विष्णु क्षीर सागर में विश्राम करने चले जाते हैं। इसके बाद देवउठनी एकादशी तिथि पर जागृत होते हैं। इस दिन से सभी प्रकार के मांगलिक काम किए जाते हैं। 

    By Pravin Kumar Edited By: Pravin Kumar Updated: Mon, 23 Jun 2025 06:16 PM (IST)
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    Devshayani Ekadashi 2025: देवशयनी एकादशी का धार्मिक महत्व

    धर्म डेस्क, नई दिल्ली। हर साल आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को देवशयनी एकादशी मनाई जाती है। इस शुभ अवसर पर जगत के पालनहार भगवान विष्णु और लक्ष्मी मां की पूजा की जाती है। साथ ही एकादशी का व्रत रखा जाता है। एकादशी व्रत करने से साधक की हर मनोकामना पूरी होती है। साथ ही घर में सुख, समृद्धि एवं शांति आती है।

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    ज्योतिषियों की मानें तो देवशयनी एकादशी पर त्रिपुष्कर योग समेत कई मंगलकारी योग बन रहे हैं। इन योग में लक्ष्मी नारायण जी की पूजा करने से साधक को मनोवांछित फल की प्राप्ति होगी। आइए, देवशयनी एकादशी के योग और मुहूर्त जानते हैं-

     

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    देवशयनी एकादशी शुभ मुहूर्त (Devshayani Ekadashi Shubh Muhurat)


    05 जुलाई को शाम 06 बजकर 58 मिनट पर आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि की शुरुआत होगी। वहीं, 06 जुलाई को शाम 09 बजकर 14 मिनट पर एकादशी तिथि समाप्त होगी। इस प्रकार 06 जुलाई को देवशयनी एकादशी मनाई जाएगी। वहीं, देवशयनी एकादशी का पारण 07 जुलाई को किया जाएगा।

     

    त्रिपुष्कर योग (Devshayani Ekadashi Shubh Muhurat)

     

    ज्योतिषियों की मानें तो आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि पर त्रिपुष्कर योग का निर्माण रात 09 बजकर 14 मिनट से हो रहा है। वहीं, रात 10 बजकर 42 मिनट पर समाप्त होगा। इसके साथ ही साध्य योग का संयोग रात 09 बजकर 27 मिनट तक है। इसके बाद शुभ योग बन रहा है। इन योग में लक्ष्मी नारायण जी की पूजा करने से साधक के सुखों में वृद्धि होगी।

    विष्णु मंत्र 

    1. शान्ताकारम् भुजगशयनम् पद्मनाभम् सुरेशम्
    विश्वाधारम् गगनसदृशम् मेघवर्णम् शुभाङ्गम्।
    लक्ष्मीकान्तम् कमलनयनम् योगिभिर्ध्यानगम्यम्
    वन्दे विष्णुम् भवभयहरम् सर्वलोकैकनाथम्॥

    2. मङ्गलम् भगवान विष्णुः, मङ्गलम् गरुडध्वजः।
    मङ्गलम् पुण्डरी काक्षः, मङ्गलाय तनो हरिः॥

    3. दन्ताभये चक्र दरो दधानं, कराग्रगस्वर्णघटं त्रिनेत्रम्।
    धृताब्जया लिंगितमब्धिपुत्रया, लक्ष्मी गणेशं कनकाभमीडे।।

    4. ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद
    ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्मयै नमः॥

    5. ॐ वासुदेवाय विघ्माहे वैधयाराजाया धीमहि तन्नो धन्वन्तरी प्रचोदयात् ||
    ॐ तत्पुरुषाय विद्‍महे अमृता कलसा हस्थाया धीमहि तन्नो धन्वन्तरी प्रचोदयात् ||

     

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    अस्वीकरण: इस लेख में बताए गए उपाय/लाभ/सलाह और कथन केवल सामान्य सूचना के लिए हैं। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया यहां इस लेख फीचर में लिखी गई बातों का समर्थन नहीं करता है। इस लेख में निहित जानकारी विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों/दंतकथाओं से संग्रहित की गई हैं। पाठकों से अनुरोध है कि लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया अंधविश्वास के खिलाफ है।