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Gayatri Jayanti 2023: पाना चाहते हैं जीवन में सुख और समृद्धि, तो पूजा के समय आज जरूर करें ये स्तुति

Gayatri Jayanti 2023 धार्मिक मान्यता है कि गायत्री जयंती पर पूजा-पाठ करने से साधक पर परम पिता परमेश्वर की कृपा बरसती है। साथ ही व्यक्ति के जीवन में व्याप्त समस्त दुखों का नाश होता है। अतः साधक श्रद्धा भाव से गायत्री माता की पूजा उपासना करते हैं।

By Pravin KumarEdited By: Pravin KumarPublished: Sun, 21 May 2023 09:00 AM (IST)Updated: Wed, 31 May 2023 09:27 AM (IST)
Gayatri Jayanti 2023: पाना चाहते हैं जीवन में सुख और समृद्धि, तो पूजा के समय आज जरूर करें ये स्तुति

नई दिल्ली, अध्यात्म डेस्क | Gayatri Jayanti 2023: हिन्दू पंचांग के अनुसार आज गायत्री जयंती है। यह पर्व हर वर्ष ज्येष्ठ महीने में शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को मनाई जाती है। अतः इस दिन निर्जला एकादशी भी है। ज्येष्ठ महीने में शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को माता गायत्री की उत्पत्ति हुई है। धार्मिक मान्यता है कि गायत्री जयंती पर पूजा-पाठ करने से साधक पर परम पिता परमेश्वर की कृपा बरसती है। साथ ही व्यक्ति के जीवन में व्याप्त समस्त दुखों का नाश होता है। अतः साधक श्रद्धा भाव से एकादशी के दिन जगत के पालनहार भगवान विष्णु संग गायत्री माता की पूजा उपासना करते हैं। अगर आप भी माता गायत्री का आशीर्वाद पाना चाहते हैं, तो एकादशी तिथि को ये स्तुति जरूर करें-

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श्री गायत्री स्तोत्रम् ||

नमस्ते देवि गायत्रि सावित्रि त्रिपदेऽक्षरे।

अजरे अमरे मातस्त्राहि मां भवसागरात्॥

नमस्ते सूर्यसंकाशे सूर्यसावित्रि कोमले।

ब्रह्मविद्ये महाविद्ये वेदमातर्नमोस्तु ते ॥

अनन्तकोटिब्रह्माण्डव्यापिनि ब्रह्मचारिणि।

नित्यानन्दे महामाये परेशानि नमोस्तु ते॥

त्वं ब्रह्मा त्वं हरिः साक्षाद्रुद्रस्त्वमिन्द्रदेवता।

मित्रस्त्वं वरुणस्त्वं च त्वमग्निरश्विनौ भगः॥

पूषार्यमा मरुत्वांश्च ऋषयोऽपि मुनीश्वराः ।

पितरो नागयक्षाश्च गंधर्वाप्सरसां गणाः॥

रक्षोभूतपिशाचाश्च त्वमेव परमेश्वरि।

ऋग्यजुस्सामवेदाश्च अथर्वाङ्गिरसानि च॥

त्वमेव पञ्चभूतानि तत्त्वानि जगदीश्वरि।

ब्राह्मी सरस्वती सन्ध्या तुरीया त्वं महेश्वरि॥

त्वमेव सर्वशास्त्राणि त्वमेव सर्वसंहिताः।

पुराणानि च मन्त्राणि महागम मतानि च ॥

तत्सद्ब्रह्मस्वरूपा त्वं कंचित्सदसदात्मिका।

परात्परेशि गायत्रि नमस्ते मातरंबिके ॥

चन्द्रे कलात्मिके नित्ये कालरात्रि स्वधे स्वरे।

स्वाहाकारेऽग्निवक्त्रे त्वां नमामि जगदीश्वरि॥

नमो नमस्ते गायत्रि सावित्रि त्वां नमाम्यहम्।

सरस्वति नमस्तुभ्यं तुरीये ब्रह्मरूपिणि॥

अपराधसहस्राणि त्वसत्कर्मशतानि च।

मत्तो जातानि देवेशि त्वं क्षमस्व दिने दिने॥

॥ इति वसिष्ठसंहितायां गायत्रीस्तोत्रं संपूर्णम् ॥

श्री गायत्री अष्टकम ||

विश्वामित्रपःफलां प्रियतरां विप्रालिसंसेवितां,

नित्यानित्यविवेकदां स्मितमुखीं खण्डेन्दुभूषोज्ज्वलाम् ।

ताम्बूलारुणभासमानवदनां मार्ताण्डमध्यस्थितां,

गायत्रीं हरिवल्लभां त्रिणयनां ध्यायामि पञ्चाननाम् ॥

जातीपङ्कजकेतकीकुवलयैः संपूजिताङ्घ्रिद्वयां,

तत्त्वार्थात्मिकवर्णपङ्क्तिसहितां तत्त्वार्थबुद्धिप्रदाम्।

प्राणायामपरायणैर्बुधजनैः संसेव्यमानां शिवां,

गायत्रीं हरिवल्लभां त्रिणयनां ध्यायामि पञ्चाननाम् ॥

मञ्जीरध्वनिभिः समस्तजगतां मञ्जुत्वसंवर्धनीं,

विप्रप्रेङ्खितवारिवारितमहारक्षोगणां मृण्मयीम् ।

जप्तुः पापहरां जपासुमनिभां हंसेन संशोभितां,

गायत्रीं हरिवल्लभां त्रिणयनां ध्यायामि पञ्चाननाम्॥

काञ्चीचेलविभूषितां शिवमयीं मालार्धमालादिकान्,

बिभ्राणां परमेश्वरीं शरणदां मोहान्धबुद्धिच्छिदाम्।

भूरादित्रिपुरां त्रिलोकजननीमध्यात्मशाखानुतां,

गायत्रीं हरिवल्लभां त्रिणयनां ध्यायामि पञ्चाननाम्॥

ध्यातुर्गर्भकृशानुतापहरणां सामात्मिकां सामगां,

सायंकालसुसेवितां स्वरमयीं दूर्वादलश्यामलाम् ।

मातुर्दास्यविलोचनैकमतिमत्खेटीन्द्रसंराजितां,

गायत्रीं हरिवल्लभां त्रिणयनां ध्यायामि पञ्चाननाम्॥

संध्यारागविचित्रवस्त्रविलसद्विप्रोत्तमैः सेवितां,

ताराहीरसुमालिकां सुविलसद्रत्नेन्दुकुम्भान्तराम् ।

राकाचन्द्रमुखीं रमापतिनुतां शङ्खादिभास्वत्करां,

गायत्रीं हरिवल्लभां त्रिणयनां ध्यायामि पञ्चाननाम् ॥

वेणीभूशितमालकध्वनिकरैर्भृङ्गैः सदा शोभितां,

तत्त्वज्ञानरसायनज्ञरसनासौधभ्रमद्भ्रामरीम् ।

नासालंकृतमौक्तिकेन्दुकिरणैः सायंतमश्छेदिनीं,

गायत्रीं हरिवल्लभां त्रिणयनां ध्यायामि पञ्चाननाम्॥

पादाब्जान्तररेणुकुङ्कुमलसत्फालद्युरामावृतां,

रम्भानाट्यविलोकनैकरसिकां वेदान्तबुद्धिप्रदाम् ।

वीणावेणुमृदङ्गकाहलरवान् देवैः कृताञ्छृण्वतीं,

गायत्रीं हरिवल्लभां त्रिणयनां ध्यायामि पञ्चाननाम्॥

हत्यापानसुवर्णतस्करमहागुर्वङ्गनासंगमान्,

दोषाञ्छैलसमान् पुरंदरसमाः संच्छिद्य सूर्योपमाः ।

गायत्रीं श्रुतिमातुरेकमनसा संध्यासु ये भूसुरा,

जप्त्वा यान्ति परां गतिं मनुमिमं देव्याः परं वैदिकाः ॥

॥ इति श्रीमत्परमहंसपरिव्राजकाचार्य श्रीमच्छंकराचार्यविरचितं गायत्र्यष्टकं संपूर्णम् ॥

डिसक्लेमर: इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त, इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।


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