Pradosh Vrat 2025: सोम प्रदोष व्रत पर चाहते हैं महादेव की कृपा, तो जरूर करें ये पाठ
प्रदोष व्रत हर महीने की त्रयोदशी तिथि को रखा जाता है। प्रदोष व्रत के दिन प्रदोष काल में शिव जी की पूजा-अर्चना करना शुभ माना जाता है। ऐसे में आप जून के आखिरी प्रदोष व्रत के दिन शिव जी की कृपा प्राप्ति के लिए इस स्तोत्र का पाठ कर सकते हैं।

धर्म डेस्क, नई दिल्ली। हर महीने की कृष्ण और शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि पर प्रदोष व्रत किया जाता है। प्रदोष व्रत के दिन भगवान शिव और पार्वती का पूजन करने से साधक को शुभ परिणाम मिलने लगते हैं। साथ ही जीवन में सुख-समृद्धि का आगमन होता है। इस दिन पूजा के दौरान आप शिव पंचाक्षर स्तोत्र का पाठ कर सकते हैं।
प्रदोष व्रत का पूजा मुहूर्त
आषाढ़ माह के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि की शुरुआत 22 जून को रात 9 बजकर 51 मिनट पर हो रहा है। वहीं इस तिथि का समापन 23 जून को शाम 6 बजकर 39 मिनट होगा। ऐसे में प्रदोष व्रत सोमवार 23 जून को किया जाएगा। इस दिन शिव जी की पूजा का मुहूर्त कुछ इस प्रकार रहेगा -
प्रदोष व्रत की पूजा का मुहूर्त - शाम 8 बजे से रात 10 बजकर 3 मिनट तक
॥ श्रीशिवपञ्चाक्षरस्तोत्रम् ॥
नागेन्द्रहाराय त्रिलोचनाय,
भस्माङ्गरागाय महेश्वराय ।
नित्याय शुद्धाय दिगम्बराय,
तस्मै न काराय नमः शिवाय ॥१॥
मन्दाकिनी सलिलचन्दन चर्चिताय,
नन्दीश्वर प्रमथनाथ महेश्वराय ।
मन्दारपुष्प बहुपुष्प सुपूजिताय,
तस्मै म काराय नमः शिवाय ॥२॥
शिवाय गौरीवदनाब्जवृन्द,
सूर्याय दक्षाध्वरनाशकाय ।
श्रीनीलकण्ठाय वृषध्वजाय,
तस्मै शि काराय नमः शिवाय ॥३॥
शिवपञ्चाक्षर स्तोत्र के रचयिता आदि गुरु शंकराचार्य हैं, जिन्हें शिव जी के परम भक्त के रूप में जाना जाता है। शिवपञ्चाक्षर स्तोत्र असल में पंचाक्षरी मन्त्र नमः शिवाय पर आधारित है। ऐसे में अगर प्रदोष व्रत की पूजा में आज इस स्तोत्र का पाठ करते हैं, तो इससे आपको महादेव की विशेष कृपा मिल सकती है।
वसिष्ठकुम्भोद्भवगौतमार्य,
मुनीन्द्रदेवार्चितशेखराय।
चन्द्रार्क वैश्वानरलोचनाय,
तस्मै व काराय नमः शिवाय ॥४॥
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यक्षस्वरूपाय जटाधराय,
पिनाकहस्ताय सनातनाय ।
दिव्याय देवाय दिगम्बराय,
तस्मै य काराय नमः शिवाय ॥५॥
पञ्चाक्षरमिदं पुण्यं यः पठेच्छिवसन्निधौ ।
शिवलोकमवाप्नोति शिवेन सह मोदते ॥
(Picture Credit: Freepik) (AI Image)
शिव जी के मंत्र
1. ॐ नमः शिवाय
2. ॐ नमो भगवते रूद्राय
3. ॐ तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय धीमहि तन्नो रुद्रः प्रचोदयात
4. ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्
उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात्
5. कर्पूरगौरं करुणावतारं
संसारसारम् भुजगेन्द्रहारम् ।
सदावसन्तं हृदयारविन्दे
भवं भवानीसहितं नमामि ॥
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