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    Masik Krishna Janmashtami पर ऐसे करें कृष्ण चालीसा का पाठ, कष्ट होंगे दूर, वैवाहिक जीवन होगा सुखी

    Updated: Fri, 17 Jan 2025 05:14 PM (IST)

    धार्मिक मान्यता के अनुसार भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि पर भगवान श्रीकृष्ण का अवतरण हुआ था। इसलिए हर महीने इस तिथि को मासिक कृष्ण जन्माष्टमी (Masik Krishna Janmashtami 2025) के रूप में मनाया जाता है। इस दिन भगवान श्रीकृष्ण की विशेष पूजा-अर्चना करने का विधान है। मान्यता है की उपासना करने से सफलता के नए रास्ते खुलते हैं।

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    कृष्ण चालीसा के पाठ से प्रसन्न होंगे लड्डू गोपाल

    धर्म डेस्क, नई दिल्ली। पंचांग के अनुसार, माघ माह में मासिक कृष्ण जन्माष्टमी (Masik Krishna Janmashtami 2025) 21 जनवरी को है। इस शुभ मौके पर भगवान श्रीकृष्ण और राधा रानी की विधिपूर्वक पूजा-अर्चना की जाती है। साथ ही शुभ फल पाने के लिए व्रत भी किया जाता है।

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    इस दिन पूजा के दौरान कृष्ण चालीसा का पाठ जरूर करना चाहिए। इसका पाठ करने से घर में खुशियों का आगमन होता है और वैवाहिक जीवन सुखी होता है। साथ ही सभी कष्ट दूर होते हैं।

    ऐसे करें कृष्ण चालीसा का पाठ

    • मासिक कृष्ण जन्माष्टमी के दिन सुबह जल्दी में उठें।
    • स्नान करने के बाद पीले कपड़े पहनें।
    • मंदिर की सफाई करने के बाद पूजा की शुरुआत करें।
    • देसी घी का दीपक जलाकर श्रीकृष्ण की आरती करें।
    • विधिपूर्वक कृष्ण चालीसा का पाठ करें।
    • कान्हा जी को माखन-मिश्री, खीर, पंजीरी का भोग लगाएं।
    • आखिरी जीवन में सुख-शांति की प्राप्ति के लिए कामना करें।
    • लोगों में प्रसाद बाटें।

    इन बातों का रखेंध्यान

    मासिक कृष्ण जन्माष्टमी की पूजा के दौरान किसी के बारे में गलत न सोचें। साथ ही किसी से वाद-विवाद न करें। ऐसा करने से पूजा का पूरा फल नहीं मिलेगा और कृष्ण जी नाराज हो सकते हैं।

    ।।कृष्ण चालीसा का पाठ।।

    ॥ दोहा ॥

    बंशी शोभित कर मधुर,नील जलद तन श्याम।

    अरुण अधर जनु बिम्बा फल,पिताम्बर शुभ साज॥

    जय मनमोहन मदन छवि,कृष्णचन्द्र महाराज।

    करहु कृपा हे रवि तनय,राखहु जन की लाज॥

    ॥ चौपाई ॥

    जय यदुनन्दन जय जगवन्दन।

    जय वसुदेव देवकी नन्दन॥

    जय यशुदा सुत नन्द दुलारे।

    जय प्रभु भक्तन के दृग तारे॥

    जय नट-नागर नाग नथैया।

    कृष्ण कन्हैया धेनु चरैया॥

    पुनि नख पर प्रभु गिरिवर धारो।

    आओ दीनन कष्ट निवारो॥

    वंशी मधुर अधर धरी तेरी।

    होवे पूर्ण मनोरथ मेरो॥

    आओ हरि पुनि माखन चाखो।

    आज लाज भारत की राखो॥

    गोल कपोल, चिबुक अरुणारे।

    मृदु मुस्कान मोहिनी डारे॥

    रंजित राजिव नयन विशाला।

    यह भी पढ़ें: Masik Krishna Janmashtami 2025: साल की पहली मासिक जन्माष्टमी पर इस तरह करें लड्डू गोपाल की पूजा

    मोर मुकुट वैजयंती माला॥

    कुण्डल श्रवण पीतपट आछे।

    कटि किंकणी काछन काछे॥

    नील जलज सुन्दर तनु सोहे।

    छवि लखि, सुर नर मुनिमन मोहे॥

    मस्तक तिलक, अलक घुंघराले।

    आओ कृष्ण बाँसुरी वाले॥

    करि पय पान, पुतनहि तारयो।

    अका बका कागासुर मारयो॥

    मधुवन जलत अग्नि जब ज्वाला।

    भै शीतल, लखितहिं नन्दलाला॥

    सुरपति जब ब्रज चढ़यो रिसाई।

    मसूर धार वारि वर्षाई॥

    लगत-लगत ब्रज चहन बहायो।

    गोवर्धन नखधारि बचायो॥

    लखि यसुदा मन भ्रम अधिकाई।

    मुख महं चौदह भुवन दिखाई॥

    दुष्ट कंस अति उधम मचायो।

    कोटि कमल जब फूल मंगायो॥

    नाथि कालियहिं तब तुम लीन्हें।

    चरणचिन्ह दै निर्भय किन्हें॥

    करि गोपिन संग रास विलासा।

    सबकी पूरण करी अभिलाषा॥

    केतिक महा असुर संहारयो।

    कंसहि केस पकड़ि दै मारयो॥

    मात-पिता की बन्दि छुड़ाई।

    उग्रसेन कहं राज दिलाई॥

    महि से मृतक छहों सुत लायो।

    मातु देवकी शोक मिटायो॥

    भौमासुर मुर दैत्य संहारी।

    लाये षट दश सहसकुमारी॥

    दै भिन्हीं तृण चीर सहारा।

    जरासिंधु राक्षस कहं मारा॥

    असुर बकासुर आदिक मारयो।

    भक्तन के तब कष्ट निवारियो॥

    दीन सुदामा के दुःख टारयो।

    तंदुल तीन मूंठ मुख डारयो॥

    प्रेम के साग विदुर घर मांगे।

    दुर्योधन के मेवा त्यागे॥

    लखि प्रेम की महिमा भारी।

    ऐसे श्याम दीन हितकारी॥

    भारत के पारथ रथ हांके।

    लिए चक्र कर नहिं बल ताके॥

    निज गीता के ज्ञान सुनाये।

    भक्तन ह्रदय सुधा वर्षाये॥

    मीरा थी ऐसी मतवाली।

    विष पी गई बजाकर ताली॥

    राना भेजा सांप पिटारी।

    शालिग्राम बने बनवारी॥

    निज माया तुम विधिहिं दिखायो।

    उर ते संशय सकल मिटायो॥

    तब शत निन्दा करी तत्काला।

    जीवन मुक्त भयो शिशुपाला॥

    जबहिं द्रौपदी टेर लगाई।

    दीनानाथ लाज अब जाई॥

    तुरतहिं वसन बने नन्दलाला।

    बढ़े चीर भै अरि मुँह काला॥

    अस नाथ के नाथ कन्हैया।

    डूबत भंवर बचावत नैया॥

    सुन्दरदास आस उर धारी।

    दयादृष्टि कीजै बनवारी॥

    नाथ सकल मम कुमति निवारो।

    क्षमहु बेगि अपराध हमारो॥

    खोलो पट अब दर्शन दीजै।

    बोलो कृष्ण कन्हैया की जै॥

    ॥ दोहा ॥

    यह चालीसा कृष्ण का,पाठ करै उर धारि।

    अष्ट सिद्धि नवनिधि फल,लहै पदारथ चारि॥

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