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    Chaitra Purnima 2025: इस चालीसा के बिना अधूरी है चैत्र पूर्णिमा की पूजा, खुशियों से भर जाएगा जीवन

    वैदिक पंचांग के अनुसार चैत्र माह में 12 अप्रैल को पूर्णिमा का पर्व मनाया जाएगा। इसी दिन हनुमान जन्मोत्सव ( Hanuman Janmotsav 2025) भी है। चैत्र पूर्णिमा (Chaitra Purnima 2025) के दिन पवित्र नदी में स्नान और दान करना शुभ माना जाता है। इस दिन विधिपूर्वक व्रत भी किया जाता है। इससे साधक को जीवन में सभी सुखों की प्राप्ति होती है।

    By Kaushik Sharma Edited By: Kaushik Sharma Updated: Mon, 07 Apr 2025 04:25 PM (IST)
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    Chaitra Purnima 2025: चैत्र पूर्णिमा पर क्या दान करें? (Pic Credit- Freepik)

    धर्म डेस्क, नई दिल्ली। हर महीने की आखिरी तिथि पर पूर्णिमा का त्योहार मनाया जाता है। इस तिथि को भगवान विष्णु और धन की देवी मां लक्ष्मी की कृपा प्राप्त करने के लिए शुभ माना जाता है। धार्मिक मान्यता है कि चैत्र पूर्णिमा (Chaitra Purnima 2025) पर भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी की पूजा करने से सुख-समृद्धि में वृद्धि होती है। साथ ही जीवन के संकटों से छुटकारा मिलता है।

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    यदि आप भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी का आशीर्वाद प्राप्त करना चाहता हैं, तो चैत्र पूर्णिमा के दिन श्रीहरि की पूजा करें और विधिपूर्वक विष्णु चालीसा का पाठ करें। मान्यता के अनुसार, विष्णु चालीसा का पाठ करने से जीवन में खुशियों का आगमन होता है और सभी डर से छुटकारा मितला है। आइए पढ़ते हैं विष्णु चालीसा

    करें इन चीजों का दान

    चैत्र पूर्णिमा के दिन पूजा करने के बाद वस्त्र, जल, अन्न और धन का करने का विशेष महत्व है। ऐसी मान्यता है कि चैत्र पूर्णिमा के दिन इन चीजों का दान करने से धन लाभ के योग बनते हैं। साथ ही कारोबार में वृद्धि होती है।

    ।।विष्णु चालीसा का पाठ।।

    ''दोहा''

    विष्णु सुनिए विनय सेवक की चितलाय ।

    कीरत कुछ वर्णन करूं दीजै ज्ञान बताय ॥

    नमो विष्णु भगवान खरारी, कष्ट नशावन अखिल बिहारी ।

    प्रबल जगत में शक्ति तुम्हारी, त्रिभुवन फैल रही उजियारी ॥

    सुन्दर रूप मनोहर सूरत, सरल स्वभाव मोहनी मूरत ।

    तन पर पीताम्बर अति सोहत, बैजन्ती माला मन मोहत ॥

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    शंख चक्र कर गदा विराजे, देखत दैत्य असुर दल भाजे ।

    सत्य धर्म मद लोभ न गाजे, काम क्रोध मद लोभ न छाजे ॥

    सन्तभक्त सज्जन मनरंजन, दनुज असुर दुष्टन दल गंजन ।

    सुख उपजाय कष्ट सब भंजन, दोष मिटाय करत जन सज्जन ॥

    पाप काट भव सिन्धु उतारण, कष्ट नाशकर भक्त उबारण ।

    करत अनेक रूप प्रभु धारण, केवल आप भक्ति के कारण ॥

    धरणि धेनु बन तुमहिं पुकारा, तब तुम रूप राम का धारा ।

    भार उतार असुर दल मारा, रावण आदिक को संहारा ॥

    आप वाराह रूप बनाया, हिरण्याक्ष को मार गिराया ।

    धर मत्स्य तन सिन्धु बनाया, चौदह रतनन को निकलाया ॥

    अमिलख असुरन द्वन्द मचाया, रूप मोहनी आप दिखाया ।

    देवन को अमृत पान कराया, असुरन को छवि से बहलाया ॥

    कूर्म रूप धर सिन्धु मझाया, मन्द्राचल गिरि तुरत उठाया ।

    शंकर का तुम फन्द छुड़ाया, भस्मासुर को रूप दिखाया ॥

    वेदन को जब असुर डुबाया, कर प्रबन्ध उन्हें ढुढवाया ।

    मोहित बनकर खलहि नचाया, उसही कर से भस्म कराया ॥

    असुर जलन्धर अति बलदाई, शंकर से उन कीन्ह लड़ाई ।

    हार पार शिव सकल बनाई, कीन सती से छल खल जाई ॥

    सुमिरन कीन तुम्हें शिवरानी, बतलाई सब विपत कहानी ।

    तब तुम बने मुनीश्वर ज्ञानी, वृन्दा की सब सुरति भुलानी ॥

    देखत तीन दनुज शैतानी, वृन्दा आय तुम्हें लपटानी ।

    हो स्पर्श धर्म क्षति मानी, हना असुर उर शिव शैतानी ॥

    तुमने ध्रुव प्रहलाद उबारे, हिरणाकुश आदिक खल मारे ।

    गणिका और अजामिल तारे, बहुत भक्त भव सिन्धु उतारे ॥

    हरहु सकल संताप हमारे, कृपा करहु हरि सिरजन हारे ।

    देखहुं मैं निज दरश तुम्हारे, दीन बन्धु भक्तन हितकारे ॥

    चाहता आपका सेवक दर्शन, करहु दया अपनी मधुसूदन ।

    जानूं नहीं योग्य जब पूजन, होय यज्ञ स्तुति अनुमोदन ॥

    शीलदया सन्तोष सुलक्षण, विदित नहीं व्रतबोध विलक्षण ।

    करहुं आपका किस विधि पूजन, कुमति विलोक होत दुख भीषण ॥

    करहुं प्रणाम कौन विधिसुमिरण, कौन भांति मैं करहु समर्पण ।

    सुर मुनि करत सदा सेवकाई, हर्षित रहत परम गति पाई ॥

    दीन दुखिन पर सदा सहाई, निज जन जान लेव अपनाई ।

    पाप दोष संताप नशाओ, भव बन्धन से मुक्त कराओ ॥

    सुत सम्पति दे सुख उपजाओ, निज चरनन का दास बनाओ ।

    निगम सदा ये विनय सुनावै, पढ़ै सुनै सो जन सुख पावै ॥

    ॥ इति श्री विष्णु चालीसा ॥

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