Chaitra Purnima के दिन मां तुलसी को इन मंत्रों के जप से करें प्रसन्न, कर्ज की समस्या होगी दूर
सनातन धर्म में चैत्र पूर्णिमा (Chaitra purnima 2025) के पर्व का विशेष महत्व है। इस तिथि पर भक्त जगत के पालनहार भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की पूजा-अर्चना करते हैं। साथ ही पापों से छुटकारा पाने के लिए पवित्र नदी में स्नान करते हैं। इस दिन मां तुलसी की भी उपासना करनी चाहिए। मान्यता है कि मां तुलसी की पूजा करने से जीवन में शुभ परिणाम मिलते हैं।

धर्म डेस्क, नई दिल्ली। वैदिक पंचांग के अनुसार, चैत्र माह में पूर्णिमा का त्योहार 12 अप्रैल (Chaitra Purnima 2025 Date) को मनाया जाएग। इस दिन हनुमान जन्मोत्सव भी है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, चैत्र पूर्णिमा के दिन श्रीहरि और मां लक्ष्मी की विधिपूर्वक पूजा और व्रत करने से साधक को शुभ फल की प्राप्ति होती है। इस दिन मां तुलसी की पूजा करने का विधान है।
पूजा के समय मां तुलसी के मंत्रों का जप करें। ऐसा माना जाता है कि तुलसी मंत्र (Tulsi ke mantra) का जप करने से साधक पर मां तुलसी की कृपा बनी रहती है। साथ ही कर्ज की समस्या से छुटकारा मिलता है।
ऐसे करें मां तुलसी को प्रसन्न
अगर आप मां तुलसी की कृपा प्राप्त करना चाहते हैं, तो चैत्र पूर्णिमा के दिन तुलसी के पौधे में जल अर्पित करें। देसी घी का दीपक जलाकर आरती करें। मां तुलसी से जीवन में सुख-शांति की प्राप्ति के लिए कामना करें। मां तुलसी को लाल चुनरी अर्पित करें। मान्यता है कि इस उपाय को करने से भक्त को मां तुलसी की कृपा प्राप्त होती है और घर में सुख-शांति का वास होता है।
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तुलसी जी के मंत्र
महाप्रसाद जननी सर्व सौभाग्यवर्धिनी, आधि व्याधि हरा नित्यं तुलसी त्वं नमोस्तुते।।
तुलसी गायत्री
ॐ तुलसीदेव्यै च विद्महे, विष्णुप्रियायै च धीमहि, तन्नो वृन्दा प्रचोदयात् ।।
तुलसी स्तुति मंत्र
देवी त्वं निर्मिता पूर्वमर्चितासि मुनीश्वरैः
नमो नमस्ते तुलसी पापं हर हरिप्रिये।।
तुलसी श्रीर्महालक्ष्मीर्विद्याविद्या यशस्विनी।
धर्म्या धर्मानना देवी देवीदेवमन: प्रिया।।
लभते सुतरां भक्तिमन्ते विष्णुपदं लभेत्।
तुलसी भूर्महालक्ष्मी: पद्मिनी श्रीर्हरप्रिया।।
तुलसी नामाष्टक मंत्र
वृंदा वृंदावनी विश्वपूजिता विश्वपावनी।
पुष्पसारा नंदनीय तुलसी कृष्ण जीवनी।।
एतभामांष्टक चैव स्त्रोतं नामर्थं संयुतम।
य: पठेत तां च सम्पूज्य सौश्रमेघ फलंलमेता।।
तुलसी स्तुति
मनः प्रसादजननि सुखसौभाग्यदायिनि।
आधिव्याधिहरे देवि तुलसि त्वां नमाम्यहम्॥
यन्मूले सर्वतीर्थानि यन्मध्ये सर्वदेवताः।
यदग्रे सर्व वेदाश्च तुलसि त्वां नमाम्यहम्॥
अमृतां सर्वकल्याणीं शोकसन्तापनाशिनीम्।
आधिव्याधिहरीं नॄणां तुलसि त्वां नम्राम्यहम्॥
देवैस्त्चं निर्मिता पूर्वं अर्चितासि मुनीश्वरैः।
नमो नमस्ते तुलसि पापं हर हरिप्रिये॥
सौभाग्यं सन्ततिं देवि धनं धान्यं च सर्वदा।
आरोग्यं शोकशमनं कुरु मे माधवप्रिये॥
तुलसी पातु मां नित्यं सर्वापद्भयोऽपि सर्वदा।
कीर्तिताऽपि स्मृता वाऽपि पवित्रयति मानवम्॥
या दृष्टा निखिलाघसङ्घशमनी स्पृष्टा वपुःपावनी
रोगाणामभिवन्दिता निरसनी सिक्ताऽन्तकत्रासिनी।
प्रत्यासत्तिविधायिनी भगवतः कृष्णस्य संरोपिता
न्यस्ता तच्चरणे विमुक्तिफलदा तस्यै तुलस्यै नमः॥
॥ इति श्री तुलसीस्तुतिः ॥
वृंदा देवी-अष्टक मंत्र
गाङ्गेयचाम्पेयतडिद्विनिन्दिरोचिःप्रवाहस्नपितात्मवृन्दे ।
बन्धूकबन्धुद्युतिदिव्यवासोवृन्दे नुमस्ते चरणारविन्दम् ॥
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