गणेश जी को प्रसन्न करने के लिए आसान विधि से करें Akhurath Sankashti Chaturthi की पूजा
पौष माह में आने वाली संकष्टी चतुर्थी को अखुरथ संकष्टी चतुर्थी (Akhurath Sankashti Chaturthi 2024) के नाम से जाता है। यह इस साल की आखिरी संकष्टी चतुर्थी भी होने वाली है। साथ ही अखुरथ संकष्टी चतुर्थी बुधवार के दिन पड़ रही है जो विशेष लाभकारी रहने वाली है। ऐसे में चलिए पढ़ते हैं गणेश जी की सरल पूजा विधि और मंत्र।
धर्म डेस्क, नई दिल्ली। वैदिक पंचांग के अनुसार, हर माह की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि पर संकष्टी चतुर्थी का व्रत किए जाने का विधान है। इस तिथि पर भगवान गणेश के निमित्त पूजा-अर्चना व व्रत किया जाता है। ऐसी मान्यता है कि अगर आप इस दिन पर विधिवत रूप से बप्पा की पूजा व उपवास करते हैं, तो इससे साधक की सभी समस्याओं का निवारण होता है।
संकष्टी चतुर्थी शुभ मुहूर्त (Sankashti Chaturthi Shubh Muhurat)
पंचांग के अनुसार, पौष माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि 18 दिसंबर की सुबह 10 बजकर 06 मिनट पर शुरू हो रही है। वहीं चतुर्थी तिथि 19 दिसंबर को सुबह 10 बजकर 02 मिनट पर समाप्त होगी। ऐसे में उदया तिथि के अनुसार, अखुरथ संकष्टी चतुर्थी का व्रत बुधवार, 18 दिसंबर को किया जाएगा। साथ ही इस दिन चन्द्रोदय का समय इस प्रकार रहने वाला है -
संकष्टी चतुर्थी पर चन्द्रोदय - शाम 08 बजकर 27 मिनट पर
गणेश जी पूजा विधि (Akhuratha Sankashti Chaturthi Puja)
संकष्टी चतुर्थी के दिन सुबह जल्दी उठें और गणेश जी का ध्यान करते हुए व्रत का संकल्प लें। स्नान आदि से निवृत होने के बाद पूजा स्थल पर चौकी बिछाकर उसपर हरा साफ कपड़ा ढक दें। इसके बाद गणेश जी की मूर्ति या तस्वीर स्थापित करें और गणेश जी का जलाभिषेक करें।
उन्हें पीले रंग का चंदन लगाने के बाद फूल, फल, रोली अक्षत आदि अर्पित करें। इसी के साथ गणपति जी को 21 दूर्वा अर्पित करें आप गणेश जी को लड्डू, मोदक या फिर माल पुआ का भोग लगा सकते हैं। पूजा की समाप्ति के बाद संकष्टी चतुर्थी की व्रत कथा का पाठ करें और आरती करें। शाम के समय चंद्र देव को अर्घ्य देने के बाद अपने व्रत का पारण करें।
(Picture Credit: Freepik) (AI Image)
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करें इन मंत्रों का जप (Ganpati Mantra)
- ॐ गं गणपतये नमः
- गणपतिर्विघ्नराजो लम्बतुण्डो गजाननः।
- श्री वक्रतुण्ड महाकाय सूर्य कोटी समप्रभा निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्व-कार्येशु सर्वदा॥
- ॐ वक्रतुण्डैक दंष्ट्राय क्लीं ह्रीं श्रीं गं गणपते वर वरद सर्वजनं मे वशमानय स्वाहा
- ऊँ एकदन्ताय विहे वक्रतुण्डाय धीमहि तन्नो दन्तिः प्रचोदयात्।
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अस्वीकरण: इस लेख में बताए गए उपाय/लाभ/सलाह और कथन केवल सामान्य सूचना के लिए हैं। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया यहां इस लेख फीचर में लिखी गई बातों का समर्थन नहीं करता है। इस लेख में निहित जानकारी विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों/दंतकथाओं से संग्रहित की गई हैं। पाठकों से अनुरोध है कि लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया अंधविश्वास के खिलाफ है।
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