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    कांसुवा की जात, नौटी से शुरुआत

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    Updated: Thu, 07 Aug 2014 11:03 AM (IST)

    हिमालयी महाकुंभ श्री नंदा देवी राजजात की शुरुआत यूं तो नंदाधाम नौटी से मानी गई है, लेकिन सही मायने में यह निर्धारित तिथि से एक दिन पूर्व कांसुवा से शुरू हो चुकी होती है। इस दिन कांसुवा के राजकुंवर राज छंतोली व चौसिंग्या खाडू (मेंढा) लेकर नौटी पहुंचते हैं। नंदाधाम नौटी में भगो

    देहरादून, [दिनेश कुकरेती]। हिमालयी महाकुंभ श्री नंदा देवी राजजात की शुरुआत यूं तो नंदाधाम नौटी से मानी गई है, लेकिन सही मायने में यह निर्धारित तिथि से एक दिन पूर्व कांसुवा से शुरू हो चुकी होती है। इस दिन कांसुवा के राजकुंवर राज छंतोली व चौसिंग्या खाडू (मेंढा) लेकर नौटी पहुंचते हैं। नंदाधाम नौटी में भगोती नंदा की विधिवत पूजा-अर्चना के बाद से जात अगले दिन ईड़ाबधानी के लिए प्रस्थान करती है। परंपरा के अनुसार जात को फिर ईड़ाबधानी से नौटी लौटना पड़ता है। तब जाकर नौटी में स्थापित भगोती नंदा के यंत्र की परिक्रमा पूर्ण होती है और जात चल पड़ती है अपने अगले पड़ाव कांसुवा की ओर।

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    नंदा राजजात के 20 पड़ाव हैं, जिनमें वाण तक के 12 पड़ाव आबादी के बीच से गुजरते हैं। इन सभी पड़ावों पर सैकड़ों डोली-छंतोलियों का मिलन मुख्य जात से होता है। मिलन का अंतिम पड़ाव वाण है। इसके बाद जात एकरूप होकर निर्जन पड़ावों से होते हुए होमकुंड पहुंचती है। भगोती नंदा की मायके से ससुराल विदाई की यह परंपरा अपने आप में अनूठी है। इस अलौकिक दृश्य को अंतर्मन में सहेजकर रखना तो आसान है, लेकिन शब्दों में व्यक्त करना नहीं। प्रो. डीआर पुरोहित के अनुसार उत्तराखंड में नंदा दो अवतारों में वास करती है। यह अवतार हैं लोक देवी व शास्त्रीय देवी के। लोक देवी के रूप में नंदा पहाड़वासियों की धियाण (बहिन-बेटी) है, जबकि शास्त्रीय रूप में महिषमर्दिनी। लेकिन, जनमानस ने उसे धियाण के रूप में ही स्नेह मिला। इसी स्नेह की परिणति है 12 साल के अंतराल में होने वाली श्री नंदा देवी राजजात।

    राजछतोली का राजराजेश्वरी से मिलन

    नंदकेशरी में अद्भुत नजारा रहता है। यहां पर कांसुवा और नौटी की राजछतोली का मिलन कुरुड़ बधाण की नंदा राजराजेश्वरी से होता है। यहीं से राजजात का प्रारंभिक बिंदु शुरू होता है। यहां पर कुमाऊं की जात भी अपनी छंतोलियों के साथ शामिल होती है।

    वाण तक नंदा के दो पथ

    वाण राजजात का आखिरी गांव है। यहां से निर्जन पड़ाव आरंभ हो जाते हैं। पहला पथ कुरुड़ से आरंभ होता है और चरबंग, कुंडबगड़, धरगांव, फाली उस्तोली, सरपाणी, लाखी, भेंटी स्यारी, बंगाली बूंगा, डुंग्री, कैरा, मैना सुनाथराली, राडीबगड़, चेपड़ियूं, कोटि, नंदकेशरी, इच्छोली हाट, फल्दियागांव, कांडई, लब्बू, पिलखड़ा, ल्वाणी, बगरीगाड, मुंदोली, लोहाजंग, कार्चबगड़ होता हुआ वाण पहुंचता है। जबकि, दूसरा पथ कुरुड़ से आरंभ होकर धरगांव, कुमजुग, धरबगड़, लुणतरा, कांडा मल्ला, खुनाना, लामसोड़ा, लाटू मंदिर माणखी, चोपड़ाकोट, चारी कांडई, खलतरा, मोठा चाका, सेमा, बैराशकुंड, बैरो, इतमोली, मटई, दाणू मंदिर, पगना देवी मंदिर भौदार, चरबंग, ल्वाणी, सुंग, बोटाखला, रामणी आला, जोखना, कनोल होता हुआ वाण पहुंचता है। वाण में विभिन्न गांवों की छंतोलियां चार ताल व चार बुग्यालों को पार करके राजजात में शामिल होती हैं।

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    पंच केदार