Manikarnika Ghat: काशी में मृत्यु का होना क्यों माना जाता है मंगल? पढ़िए मणिकर्णिका घाट का रहस्य
उत्तर प्रदेश में काशी (Kashi) स्थित एक प्राचीन नगरी है जिसे वाराणसी के नाम से भी जाना जाता है। धार्मिक मान्यता के अनुसार इस नगरी के कण-कण में महादेव का वास माना जाता है। धार्मिक दृष्टि से इस नगरी का अधिक महत्व है। इस नगरी में किसी व्यक्ति की मृत्यु का होना मंगल माना जाता है। आइए जानते हैं इसके रहस्य के बारे में।

धर्म डेस्क, नई दिल्ली। काशी नगरी देवों के देव महादेव को प्रिय है। सनातन धर्म में इस नगरी का अधिक महत्व है। काशी में गंगा नदी के तट पर मणिकर्णिका घाट (Manikarnika Ghat) स्थित है। इसे मोक्षदायनी घाट और महाश्मशान नाम के नाम से भी जाना जाता है। यह काशी के प्रमुख गंगा घाटों में शामिल है। यह एक ऐसा घाट है, जहां हमेशा चिताएं जलती रहती हैं।
धार्मिक मान्यता के अनुसार, मणिकर्णिका घाट (Manikarnika Ghat) पर किसी व्यक्ति का अंतिम संस्कार करने से उसे जन्म और मृत्यु के चक्र से छुटकारा मिल सकता है। इस नगरी के बारे में काशी खंड में विस्तार से बताया गया है। काशी में किसी व्यक्ति की मृत्यु होना मंगल माना जाता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि काशी में मृत्यु होना मंगल क्यों माना जाता है? अगर नहीं पता, तो ऐसे में आइए जानते हैं इसके बारे में विस्तार से।
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(Pic Credit- Freepik)
काशी खंड में मिलता है इसका उल्लेख
मरणं मंगलं यत्र विभूतिश्च विभूषणम्
कौपीनं यत्र कौशेयं सा काशी केन मीयते।
काशी खंड के इस श्लोक में काशी नगरी के महत्व के बारे में बताया गया है। इस श्लोक का अर्थ यह है कि काशी में किसी मृत्यु होना मंगलकारी है। जो इस नगरी में अपने प्राण का त्याग करता है। उसे दुबारा से जन्म-मरण के चक्र से छुटकारा मिलता है।
त्वत्तीरे मरणं तु मङ्गलकरं देवैरपि श्लाध्यते
शक्रस्तं मनुजं सहस्रनयनैर्द्रष्टुं सदा तत्परः ।
आयान्तं सविता सहस्रकिरणैः प्रत्युग्दतोऽभूत्सदा
पुण्योऽसौ वृषगोऽथवा गरुडगः किं मन्दिरं यास्यति॥
काशी खंड के इस श्लोक के अनुसार, मर्णिकर्णिका घाट पर किसी की मृत्यु का होना शुभ होता है, जो अपने प्राण इस नगरी में त्याग देता है। उसे इंद्र देवता देखने के लिए अधिक व्याकुल रहते हैं। इसके अलावा उसकी आत्मा को सूर्य देव अपनी किरणों से स्वागत करते हैं।
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मर्णिकर्णिका घाट का रहस्य
पौराणिक कथा के अनुसार, मर्णिकर्णिका घाट को मां पार्वती का श्राप लगा था। इसी वजह इस घाट पर हमेशा चिता जलती रहती है। एक बार स्नान के दौरान मां पार्वती के कान की कान की बाली गिर गई थी, जिसे ढूंढ़ने के बाद भी नहीं मिली।
ऐसे में मां पार्वती को क्रोध आया और उन्होंने श्राप दिया कि अगर मेरी बाली नहीं मिलती है, तो यह स्थान हमेशा जलता रहेगा। धार्मिक मान्यता के अनुसार, तभी से मर्णिकर्णिका घाट पर चिताओं की अग्नि जलती रहती है।
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