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    ये हैं उत्तराखंड के मां दुर्गा के प्रसिद्ध मंदिर, Chaitra Navratri में जरूर बनाएं दर्शन का प्लान

    सनातन धर्म में चैत्र नवरात्र का पर्व मां दुर्गा के नौ रूपों की कृपा प्राप्त करने के लिए शुभ माना जाता है। इस दौरान देशभर के कई मंदिरों में भक्तों की खास भीड़ देखने को मिलती है। साथ ही भक्त मां दुर्गा के दर्शनों का लाभ उठाते हैं। ऐसे में आइए जानते हैं कि उत्तराखंड (Uttarakhand famous temples) में स्थित प्रसिद्ध मां दुर्गा के मंदिरों के बारे में।

    By Kaushik Sharma Edited By: Kaushik Sharma Updated: Tue, 01 Apr 2025 03:55 PM (IST)
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    उत्तराखंड में कौन-से मां दुर्गा के प्रसिद्ध मंदिर हैं?

    धर्म डेस्क, नई दिल्ली। उत्तराखंड को देवभूमि के नाम से जाना जाता है, क्योंकि यहां पर मां दुर्गा के कई प्रसिद्ध मंदिर स्थित हैं, जिनकी मान्यताएं दूर-दूर तक फैली हुई है और मंदिर किसी रहस्य या फिर अन्य कारण से प्रसिद्ध हैं। ऐसे में आइए विस्तार से जानते हैं कि उत्तराखंड के प्रसिद्ध (Uttarakhand famous temples) के मंदिरों के बारे में, जहां चैत्र नवरात्र (Chaitra Navratri 2025) में भक्त अधिक संख्या में पहुंचते हैं और दर्शन करने से शुभ फल की प्राप्ति होती है।

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    1. नैना देवी मंदिर (Naina Devi Temple)

    धार्मिक मान्यता के अनुसार, यहां पर माता सती के नेत्र गिरे थे। इसी वजह इस मंदिर का नाम नैना देवी पड़ा। ऐसी मान्यता है कि नैना देवी के दर्शन करने से भक्त की सभी मुरादें पूरी होती हैं। नैना देवी मंदिर पहाड़ी और प्राचीन भारतीय मंदिर शैली की झलक देखने को मिलती है। नैना देवी मंदिर उत्तराखंड के नैनीताल में है। इस मंदिर में नैना देवी की मूर्ति स्थापना वर्ष 1842 में की गई है।

    2. मनसा देवी मंदिर (Mansa Devi Temple)

    मनसा देवी मंदिर 51 शक्तिपीठ में शामिल है। यह मंदिर हरिद्वार में है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, इस मंदिर में दर्शन करने से भक्त की मनोकामनाएं पूरी होती हैं। इस मंदिर का निर्माण 1811 और 1815 के बीच हुआ था। यह मंदिर हरिद्वार में स्थित है। ऐसी मान्यता है कि यहां माता सती का मस्तिष्क गिरा था, जिसके बाद इसी जगह पर मनसा देवी मंदिर बनाया गया। इस मंदिर की वास्तुकला बेहद सरल देखने को मिलती है।

    3. सुरकंडा देवी मंदिर (Surkanda Devi Temple)

    सुरकंडा देवी मंदिर 51 शक्तिपीठों में शामिल है। यह मंदिर उत्तराखंड के टिहरी में स्थित है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, जहां माता सती का सिर गिरा था। उसी जगह पर सुरकंडा मंदिर को बनाया गया। इस मंदिर में देवी काली की मूर्ति गर्भगृह में स्थापित है। इस मंदिर में भक्तों को प्रसाद के रूप में रौंसली की पत्तियां दी जाती हैं। इस मंदिर की वास्तुकला बेहद आकर्षक है।

    यह भी पढ़ें: Chaitra Navratri 2025: चैत्र नवरात्र में मध्य प्रदेश के इन दिव्य देवी मंदिरों का करें दर्शन, जानें इनका महत्व

     

    4. चंडी देवी मंदिर (Chandi Devi Temple)

    चंडी देवी मंदिर हरिद्वार स्थित है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, मंदिर में चंडी देवी से वर प्राप्ति के लिए की गई कामना पूरी होती है। मान्यता है कि जहां पर चंडी देवी मंदिर है। इसी जगह पर चंडी देवी अवतरित हुईं थीं। मंदिर में पूजा और दर्शन करने से रोग और शत्रु से छुटकारा मिलता है। इस मंदिर का निर्माण कश्मीर के राजा सुच्चन सिंह वर्ष 1929 में हुआ था।

    (Pic Credit-AI)

    5. हाट कालिका मंदिर (Haat Kalika Temple)

    प्रसिद्ध शक्तिपीठ हाट कालिका मंदिर सरयू और रामगंगा नदी के मध्य स्थित गंगोलीहाट में 5580 फीट की ऊंचाई पर स्थित है। हाट कालिका मंदिर दुनियाभर में प्रसिद्ध है। इस मंदिर का महत्व बहुत बड़ा है। यहां शक्ति के रूप में देवी मां कालिका विराजमान हैं।

    मंदिर परिसर में प्रवेश करते ही साधक के जीवन में नई ऊर्जा का संचार होता है। मां काली की कृपा से साधक अध्यात्म के लिए प्रेरित होता है। गंगोलीहाट हल्द्वानी से 193 किमी और टनकपुर से 165 किमी की दूरी पर स्थित है। कुमाऊं रेजीमेंट के सैनिकों की देवी मां कालिका में अगाध श्रद्धा है।

    इतिहास के पन्नों को पलटने से पता चलता है कि छठी शताब्दी में आदिगुरु शंकराचार्य पशुपतिनाथ यात्रा पर आएं, तो गंगोलीहाट के पास घने देवदार के वृक्षों के बीच भंयकर अग्नि ज्वालाएं निकलने की सूचना मिली। जब शंकराचार्य दैवी जगदंबा की माया से मोहित होकर इस स्थान पर पहुंचे, तो गणेश मूति से आगे नहीं बढ़ पाए और उसी जगह पर अचेत हो गए।

    आदिगुरु शंकराचार्य प्यास से तड़पने लगे। तभी एक नन्ही बालिका उनके पास आई और उन्हें जल पिलाया। चेतन अवस्था में लौटने के बाद आदिगुरु शंकराचार्य ने तप साधना के बल पर देवी मां काली के दर्शन किए और महाकाली के रौद्र रूप को शांत करने के लिए स्तुति किया।

    द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान भारतीय सैनिकों का जहाज जब समुद्र में डूबने लगा, तो कुमाऊं के सैनिकों ने मां हाट कालिका के जयकारे लगाते हुए जहाज को बचा लेने की प्रार्थना की। चमत्कारिक ढंग से पानी का जहाज धीरे-धीरे समुद्र के किनारे पहुंच गया। तभी से कुमाऊं रेजीमेंट के प्रत्येक सैनिक का विश्वास और अधिक बढ़ गया। मंदिर के नवीकरण और भव्यता को बढ़ाने में कुमाऊं रेजीमेंट का विशेष सहयोग रहा है। कुमाऊं रेजीमेंट प्रतिवर्ष नवरात्र में मंदिर में पूजा अर्चना करती है।

    हाट कालिका मां प्रसन्न होने पर भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी करती हैं। मां कालिका पराविद्या, संसार बंधन और मोक्ष की देवी हैं। अपने भक्तों को मां काली मुक्ति और शक्ति प्रदान करती हैं। सालों भर रोजाना मंदिर में भक्तों की भीड़ रहती है। प्रतिदिन पूजा के समय मां को भोग लगाया जाता है। नवरात्र की अष्टमी तिथि पर मां काली की विशेष पूजा होती है।

    हाट कालिका की महिमा अपरंपार है। सच्चे मन से मां से विनती करने वालों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। देश के कोने-कोने और विदेश से बड़ी संख्या में श्रद्धालु मां के दर्शन और आशीर्वाद के लिए आते हें।

    (पुजारी दीप चंद्र पंत)  

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