Chaitra Navratri 2025: यूपी के इन मंदिरों में लगती है लंबी कतार, देवी के दर्शन से दूर होते हैं कष्ट
उत्तर प्रदेश अपने आध्यात्मिक और पौराणिक स्थलों को लेकर विश्वभर में प्रसिद्ध है। काशी इसका एक बेहतरीन उदाहरण है। यूपी में कई ऐसे मंदिर स्थित हैं जो विश्वभर में प्रसिद्ध हैं न सिर्फ वास्तुकला की दृष्टि से बल्कि अपने धार्मिक महत्व को लेकर भी। ऐसे में आज हम आपको उत्तर प्रदेश में स्थित मां दुर्गा के विभिन्न स्वरूपों को समर्पित मंदिरों के बारे में बताने जा रहे हैं।
धर्म डेस्क, नई दिल्ली। नवरात्र की पावन अवधि चल रही है, जो माता रानी की कृपा प्राप्ति हेतु बहुत ही शुभ मानी जाती है। भारत के साथ-साथ अन्य देशों में भी देवी को समर्पित कई ऐसे मंदिर हैं, जिनकी मान्यताएं दूर-दूर तक फैली हुई हैं। उत्तर प्रदेश में स्थित कई मंदिरों (devi temples in uttar pradesh) का इतिहास सालों पुराना है, जिन्हें लेकर पौराणिक कथाएं भी मिलती हैं।
1. अन्नपूर्णा मंदिर (Shree Annapurna Mandir)
काशी, जिसे भगवान शिव की नगरी के रूप में जाना जाता है, वहां देवी पार्वती के ही स्वरूप को समर्पित माता अन्नपूर्णा का मंदिर स्थित है। यह मंदिर काशी विश्वनाथ मंदिर से कुछ ही दूरी पर दशाश्वमेध मार्ग, विश्वनाथ गली में स्थित है। अन्नपूर्णा मंदिर का निर्माण मराठा “पेशवा बाजी राव” द्वारा 1729 ई. में करवाया गया था।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, माता के दरबार से मिले खजाने से श्रद्धालुओं के घर और अन्न भंडार हमेशा भरे रहते हैं। मंदिर की वास्तुकला की बात करें, तो यह मंदिर पारंपरिक भारतीय मंदिर वास्तुकला को दर्शाता है। इसी के साथ यह देश का इकलौता मंदिर है, जो श्री यंत्र के आकार में बना हुआ है।
2. मां विशालाक्षी मंदिर (Vishalakshi Temple)
वाराणसी में मणिकर्णिका घाट पर स्थित मां विशालाक्षी मंदिर भी 51 शक्तिपीठों में से एक है। मान्यताओं के अनुसार, इस स्थान पर देवी सती के कान की मणि गिरी थी। वहीं कुछ मान्यताओं के अनुसार यह भी माना जाता है कि इस स्थान पर माता की आंखें गिरी थीं।
साथ ही यह भी मान्यता है कि भगवान विश्वनाथ मां विशालाक्षी मंदिर में विश्राम करते हैं। मां विशालाक्षी मंदिर का इतिहास हजारों साल पुराना है। मौजूदा मंदिर का जीर्णोद्धार लगभग 1908 में करवाया किया गया था।
3. माता ललिता मंदिर (Lalita Devi Temple)
प्रयागराज के मीरापुर मोहल्ले में यमुना किनारे माता ललिता मंदिर स्थित है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, मां सती के हाथ की उंगली गिरी थी। इसलिए यह मंदिर भी 51 शक्तिपीठों में महत्वपूर्ण स्थान रखता है। मान्यता है कि पवित्र संगम में स्नान के बाद इस शक्तिपीठ में दर्शन और पूजन करने से भक्तों की मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
इस प्राचीन मंदिर में ललिता देवी के 3 स्वरूपों यानी भगवती दुर्गा महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती रूप के दर्शन होते हैं। इस मंदिर में मां ललिता देवी की श्रीयंत्रों से पूजा की जाती है। इसी के साथ मंदिर में दाईं ओर हनुमान जी, श्रीराम, लक्ष्मण व माता सीता तथा बाईं तरफ नवग्रह की मूर्तियां हैं। सात ही राधा-कृष्ण की मूर्तियां भी इस मंदिर में विराजमान हैं।
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4. कात्यायनी शक्ति पीठ (Katyayani Shakti Peeth)
वृंदावन के राधाबाग के पास बना मां कात्यायनी मंदिर इस क्षेत्र में स्थित सबसे पुराने मंदिरों में से एक है। यह मंदिर देवी पार्वती को समर्पित है, जो कात्यायनी रूप में हैं। यह मंदिर में 51 शक्तिपीठों में शामिल है, क्योंकि धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस स्थान पर देवी सती के केश (बाल) गिरे थे।
माना जाता है कि इस मंदिर का निर्माण 1923 में स्वामी केशवानंद महाराज ने करवाया था। पूरा मंदिर सफेद संगमरमर से बना है और इसके खंभे काले पत्थर से बने हुए हैं, जो इसे आकर्षक बनाते हैं। इसी के साथ मुख्य प्रांगण के रास्ते में दो शेरों की मूर्तियां बनी हुई हैं।
5. मां विंध्यवासिनी धाम (Maa Vindhyavasini Temple)
उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर में गंगा नदी के किनारे माता विंध्यवासिनी का मंदिर स्थापित है। देवी के इस स्वरूप को महामाया या योगमाया का स्वरूप माना जाता है। माता त्रिकोण यंत्र पर स्थित तीन रूपों को धारण करती हैं अर्थात महालक्ष्मी, महाकाली तथा महासरस्वती का रूप। मान्यताओं के अनुसार इस मंदिर का अस्तित्व सृष्टि आरंभ होने से पूर्व और प्रलय के बाद भी बना रहेगा। रामायण में वर्णिक कथा के अनुसार, प्रभु श्रीराम ने लंका से लौटते समय मां विंध्यवासिनी के दर्शन किए थे।
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