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    Mata Hateshwari Mandir: इस मंदिर में बांधकर रखा गया है कलश, बड़ी ही अद्भुत है इसकी वजह

    Updated: Tue, 25 Mar 2025 02:49 PM (IST)

    भारत में ऐसे कई मंदिर मौजूद हैं जिनकी मान्यताओं के आधार पर दूर-दूर से लोग दर्शन के लिए पहुंचते हैं। आज हम आपको एक ऐसे ही अद्भुत मंदिर (Famous Temples in India) के बारे में बताने जा रहे हैं जिससे जुड़ी हुई मान्यताओं को जानने के बाद आप भी खुद को यहां जाने से नहीं रोक पाएंगे। चलिए जानते हैं इस मंदिर के बारे में।

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    Mata Hateshwari Mandir in Shimla Himachal Pradesh

    धर्म डेस्क, नई दिल्ली। आज हम बात कर रहे हैं हिमाचल प्रदेश में स्थित हाटेश्वरी मंदिर की, जिससे जुड़ी कई स्थानीय मान्यताएं और लोककथाएं मौजूद हैं। साथ ही इस मंदिर का इतिहास पांडवों से जुड़ा हुआ भी माना जाता है, जिसके साक्ष्य भी इस मंदिर में देखने को मिलते हैं। 

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    कहां स्थित है मंदिर

    हिमाचल प्रदेश के शिमला में जुब्बल-कोटखाई तहसील में स्थित है माता हाटेश्वरी मंदिर, जहां हाटकोटी माता (Hatkoti Mata) की पूजा-अर्चना की जाती है। स्थानीय निवासियों का मानना है कि देवी उनकी सभी समस्त दुखों का निवारण भी करती हैं।

    मंदिर के गर्भगृह में मां हाटकोटी की एक विशाल मूर्ति विद्यमान है, जो महिषासुर का वध कर रही हैं। यही कारण है कि हाटकोटी माता को महिषासुर मर्दिनी के नाम से भी जाना जाता है। मान्यताओं के अनुसार, माता का दाहिना पैर भूमिगत है। इसके अलावा मंदिर के परिसर में शिव जी का भी एक मंदिर स्थापित है।

    क्यों बांधकर रखा जाता है कलश

    मंदिर के प्रवेश द्वार के बाईं ओर एक विशाल कलश को जंजीर से बांधकर रखा गया है, जिसे स्थानीय भाषा में चरू कहा जाता है। लोक मान्यताओं के अनुसार, जब पब्बर नदी में बाढ़ की स्थिति बनने लगती है, तो यह कलश जोर-जोर से सीटियां भरने लगता है और भागने की कोशिश करता है, इसलिए इसे जंजीर से बांधकर रखा जाता है। 

    ऐसा भी कहा जाता है कि मंदिर में एक और कलश हुआ करता था, जो भाग निकला, लेकिन पंडित के पुजारी ने दूसरे कलश को पकड़ लिया और जंजीरों से बांध दिया।

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    पांडवों से जुड़ा है इतिहास

    स्थानीय मान्यताओं के अनुसार, मंदिर में स्थित कुछ स्मारक पांडवों द्वारा बनाए गए थे। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, अज्ञातवास के दौरान पांडवों का इस स्थान पर आना हुआ था और उन्होंने कुछ दिन यहां बिताए थे। इसका प्रमाण आज भी यहां देखने को मिलते हैं। मंदिर के अंदर पांच पत्थर से बने हुए छोटे मंदिर भी हैं, जिन्हें "देवल" कहा जाता है। मान्यताओं के अनुसार, पांडवों ने इन्हीं के अंदर बैठकर देवी की आराधना की थी।

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    अस्वीकरण: इस लेख में बताए गए उपाय/लाभ/सलाह और कथन केवल सामान्य सूचना के लिए हैं। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया यहां इस लेख फीचर में लिखी गई बातों का समर्थन नहीं करता है। इस लेख में निहित जानकारी विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों/दंतकथाओं से संग्रहित की गई हैं। पाठकों से अनुरोध है कि लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया अंधविश्वास के खिलाफ है।