इस मंदिर में मां ब्रह्मचारिणी के दर्शन से पूरी होती है हर मनोकामना, भोग में देवी को चढ़ती है यह खास सब्जी
हर साल आश्विन माह के शुक्ल पक्ष में शारदीय नवरात्र (Navratri 2025) मनाया जाता है। यह त्योहार देवी मां दुर्गा को समर्पित होता है। इस दौरान मां दुर्गा की भक्ति भाव से पूजा की जाती है। साथ ही उनके निमित्त नौ दिनों तक नवरात्र का व्रत रखा जाता है। शारदीय नवरात्र के दूसरे दिन मां ब्रह्मचारिणी की पूजा और साधना की जाती है।

धर्म डेस्क, नई दिल्ली। शारदीय नवरात्र का दूसरा दिन मां ब्रह्मचारिणी को समर्पित होता है। इस शुभ अवसर पर भक्ति भाव से मां ब्रह्मचारिणी की पूजा की जाती है। साथ ही मनचाही मुराद पाने के लिए व्रत रखा जाता है। देवी मां ब्रह्मचारिणी की पूजा करने से साधक की हर मनोकामना पूरी होती है। साथ ही सुख और सौभाग्य में वृद्धि होती है।
देशभर में मां ब्रह्मचारिणी को समर्पित कई प्रमुख छोटे-बड़े मंदिर हैं। जहां मां ब्रह्मचारिणी विराजती हैं। इनमें एक मंदिर मध्य प्रदेश के देवास में है। यह मंदिर मां ब्रह्मचारिणी को समर्पित है और इस मंदिर में मां ब्रह्मचारिणी को भोग में सब्जी चढ़ाई जाती है। आइए, इस मंदिर के बारे में जानते हैं-
बगोई माता का मंदिर (bangoi Mata mandir)
मां ब्रह्मचारिणी को समर्पित बगोई माता मंदिर मध्यप्रदेश के देवास जिले के घने जंगल में अवस्थित है। बगोई माता की महिमा निराली है। कहते हैं कि मां ब्रह्मचारिणी के दर से कोई भक्त खाली हाथ नहीं लौटता है। भक्तजन की हर मनोकामना पूरी होती है। बड़ी संख्या में मन्नत मांगने या मन्नत पूरा होने पर साधक मां ब्रह्मचारिणी के दर्शन (maa brahmacharini darshan) हेतु आते हैं। इस समय भक्ति भाव से देवी मां की पूजा कर उनके आशीर्वाद के भागी बनते हैं।
कद्दू का भोग (Maa Brahmacharini Vegetables Bhog)
मां ब्रह्मचारिणी को तप की देवी भी कहा जाता है। मां को सफेद रंग प्रिय है। इसके लिए पूजा के समय मां ब्रह्मचारिणी को सफेद रंग के फल और फूल अर्पित किया जाता है। साथ ही सफेद मिष्ठान चढ़ावा में दिया जाता है। वहीं, बगोई माता को भोग में फल, फूल के साथ ही कद्दू की सब्जी भी चढ़ती है। देवी मां बगोई की कृपा से साधक की हर मनोकामना पूरी होती है। कहते हैं कि देवी मां ब्रह्मचारिणी के दर्शन मात्र से शारीरिक एवं मानसिक कष्टों से मुक्ति मिलती है।
मां ब्रह्मचारिणी मंत्र
1. दधाना कर पद्माभ्यामक्ष माला कमण्डलु ।
देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा ।।
2. या देवी सर्वभूतेषु माँ ब्रह्मचारिणी रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
3. तपश्चारिणी त्वंहि तापत्रय निवारणीम्।
ब्रह्मरूपधरा ब्रह्मचारिणी प्रणमाम्यहम्॥
4. शंकरप्रिया त्वंहि भुक्ति-मुक्ति दायिनी।
शान्तिदा ज्ञानदा ब्रह्मचारिणीप्रणमाम्यहम्॥
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