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    Budh Ki Antardasha: कितने साल तक चलती है बुध की अंतर्दशा और कैसे करें व्यापार के दाता को प्रसन्न?

    By Pravin KumarEdited By: Pravin Kumar
    Updated: Sun, 08 Jun 2025 01:00 PM (IST)

    धार्मिक मत है कि भगवान गणेश (Budh Ki Antardasha) की पूजा करने से सुख और सौभाग्य में वृद्धि होती है। साथ ही मनचाही मुराद पूरी होती है। इसके लिए बुधवार के दिन भक्ति भाव से भगवान गणेश की पूजा की जाती है। बुधवार के दिन हरे रंग की चीजों का दान उत्तम माना जाता है।

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    Budh Ki Antardasha: भगवान गणेश को कैसे प्रसन्न करें?

    धर्म डेस्क, नई दिल्ली। ज्योतिष शास्त्र में बुध देव को व्यापार का दाता कहा जाता है। बुध देव मिथुन और कन्या राशि के स्वामी हैं। वहीं, कन्या राशि के जातकों को बुध देव हमेशा शुभ फल देते हैं। बुध देव की कृपा से जातक मधुरभाषी होता है। वहीं, कारोबार से जुड़े लोग अपने जीवन में खूब तरक्की और उन्नति करते हैं।

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    भगवान गणेश की पूजा करने से बुध देव प्रसन्न होते हैं। इसके लिए ज्योतिष बुधवार के दिन भगवान गणेश और बुध देव की पूजा करने की सलाह देते हैं। कुंडली में बुध मजबूत होना शुभ माना जाता है। लेकिन क्या आपको पता है कि बुध की अंतर्दशा कितने साल तक चलती है और कैसे व्यापार के दाता को प्रसन्न करें?

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    बुध की अंतर्दशा

    ज्योतिषियों की मानें तो बुध की अंतर्दशा दो साल चार महीने तक चलती है। बुध की महादशा के दौरान सबसे पहले बुध की अंतर्दशा चलती है। इसके साथ ही बुध की प्रत्यंतर दशा चलती है। इसके बाद शुभ और अशुभ ग्रहों की अंतर्दशा और प्रत्यंतर दशा चलती है। इसके बाद केतु की अंतर्दशा चलती है। केतु की अंतर्दशा लगभग एक साल तक चलती है। फिर, शुक्र की अंतर्दशा रहती है। बुध की महादशा में जातक को कारोबार में सफलता मिलती है। वहीं, अशुभ और शत्रु ग्रहों की अंतर्दशा में जातक को परेशानियों का सामना करना पड़ता है।

    बुध देव को कैसे प्रसन्न करें?

    बुध देव को प्रसन्न करने के लिए बुधवार के दिन भक्ति भाव से भगवान गणेश की पूजा करें। पूजा के समय भगवान गणेश को दूर्वा अर्पित करें। जातक विषम संख्या में दूर्वा अर्पित कर सकते हैं। इसके साथ ही भगवान गणेश को मोदक प्रसाद में भेंट करें। पूजा के बाद साबुत मूंग और हरी सब्जियों का दान करें। इसके साथ ही गौ माता को हरा चारा खिलाएं।

    गणेश मंत्र

    1. ऊँ वक्रतुण्ड महाकाय सूर्य कोटि समप्रभ ।

    निर्विघ्नं कुरू मे देव, सर्व कार्येषु सर्वदा ॥

    2. ऊँ एकदन्ताय विहे वक्रतुण्डाय धीमहि तन्नो दन्तिः प्रचोदयात् ॥

    3. ॐ एकदंताय विद्महे, वक्रतुण्डाय धीमहि, तन्नो दंती प्रचोदयात् ॥

    4. ॐ महाकर्णाय विद्महे, वक्रतुण्डाय धीमहि, तन्नो दंती प्रचोदयात् ॥

    5. ॐ गजाननाय विद्महे, वक्रतुण्डाय धीमहि, तन्नो दंती प्रचोदयात् ॥

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    अस्वीकरण: इस लेख में बताए गए उपाय/लाभ/सलाह और कथन केवल सामान्य सूचना के लिए हैं। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया यहां इस लेख फीचर में लिखी गई बातों का समर्थन नहीं करता है। इस लेख में निहित जानकारी विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों/दंतकथाओं से संग्रहित की गई हैं। पाठकों से अनुरोध है कि लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया अंधविश्वास के खिलाफ है।