Vaikuntha Ekadashi 2025 Date: कब और क्यों मनाई जाती है वैकुंठ एकादशी? जानें शुभ मुहूर्त
हर महीने में 2 बार एकादशी व्रत किया जाता है। इस शुभ तिथि पर भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की विधिपूर्वक उपासना करने का विधान है। साथ ही व्रत के नियम का पालन करना चाहिए। पंचांग के अनुसार पौष माह के शुक्ल पक्ष में वैकुंठ एकादशी (Vaikuntha Ekadashi 2025 Date) व्रत किया जाता है। आइए जानते हैं इस व्रत से जुड़ी महत्वपूर्ण बातें।

धर्म डेस्क, नई दिल्ली। सनातन धर्म में एकादशी तिथि को जगत के पालनहार भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की कृपा प्राप्त करने के लिए उत्तम माना जाता है। हर माह के कृष्ण और शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि पर व्रत किया जाता है। पौष माह में वैकुंठ एकादशी व्रत किया जाता है। इसे पौष पुत्रदा एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। धार्मिक मान्यता है कि इस दिन पूजा-अर्चना और व्रत करने से संसार के सभी सुख प्राप्त होते हैं और जन्म एवं मरण के चक्र से छुटकारा मिलता है। क्या आप जानते हैं कि वैकुंठ एकादशी (Vaikuntha Ekadashi Kab hai 2025) का व्रत क्यों किया जाता है। अगर नहीं पता, तो ऐसे में चलिए आपको बताएंगे इसकी वजह के बारे में।
वैकुंठ एकादशी 2025 डेट और टाइम (Vaikuntha Ekadashi 2025 Data and Time)
पंचांग के अनुसार, पौष माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि की शुरुआत 09 जनवरी को दोपहर 12 बजकर 22 मिनट से होगी। वहीं, इस तिथि का समापन 10 जनवरी को रात्रि 10 बजकर 19 मिनट पर होगा। ऐसे में वैकुंठ एकादशी (Vaikuntha Ekadashi Shubh Muhurat) का व्रत 10 जनवरी को किया जाएगा।
शुभ समय
ब्रह्म मुहूर्त - प्रातः 05 बजकर 27 मिनट से 06 बजकर 21 मिनट तक
गोधूलि मुहूर्त - शाम 05 बजकर 40 मिनट से 06 बजकर 07 मिनट तक
अभिजीत मुहूर्त - दोपहर 12 बजकर 08 मिनट से दोपहर 12 बजकर 50 मिनट तक
वैकुंठ एकादशी 2025 व्रत पारण टाइम (Vaikuntha Ekadashi 2025 Vrat Paran Time)
एकादशी व्रत का पारण अगले दिन यानी द्वादशी तिथि पर किया जाता है। पंचांग के अनुसार, व्रत का पारण करने का समय 11 जनवरी को सुबह 07 बजकर 15 मिनट से लेकर 08 बजकर 21 मिनट तक है।
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वैकुंठ एकादशी व्रत कथा (Vaikuntha Ekadashi Vrat Katha)
पौराणिक कथा के अनुसार, सुकेतुमान के नाम का एक राजा था। उसकी कोई संतान नहीं थी। ऐसे में राजा इस बात से परेशान था कि उसकी मृत्यु के बाद उनके पूर्वजों को मोक्ष कौन दिलाएगा। इसके बाद राजा ने राजपाट त्याग कर वन में चला गया। इस दौरान उसकी मुलाकात ऋषियों से हुई। राजा ने ऋषियों को अपनी परेशान बताई। ऐसे में उन्होंने राजा को पौष पुत्रदा एकादशी का व्रत करने की सलाह दी। उसने विधिपूर्वक पुत्रदा एकादशी का व्रत किया जाता, जिसके बाद उसे संतान सुख की प्राप्ति हुई।
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अस्वीकरण: इस लेख में बताए गए उपाय/लाभ/सलाह और कथन केवल सामान्य सूचना के लिए हैं। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया यहां इस लेख फीचर में लिखी गई बातों का समर्थन नहीं करता है। इस लेख में निहित जानकारी विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों/दंतकथाओं से संग्रहित की गई हैं। पाठकों से अनुरोध है कि लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया अंधविश्वास के खिलाफ है।
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