Apara Ekadashi 2025: भगवान विष्णु की पूजा करते समय करें इन मंत्रों का जप, सारे अधूरे काम होंगे पूरे
ज्योतिषियों की मानें तो अपरा एकादशी तिथि (Apara Ekadashi 2025 Date) पर कई मंगलकारी संयोग बन रहे हैं। इन योग में भवान विष्णु और मां लक्ष्मी की पूजा करने से साधक की हर मनोकामना पूरी होगी। एकादशी के दिन दान करने से साधक पर भगवान विष्णु की कृपा बरसती है।
धर्म डेस्क, नई दिल्ली। वैदिक पंचांग के अनुसार, मंगलवार 23 मई को अपरा एकादशी है। यह पर्व हर साल ज्येष्ठ माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को मनाया जाता है। इस शुभ अवसर पर लक्ष्मी नारायण जी की पूजा की जाती है। साथ ही मनचाहा वरदान पाने के लिए एकादशी का व्रत रखा जाता है। इस व्रत को करने से साधक पर लक्ष्मी नारायण जी की कृपा बरसती है। उनकी कृपा से साधक को जीवन में सभी प्रकार के भौतिक सुखों की प्राप्ति होती है। साथ ही मृत्यु उपरांत उच्च लोक में स्थान मिलता है।
वैष्णव समाज के लोग एकादशी तिथि पर स्नान-ध्यान के बाद भक्ति भाव से भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की पूजा करते हैं। साथ ही पूजा के समय विष्णु चालीसा का पाठ और मंत्र जप करते हैं। भगवान विष्णु की पूजा करने से धन की देवी मां लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं। अगर आप भी जीवन में व्याप्त सभी प्रकार के संकटों से मुक्ति पाना चाहते हैं, तो अपरा एकादशी के दिन भक्ति भाव से भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की पूजा करें। साथ ही पूजा के समय इन मंत्रों का जप करें।
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एकादशी मंत्र
1. ॐ वासुदेवाय विघ्माहे वैधयाराजाया धीमहि तन्नो धन्वन्तरी प्रचोदयात् ||
ॐ तत्पुरुषाय विद्महे अमृता कलसा हस्थाया धीमहि तन्नो धन्वन्तरी प्रचोदयात् ||
2. शान्ताकारम् भुजगशयनम् पद्मनाभम् सुरेशम्
विश्वाधारम् गगनसदृशम् मेघवर्णम् शुभाङ्गम्।
लक्ष्मीकान्तम् कमलनयनम् योगिभिर्ध्यानगम्यम्
वन्दे विष्णुम् भवभयहरम् सर्वलोकैकनाथम्॥
3. ॐ यक्षाय कुबेराय वैश्रवणाय धनधान्याधिपतये
धनधान्यसमृद्धिं मे देहि दापय स्वाहा॥
4. ऊँ हिमकुन्दमृणालाभं दैत्यानां परमं गुरुम सर्वशास्त्रप्रवक्तारं भार्गवं प्रणमाम्यहम ।।
5. वृंदा,वृन्दावनी,विश्वपुजिता,विश्वपावनी |
पुष्पसारा,नंदिनी च तुलसी,कृष्णजीवनी ।।
एत नाम अष्टकं चैव स्त्रोत्र नामार्थ संयुतम |
य:पठेत तां सम्पूज्य सोभवमेघ फलं लभेत।।
6. ॐ नमो भगवते महासुदर्शनाय वासुदेवाय धन्वंतराये:
अमृतकलश हस्ताय सर्व भयविनाशाय सर्व रोगनिवारणाय
त्रिलोकपथाय त्रिलोकनाथाय श्री महाविष्णुस्वरूप
श्री धनवंतरी स्वरूप श्री श्री श्री औषधचक्र नारायणाय नमः॥
7. पद्मानने पद्म पद्माक्ष्मी पद्म संभवे तन्मे भजसि पद्माक्षि येन सौख्यं लभाम्यहम्।
8. दन्ताभये चक्र दरो दधानं, कराग्रगस्वर्णघटं त्रिनेत्रम्।
धृताब्जया लिंगितमब्धिपुत्रया, लक्ष्मी गणेशं कनकाभमीडे।।
ॐ देवानां च ऋषीणां च गुरु कांचन संन्निभम्।
बुद्धिभूतं त्रिलोकेशं तं नमामि बृहस्पतिम्।।
9. ॐ श्री विष्णवे च विद्महे वासुदेवाय धीमहि तन्नो विष्णुः प्रचोदयात्॥
10. मङ्गलम् भगवान विष्णुः, मङ्गलम् गरुणध्वजः।
मङ्गलम् पुण्डरी काक्षः, मङ्गलाय तनो हरिः॥
॥ अच्युताष्टकम् ॥
अच्युतं केशवं रामनारायणंकृष्णदामोदरं वासुदेवं हरिम्।
श्रीधरं माधवं गोपिकावल्लभंजानकीनायकं रामचन्द्रं भजे॥
अच्युतं केशवं सत्यभामाधवंमाधवं श्रीधरं राधिकाराधितम्।
इंदिरामन्दिरं चेतसा सुन्दरंदेवकीनन्दनं नन्दजं संदधे॥
विष्णवे जिष्णवे शङ्खिने चक्रिणेरूक्मिणीरागिणे जानकीजानये।
वल्लवीवल्लभायार्चितायात्मनेकंसविध्वंसिने वंशिने ते नमः॥
कृष्ण गोविन्दहे राम नारायणश्रीपते वासुदेवाजित श्रीनिधे।
अच्युतानन्त हे माधवाधोक्षजद्वारकानायक द्रौपदीरक्षक॥
राक्षसक्षोभितः सीतया शोभितोदण्डकारण्यभूपुण्यताकारणः।
लक्ष्मणेनान्वितो वानरैः सेवितोऽगस्त्य-सम्पूजितो राघवः पातु माम्॥
धेनुकारिष्टकानिष्टकृदद्वेषिहाकेशिहा कंसह्रद्वंशिकावादकः।
पूतनाकोपकः सूरजाखेलनोबालगोपालकः पातु मां सर्वदा॥
विद्युदुद्योतवत्प्रस्फुरद्वाससंप्रावृडम्भोदवत्प्रोल्लसद्विग्रहम्।
वन्यया मालया शोभितोरःस्थलंलोहिताङ्घ्रिद्वयं वारिजाक्षं भजे॥
कुञ्चितैः कुन्तलैर्भ्राजमानाननंरत्नमौलिं लसत्कुण्डलं गण्डयोः।
हारकेयूरकं कङ्कणप्रोज्ज्वलंकिङ्किणीमञ्जुलं श्यामलं तं भजे॥
अच्युतस्याष्टकं यः पठेदिष्टदंप्रेमतः प्रत्यहं पूरुषः सस्पृहम्।
वृत्ततः सुन्दरं कर्तृविश्वम्भरस्तस्यवश्यो हरिर्जायते सत्वरम्॥
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