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    लुधियाना के शुभम राजस्थान में बनेंगे जज, लिंब गर्डल मस्कुलर डिस्ट्रॉफी से जूझ रहे, चुनौतियों को मात दे हासिल की सफलता

    Updated: Mon, 22 Dec 2025 07:09 PM (IST)

    लुधियाना के 26 वर्षीय शुभम सिंगला ने शारीरिक चुनौतियों को पार करते हुए राजस्थान ज्यूडिशियल सर्विसेज परीक्षा में 43वीं रैंक हासिल की है। लिंब गर्डल मस् ...और पढ़ें

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    अपने परिवार के साथ खुशियां मनाते हुए शुभम।

    जागरण संवाददाता, लुधियाना। पंजाब के लुधियाना के 26 वर्षीय शुभम सिंगला ने अपनी शारीरिक चुनौतियों को मात देकर बड़ा मुकाम हासिल किया है। उन्होंने 19 दिसंबर को घोषित राजस्थान ज्यूडिशियल सर्विसेज परीक्षा में सफलता प्राप्त कर 43वीं रैंक हासिल की और अब वे राजस्थान में सिविल जज के पद पर नियुक्त होंगे।

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    लिंब गर्डल मस्कुलर डिस्ट्रॉफी (एलजीएमडी) जैसी दुर्लभ और प्रोग्रेसिव बीमारी के कारण तीन साल से व्हीलचेयर पर होते हुए भी शुभम ने पढ़ाई और तैयारी नहीं छोड़ी। शुभम मूल रूप से पटियाला के पातड़ां के हैं और वर्तमान में लुधियाना में रहते हैं।

     उन्होंने हिसार से एलएलबी की पढ़ाई की और अब पंजाब विश्वविद्यालय के लुधियाना सेंटर से एलएलएम कर रहे हैं।

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    राजस्थान ज्यूडिशियल सर्विसेज परीक्षा पास करने वाले शुभम। 

    रिश्तेदार ने मजाक किया था, शुभम ने सच कर दिखाया

    शुभम में पढ़ाई के प्रति लगाव बचपन से था। एक रिश्तेदार ने एक बार मजाक में कहा था- इतना पढ़ते हो, जज लगोगे क्या?। उनके इस मजाक को शुभम ने अब सच कर दिखाया है। शुभम पहले से ही जज बनने का लक्ष्य लेकर चल रहे थे, इस मजाक ने उनके इस सपने को और मजबूत कर दिया।

    स्कूली दिनों से लेकर कॉलेज तक दोस्तों ने बीमारी के बावजूद उन्हें उठाकर, सहारा देकर स्कूल कॉलेज पहुंचाया, जिससे उनकी पढ़ाई बिना रुकावट जारी रह सकी।

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    दो बार क्लैट परीक्षा की पास

    कानून की पढ़ाई के लिए शुभम ने दो बार क्लैट परीक्षा पास की। पहले राजीव गांधी नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी पटियाला में दाखिला लिया, लेकिन निजी कारणों से छोड़ना पड़ा। बाद में हिसार की यूनिवर्सिटी से डिग्री पूरी की।

    कोरोना काल में उन्होंने फिर क्लैट क्वालीफाई किया, पर दाखिला न लेकर हिसार से ही पढ़ाई जारी रखी। एलजीएमडी के बढ़ते प्रभाव से तीन साल पहले वे व्हीलचेयर पर आ गए, मगर उन्होंने ऑनलाइन कोचिंग के सहारे तैयारी जारी रखी, जिससे संस्थान तक आने जाने की दिक्कत से बच गए।

    लोग टिप्पणी करते हैं, लेकिन हौंसले बुलंद रखने चाहिए

    शुभम के मुताबिक समाज में कुछ लोग शारीरिक रूप से दिव्यांग लोगों पर टिप्पणी करते हैं, लेकिन उन्होंने कभी ऐसे कमेंट को दिल पर नहीं लिया। वे संयुक्त परिवार में पल बढ़े और बताते हैं कि माता पिता, दादी, भाई बहन सभी ने हर कदम पर उनका साथ दिया और मोटिवेट किया।

    वे कहते हैं कि मस्कुलर डिस्ट्रॉफी का फिलहाल कोई पक्का इलाज नहीं है, लेकिन बीमारी को बहाना बनाकर सपनों से समझौता नहीं करना चाहिए। उनका संदेश है कि शारीरिक रूप से दिव्यांग बच्चे खुद को अलग या कमतर न समझें, बल्कि मुख्यधारा के छात्रों की तरह प्रतियोगी परीक्षाओं में उतरकर खुद को साबित करें।

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    शुभम को क्रिकेट से खास लगाव है और वे पिछले लगभग 15 साल के अंतरराष्ट्रीय मैचों की बारीकियां तक याद रखने का दावा करते हैं। विराट कोहली उनके पसंदीदा खिलाड़ी हैं और आज भी वे उनका हर मैच देखने की कोशिश करते हैं।

    जानें क्या है ये एलजीएमडी बीमारी

    लिंब गर्डल मस्कुलर डिस्ट्रॉफी (एलजीएमडी) मांसपेशियों की एक आनुवंशिक (जेनेटिक) बीमारी है, जिसमें समय के साथ कंधों और कूल्हों के आसपास की मांसपेशियां कमजोर और पतली होती जाती हैं। यह कई अलग अलग जीन में गड़बड़ी के कारण होने वाला विकार है, इसलिए इसके कई उप प्रकार होते हैं।

     कुछ में बचपन में, तो कुछ वयस्क आयु में ये बीमारी शुरू होती है। शुरू में सीढ़ियां चढ़ने, बैठी हुई स्थिति से उठने या वजन उठाने में दिक्कत, आसानी से थकान और लड़खड़ाती चाल जैसे लक्षण दिखते हैं। धीरे धीरे चलने में सहारा, व्हीलचेयर या अन्य सहायक उपकरण की जरूरत पड़ सकती है और कुछ मामलों में सांस व दिल की मांसपेशियां भी प्रभावित होती हैं।

    इसका अभी कोई पूर्ण इलाज नहीं है, लेकिन फिजियोथेरेपी, व्यायाम, सहायक उपकरण, नियमित कार्डियक रेस्पिरेटरी मॉनिटरिंग और जेनेटिक काउंसलिंग से रोगी की जीवन गुणवत्ता बेहतर रखी जा सकती है।

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