Ludhiana News: मुगलकाल का आतिशबाजा बाजार आज होजरी का गढ़ बना, कभी यहां होती थी रसूखदारों की हवेलियां
लुधियाना के पुराने इलाके में स्थित हिंदी बाजार ने भी बदलते वक्त के साथ करवट ली है। कभी यहां पर रसूखदारों की हवेलियों होती थी। अब यह होजरी का गढ़ बना हुआ है। 20वीं शताब्दी की शुरूआत में लुधियाना में होजरी उद्योग ने अपने पैर पसारने शुरू किए।

जागरण संवाददाता, लुधियाना। शहर के पुराने इलाके में स्थित हिंदी बाजार ने भी बदलते वक्त के साथ करवट ली है, पहले कभी यहां पर रसूखदारों की हवेलियां होती थी, अब यहां पर वुलेन रेडिमेड गारमेंट्स की होलसेल की दुकानें हैं। बाजार में लगभग 90 प्रतिशत दुकानें होजरी की हैं।
इस बाजार में सर्दी के सीजन में देश के विभिन्न हिस्सों से कारोबारी पहुंचते हैं और वुलेन गारमेंट्स की खरीद फरोख्त करते हैं। बाजार की तंग गलियों में इन दिनों सुबह से लेकर शाम तक व्यापारियों की रौनक रहती है। मुगल काल में इस बाजार को आतिशबाजा के नाम से लोग जानते थे, लेकिन वक्त के साथ साथ बाजार का नाम करीब सौ साल पहले हिंदी बाजार पड़ा। तब यहां पर आम जरूरतों के सामान की दुकानें होती थीं।
20वीं शताब्दी की शुरूआत में लुधियाना में होजरी उद्योग ने अपने पैर पसारने शुरू किए। मैन्युफैक्चरिंग के साथ रिटेलरों ने भी अपना धंधा शुरू कर दिया। वुलेन गारमेंट्स के रिटेलरों ने हिंदी बाजार का रुख किया और वहां पर दुकानें लेनी शुरू कर दीं।
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पिछले 85 वर्ष से बाजार में चल रही नत्थू एंड संस पान वाले की दुकान में आज भी पान एवं शरबत का पुश्तैनी कारोबार चल रहा है। इस बाजार में कई हवेलियां मशहूर थी। थानेदार की हवेली, गुरदियाल सिंह थापर की हवेली प्रमुख थीं। इस बाजार के आसपास सराफा बाजार, बलिदानी सुखदेव थापर की जन्मस्थली, कटड़ा नौहरियां, माली गंज, दाल बाजार, चौड़ा बाजार, दरेसी आदि इलाके लगते हैं।
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