गुरु नानक देव जी के दिव्य प्रकाश से आज भी प्रकाशवान हैं लुधियाना के तीर्थ, 507 वर्ष पहले पड़े थे चरण
श्री गुरु नानक देव जी के पावन चरण 507 वर्ष पहले लुधियाना में पड़े थे। सतलुज किनारे जहां विश्राम किया था वहां अब गुरुद्वारा श्री गोघाट सुशोभित है। आठ नवंबर को गुरु नानक देव जी का प्रकाश पर्व मनाया जा रहा है। इसके लिए तैयारियां शुरू हो चुकी हैं।

जागरण संवाददाता, लुधियाना। करीब 507 वर्ष पहले श्री गुरु नानक देव जी के पावन चरण शहर में पड़े थे। सतलुज के किनारे विश्राम किया था। अब इस स्थान पर गुरुद्वारा श्री गोघाट सुशोभित है। शहर के बाहर गुरुद्वारा साहिब ठक्करवाल भी है। हर धर्म के साझे, हर मन प्यारे, मानवता की राह दिखाने वाले गुरु नानक देव जी के चरणों से पावन हुई औद्योगिक नगरी आज भी कृतार्थ है। उनका आगमन भले 507 वर्ष पहले हुआ था, मगर उनकी चरण छोह प्राप्त धरती आज भी परम पूजनीय है।
आठ नवंबर को गुरु नानक देव जी का प्रकाश पर्व मनाया जा रहा है। इसके लिए तैयारियां शुरू हो चुकी हैं। गुरुद्वारों को सजाया जा रहा है। इसी दिन दीपक जलाकर श्रद्धालु अपने रहबर का गुणगान करेंगे। गुरु नानक जी के प्रकाश पर्व पर संगत उनके द्वारा की गई आलौकिक वर्षा का स्मरण करते हैं। श्री गुरुनानक देव जी लुधियाना शहर भी पहुंचे थे और सतलुज के किनारे विश्राम किया और यहां पर इस जगह पर अब गुरुद्वारा गऊघाट सुशोभित है और बाकायदा लोग सरोवर में स्नान करते हैं। यही नहीं शहर के बाहर बार ठक्करवाल का इतिहास भी उनके इस आगमन से जुड़ा हुआ है।
गुरु जी ने रुकवाई थी गोहत्या, सतलुज के प्रकोप से बचा था शहर
गुरु नानक देव जी का आगमन लुधियाना में 1515 ई. में हुआ बताया जाता है। अगर वह यहां नहीं आते तो शायद लुधियाना का नामोनिशान नहीं होता। उनके वचनों से ही जलाल खां लोधी के शासन में गोहत्या बंद हुई और शहर की तरफ कटाव कर रहे सतलुज ने अपना रास्ता बदला। जब गुरु जी यहां आए तो उस समय गोहत्या चरम पर थी। इतिहासकारों के अनुसार तब सतलुज दरिया लगातार लुधियाना शहर की तरफ कटाव कर रहा था और दरिया कटाव करते हुए शहर में आ गया था।
आबादी कुछ ही दूरी पर रह गई थी, शासक जलाल खां को जब इसका पता चला कि गुरु जी यहां पर विश्राम कर रहे हैं तो वह गुरु नानक जी के पास फरियाद लेकर पहुंचा। उसने गुरुजी से विनती की कि सतलुज के कटाव से उन्हें बचाया जाए। गुरुजी ने वचन किए कि वह गोहत्या बंद कर दे तो सतलुज के कटाव से उसका राज्य बच जाएगा।
जलाल खां ने जब गुरुजी को वचन दे दिया तो गुरु जी ने सतलुज दरिया को आदेश दिया कि वह वहां से सात कोस दूर चला जाए। सतलुज का बहाव यहां से सात कोस दूर हो गया मगर एक धारा यहीं बहती रही। इस धारा का नाम ही बुढ्ढा दरिया पड़ा था। गोहत्या रुकवाने के कारण यहां पर बने गुरुद्वारा साहिब का नाम गोघाट पड़ गया। यहां पर लोगों की असीम आस्था है।
झिंगड़ जगेड़ा को दिया था गुरुजी ने अपना नाम
शहर से कुछ ही दूरी पर स्थित नानकपुर जगेड़ा को गुरु जी ने अपना नाम दिया था। उन्होंने यहां के बाशिंदों को कृतार्थ किया था। इसके बाद इस गांव का नाम झिंगड जगेड़ा से बदलकर नानकपुर जगेड़ा रख दिया था। उनके बाद इस गांव को छठे पातशाह श्री गुरु हरगोबिंद साहिब के चरण स्पर्श का भी सौभाग्य प्राप्त हुआ है।
इतिहास के अनुसार प्रथम पातशाही गुरुनानक देव जी नानक कटियाणा साहिब जाते समय झिंगड़ जगेड़ा गांव से होकर निकले। वे गुरुनानक देव जी इस गांव में रुके और छपड़ी के पास पीपल के पेड़ के नीचे बने कच्चे थड़े पर बैठ गए थे। इस गुरुद्वारा साहिब के सरोवर में स्नान करने से निरोग काया होने की मान्यता है। लोग अपनी मनोकामनाएं पूर्ण करने के लिए इस थड़े पर खिलौने वाले हवाई जहाज चढ़ाए जाते हैं।
ठाकुर दास का अहम खत्म कर ठक्करवाल में गुरुजी ने छका था लंगर
ठक्करवाल लुधियाना शहर से लगता गांव है। इस समय यह शहर का हिस्सा है। गऊघाट से प्रस्थान के बाद गुरु जी ठक्करवाल पहुंचे थे। वहां पर ठाकुर दास नाम के ढोंगी ने अपना डेरा बना रखा था और गद्दी भी लगा रखी थी। जब गुरु जी वहां पहुंचे तो वह गद्दी पर बैठ गया और खुद को बड़ा बताने लगा। गुरु जी उसकी तरफ पीठ करके बैठ गए और ठाकुर दास क्रोध दिखाने लगा।
गुरु जी गुरुबाणी का उच्चारण करने लगे। गुरुबाणी सुनकर ठाकुरदास ने गुरुजी को हरे राम बोलकर पुकारा जिस पर गुरुजी ने उसे सत करतार कह दिया। ठाकुर दास ने गुरुजी से पूछा कि क्या इन दोनों में कोई अंतर है। गुरु जी ने कहा कि सत्य पहले भी था अब भी है और भविष्य में भी सत्य ही रहेगा। उसके बाद गुरुनानक जी ने ठाकुर दास का अहंकार खत्म किया।
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