अफगानिस्तान से आया संदेश; मंदिर-गुरुद्वारों की शरण में हिंदू और सिख, कुछ भी कर सकता है तालिबान
जोगिंदर सिंह ने बताया कि गुरुद्वारा साहिब के बाहर पहले अफगान फौजी तैनात थे लेकिन जैसे ही तालिबान ने कब्जा किया वे चले गए। अब किसी भी समय तालिबानी हमला कर सकते हैं। उन्हें अब केवल रब का ही सहारा है।
लुधियाना, [राजेश भट्ट]। अफगानिस्तान में तालिबान के कब्जे के बाद वहां रहने वाले हिंदू और सिखों ने अब मंदिरों और गुरुद्वारों की शरण ली है। वे बुरी तरह सहमे हुए हैं। किसी भी समय कुछ भी हो सकता है। अफगानिस्तान के श्योर शहर में रहने वाले जोगिंदर सिंह, मेहर सिंह समेत कई परिवार पिछले 7 दिन से गुरुद्वारा मनसा सिंह में शरण लिए हुए हैं। वहां से वर्ष 2012 में भारत आए शमी सिंह लुधियाना में रहते हैं। अफगानिस्तान में तालिबान के कब्जे के बाद जब उन्होंने अपने दोस्त जोगिंदर सिंह व मेहर सिंह को फोन किया तो उन्होंने तालिबान के कब्जे के बाद पैदा हुए खौफनाक हालात की दस्तां सुनाई।
जोगिंदर सिंह ने बताया कि गुरुद्वारा साहिब के बाहर पहले अफगान फौजी तैनात थे लेकिन जैसे ही तालिबान ने कब्जा किया, वे चले गए। अब किसी भी समय तालिबानी हमला कर सकते हैं। उन्हें अब केवल रब का ही सहारा है। उन्होंने बताया कि अफगानिस्तान में हिंदू व सिख परिवार मंदिरों और गुरुद्वारों में रह रहे हैं। हालात यह हैं कि वे वहां से निकल भी नहीं सकते। सभी लोग बुरी तरह डरे हुए हैं और उन्हें वहां पर मदद की जरूरत है।
श्योर बाजार में हिंदू और सिखों के कई परिवार
शमी सिंह ने बताया कि श्योर बाजार में कई सिख व हिंदू धर्म के लोग मसाले व पनसारी का काम करते हैं। उन्होंने कहा कि हिंदुओं और सिखों पर पहले ही वहां अत्याचार हो रहे थे और अब तो उनका वहां पर जीना मुश्किल हो जाएगा। वर्ष 2012 में श्योर से ही 40 के करीब परिवार लुधियाना आकर बस गए थे। उन्होंने कहा कि उस समय भी वहां पर भले ही अमेरिका की फौज थी लेकिन अत्याचार काफी ज्यादा थे। जो लोग वहां फंसे हैं, वो उस समय भारत नहीं आ पाए। अब हालात ऐसे नहीं हैं कि वो वहां से निकल सकें।
नागरिकता के लिए भटक रहे अफगानिस्तानी
अफगानिस्तान से आए 40 परिवार लुधियाना के अलग-अलग हिस्सों में परिवार के साथ रह रहे हैं। शमी सिंह के अनुसार उनके पूर्वज पाकिस्तान में रहते थे। वहां अत्याचार हुआ तो वे अफगानिस्तान में चले गए थे। हालांकि वहां भी तालिबान और कट्टपंथियों ने उन्हें चैन से नहीं जीने दिया। इसके बाद वर्ष 2012 में वे किसी तरह भारत पहुंचे। उसके बाद लगातार वीजा बढ़वाने और नागरिकता पाने की जद्दोजहद में लगे हैं।
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