कानूनी पचड़ों से बचने के लिए पवार पिता-पुत्री के बदले सुर, Sharad Pawar का एनसीपी में टूट से इनकार
शिवसेना में फूट के बाद उद्धव ठाकरे गुट ने सुप्रीम कोर्ट और चुनाव आयोग की शरण ली। जिसके कारण उनके हाथ से पार्टी और चुनाव चिह्न भी जाता रहा। इस घटना से सबक लेकर शरद पवार कानूनी पचड़ों से बचना चाह रहे हैं। माना जा रहा है कि इसीलिए पिछले दो दिनों से उनके और उनकी पुत्री सुप्रिया सुले के सुर बदले-बदले नजर आ रहे हैं।

ओमप्रकाश तिवारी, मुंबई। शिवसेना में फूट के बाद उद्धव ठाकरे गुट ने सुप्रीम कोर्ट और चुनाव आयोग की शरण ली। जिसके कारण उनके हाथ से पार्टी और चुनाव चिह्न भी जाता रहा। इस घटना से सबक लेकर शरद पवार कानूनी पचड़ों से बचना चाह रहे हैं। माना जा रहा है कि इसीलिए पिछले दो दिनों से उनके और उनकी पुत्री सुप्रिया सुले के सुर बदले-बदले नजर आ रहे हैं।
सुप्रिया सुले ने गुरुवार को प्रेस से बात करते हुए कहा था कि उनकी पार्टी में कोई फूट नहीं हुई है। पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष शरद पवार और प्रदेश अध्यक्ष जयंत पाटिल हैं। अजित पवार पार्टी के वरिष्ठ नेता हैं। बस उन्होंने अलग राह चुन ली है। लगभग यही बात शुक्रवार को स्वयं शरद पवार ने भी सधे हुए शब्दों में दोहराई।
शरद पवार ने अजित पवार को बताया पार्टी नेता
शरद पवार ने भी अपने गृहनगर बारामती में पत्रकारों द्वारा पार्टी में फूट के बारे में पूछने पर दोहराया कि अजित पवार नेता हैं। इस पर कोई विवाद नहीं है। इसके साथ ही पवार ने पत्रकारों से पूछा फूट का मतलब क्या होता है? किसी दल में फूट कब होती है? जब राष्ट्रीय स्तर पर कोई गुट अलग जाता है, लेकिन वह स्थिति यहां नहीं है। यदि किसी ने दल छोड़ दिया है, कोई दूसरी भूमिका ले ली है तो लोकतंत्र में ये उसका अधिकार है।
उन्होंने कहा कि अजित पवार द्वारा कोई अलग भूमिका लेना पार्टी में फूट नहीं दर्शाता है, लेकिन अपने इस बयान के कुछ घंटों के अंदर ही कोल्हापुर पहुंचकर शरद पवार ने यह भी कहा कि अजित पवार को एक मौका 2019 में दिया जा चुका है। अब उन्हें दूसरा मौका देने का सवाल ही नहीं उठता।
चुनाव आयोग में लंबित है मामला
गौरतलब है कि एक जुलाई को राकांपा के आठ विधायकों के साथ शिंदे-फडणवीस सरकार का हिस्सा बन चुके अजित पवार ने अपनी तरफ से केंद्रीय चुनाव आयोग में पार्टी पर अधिकार की अपील की थी। चुनाव आयोग ने शरद पवार गुट से इस याचिका पर उत्तर मांगा था। अभी तक पवार गुट ने अपना कोई उत्तर चुनाव आयोग को नहीं भेजा है।
पार्टी में फूट के बाद शरद पवार गुट की तरफ से नौ विधायकों (इनमें अजित पवार भी शामिल हैं) और दो सांसदों से स्पष्टीकरण मांगने का नोटिस विधानसभाध्यक्ष एवं लोकसभा अध्यक्ष को भेज दिया था। सुप्रिया सुले कहती हैं कि इसका उत्तर अभी हमें प्राप्त नहीं हुआ है।
पार्टी का नाम और चुनाव चिह्न नहीं गंवाना चाहते
इस बीच शरद पवार और अजित पवार की कई मुलाकातें हो चुकी हैं। इन मुलाकातों में अजित पवार गुट ने बार-बार शरद पवार से आशीर्वाद देने का आग्रह दोहराया है। माना जा रहा है कि पवार चाचा-भतीजे के बीच पार्टी में फिलहाल रार न बढ़ाने की सहमति एक स्तर तक बन चुकी है। यानी दोनों अपनी-अपनी राह चलेंगे। लेकिन जब तक बहुत जरूरी न हो जाए, तब तक ऐसा कोई कदम नहीं उठाएंगे, जिसके किसी भी गुट को पार्टी का नाम या चुनाव चिह्न गंवाना पड़े।
शिवसेना (उद्धव) को रास नहीं आ रहा पवार का रुख
अजित पवार गुट को लेकर शरद पवार और सुप्रिया सुले द्वारा अपनाया गया नया रुख शिवसेना उद्धव गुट को कतई रास नहीं आ रहा है। शिवसेना उद्धव गुट के प्रवक्ता संजय राउत ने पवार परिवार के इस रुख पर कई सवाल उठाए हैं। राउत ने पत्रकारों से बात करते हुए कहा कि महाराष्ट्र में एक वैचारिक लड़ाई चल रही है।
उन्होंने कहा कि राकांपा में फूट पड़ी कि नहीं, ये जनता तय करेगी। मेरी जानकारी के अनुसार तो फूट पड़ी है। जैसे शिवसेना से टूटकर एक गुट अलग हुआ। दल की नीति, दल प्रमुख के विचारों को किनारे कर भाजपा से हाथ मिलाया। ये दल से द्रोह था। इसलिए हमने उन्हें पार्टी से निकाल दिया। इसी प्रकार राकांपा से एक गुट अलग हुआ। दल के विरोध में जाकर उसने सत्ता के लिए भाजपा से हाथ मिला लिया। ये फूट नहीं तो और क्या है ? हम तो इसे फूट ही मानते हैं।
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