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चुनाव चिन्ह को लेकर सपा से पहले भी मच चुका है सियासी बवाल

1969 में कांग्रेस में विभाजन हो गया था और चुनावी चिन्ह को लेकर जमकर सियासी उठापटक हुई थी। सपा में ठीक ऐसे ही हालात बने हुए हैं। दोनों ही खेमों ने एक दूसरे के खिलाफ तलवारें खींच ली हैं।

By Sachin BajpaiEdited By: Published: Mon, 02 Jan 2017 04:46 PM (IST)Updated: Fri, 13 Jan 2017 03:50 PM (IST)
चुनाव चिन्ह को लेकर सपा से पहले भी मच चुका है सियासी बवाल
चुनाव चिन्ह को लेकर सपा से पहले भी मच चुका है सियासी बवाल

नई दिल्ली [सचिन बाजपेयी़]। समाजवादी पार्टी में चुनाव चिन्ह को लेकर मचा घमासान दिल्ली तक पहुंच चुका है। सियासी वर्चस्व की जंग में पार्टी पिता-पुत्र के बीच दो खेमों में बंट चुकी है। वर्तमान में समाजवादी पार्टी का चुनाव चिन्ह साइकिल है और दोनों ही खेमे इस चिन्ह पर अपना अपना दावा ठोक रहे हैं। पार्टी में 'साइकिल' के चिन्ह पर कब्जे के संघर्ष से कांग्रेस के संग्राम की कहानी याद आती है।

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गौरतलब है कि 1969 में कांग्रेस में विभाजन हो गया था और चुनावी चिन्ह को लेकर जमकर सियासी उठापटक हुई थी। सपा में ठीक ऐसे ही हालात बने हुए हैं। दोनों ही खेमों ने एक दूसरे के खिलाफ तलवारें खींच ली हैं।


समाजवादी पार्टी में पिता-पुत्र में महासंग्राम

सपा में रविवार को हुए तख्तापलट के बाद अब मुलायम खेमा और अखिलेश कैंप पार्टी के चुनाव चिन्ह 'साइकिल' पर कब्जे के लिए चुनाव आयोग का दरवाजा खटखटाने पहुंचे हैं।

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अब चुनाव आयोग को इस मामले में निर्णय लेना होगा कि वास्तव में असली समाजवादी पार्टी इन दोनों धड़ों में किसकी है? लेकिन उसके लिए समय की दरकार है जबकि अगले चंद दिनों में आयोग चुनाव तारीखों का ऐलान करने वाला है। ऐसे में सबसे बड़ी बात यह मानी जा रही है कि फैसला नहीं आने की स्थिति में आयोग इस 'साइकिल' चिन्ह को सीज कर ले और ऐसी परिस्थिति में दोनों गुटों को अलग-अलग चुनाव चिन्हों के साथ आगामी चुनावों में मैदान में उतरना होगा।

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कांग्रेस में चुनाव चिन्ह को लेकर हुआ था संघर्ष

ऐसा नहीं है कि भारत के सियासी इतिहास में यह पहली बार हो रहा है, इससे पहले भी यह स्थिति आ चुकी है। दरअसल 1969 कांग्रेस में वर्चस्व की लड़ाई में इंदिरा गांधी गुट और कांग्रेस के पुराने नेताओं (सिंडीकेट ग्रुप) में जबरदस्त संघर्ष हुआ। पार्टी कांग्रेस (ओ) और कांग्रेस (आर) में बंट गई थी। इंदिरा गांधी का गुट कांग्रेस (आर) के नाम से जाना गया। इस गुट ने कांग्रेस के चुनाव चिन्ह 'बैल' को अपनाने की कोशिश की लेकिन कामराज के नेतृत्व वाली कांग्रेस (ओ) ने इसका विरोध किया। नतीजतन इंदिरा गांधी को कांग्रेस का परंपरागत चिन्ह नहीं मिल पाया। इसके चलते इंदिरा गांधी को 'गाय और बछड़ा' चुनाव चिन्ह चुनना पड़ा।

उसके बाद देश में आपातकाल (1975-77) के बाद कांग्रेस में पनपे असंतोष के चलते पार्टी में एक बार फिर विभाजन हुआ और इंदिरा गांधी ने कांग्रेस (आई) का गठन किया। इसी दौर में चुनाव आयोग ने 'गाय और बछड़ा' चुनाव चिन्ह को जब्त कर लिया।

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चुनाव चिन्ह 'पंजा' मिलने के पीछे एक दिलचस्प कहानी

रायबरेली में करारी हार के बाद सत्ता से बाहर हुई कांग्रेस के हालात देखकर पार्टी प्रमुख इन्दिरा गांधी काफी परेशान हो गयीं। परेशानी की हालत में श्रीमती गांधी तत्कालीन शंकराचार्य स्वामी चन्द्रशेखरेन्द्र सरस्वती का आशीर्वाद लेने पहुंची। इंदिरा गांधी की बात सुनने के बाद पहले तो शंकराचार्य मौन हो गए लेकिन कुछ देर बाद उन्होंने अपना दाहिना हाथ उठाकर आशीर्वाद दिया और 'हाथ का पंजा' पार्टी का चुनाव निशान बनाने को कहा। उस समय आंध्र प्रदेश समेत चार राज्यों का चुनाव होने वाले थे। इस तरह कांग्रेस आई को चुनाव चिन्ह 'पंजा' मिला।तब से आज तक यही कांग्रेस का चुनाव चिन्ह है।


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