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तरुण तेजपाल मामले में कोर्ट के फैसले से पीड़िता की पहचान उजागर करने वाले अंश हटाने के आदेश

पत्रकार तरुण तेजपाल को 2013 के दुष्कर्म मामले से बरी करने वाली सत्र अदालत को बांबे हाई कोर्ट की गोवा पीठ ने गुरुवार को आदेश दिया कि वह तीन दिन में अपने फैसले में उन सभी संदर्भों को संपादित करे जो पीडि़ता की पहचान उजागर करते हैं।

By Krishna Bihari SinghEdited By: Published: Thu, 27 May 2021 06:54 PM (IST)Updated: Thu, 27 May 2021 06:57 PM (IST)
बॉम्‍बे हाई कोर्ट ने निचली अदालत को आदेश दिया है कि वह अपने फैसले से पीडि़ता की पहचान को हटाए।

पणजी, एजेंसियां। पत्रकार तरुण तेजपाल को 2013 के दुष्कर्म मामले से बरी करने वाली सत्र अदालत को बांबे हाई कोर्ट की गोवा पीठ ने गुरुवार को आदेश दिया कि वह तीन दिन में अपने फैसले में उन सभी संदर्भों को संपादित करे जो पीडि़ता की पहचान उजागर करते हैं। उसके बाद ही फैसले को अदालत की वेबसाइट पर अपलोड किया जाए। जस्टिस एससी गुप्ते की अवकाशकालीन पीठ गोवा सरकार द्वारा दाखिल अपील पर सुनवाई कर रही थी।

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इसमें सत्र न्यायाधीश क्षमा जोशी द्वारा मामले से तरुण तेजपाल को बरी करने संबंधी 21 मई के फैसले को चुनौती दी गई है। तहलका के प्रधान संपादक तेजपाल पर गोवा के एक पांच सितारा होटल की लिफ्ट में 2013 में अपनी तत्कालीन सहयोगी पर यौन हमला करने का आरोप लगाया गया था।

गोवा सरकार की ओर से पेश सालिसिटर जनरल तुषार मेहता ने गुरुवार को हाई कोर्ट से कहा कि फैसले में की गई टिप्पणियां और पीडि़ता के बारे में ज्यादातर निष्कर्ष अचंभित करने वाले हैं। फैसले को अभी अदालत की वेबसाइट पर अपलोड और सार्वजनिक किया जाना है, इसमें विभिन्न पैराग्राफ पीडि़ता की पहचान उजागर करते हैं। यह अपराध है। उन्होंने कहा कि फैसले में पीडि़ता की मां, उनके पति और पीडि़ता की ईमेल आइडी उजागर की गई है जो अप्रत्यक्ष रूप से उसकी पहचान उजागर करती है।

जस्टिस एससी गुप्ते ने आदेश पारित करते हुए कहा, 'ऐसे अपराधों में पीड़िता की पहचान उजागर करने के खिलाफ कानून पर विचार करते हुए यह न्याय के हित में है कि इन संदर्भों को संपादित कर दिया जाए। लिहाजा ट्रायल कोर्ट को निर्देश दिया जाता है कि फैसले को अदालत की वेबसाइट पर अपलोड करने से पहले पीडि़ता की पहचान उजागर करने वाले संदर्भों को संपादित करे।' इसके बाद मेहता ने कहा, यह दुखद है कि हाई कोर्ट को यह आदेश देना पड़ा। ट्रायल कोर्ट को इस मसले के प्रति संवेदनशील रहना चाहिए था।


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