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    निसंतान हिंदू विधवा की मौत के बाद किसकी होगी संपत्ति? सुप्रीम कोर्ट ने सुनाया फैसला

    Updated: Thu, 25 Sep 2025 07:58 AM (IST)

    सुप्रीम कोर्ट ने हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम की धारा पर सुनवाई करते हुए कहा कि विवाह के बाद महिला का गोत्र बदल जाता है जो सदियों से चली आ रही परंपरा है। कोर्ट ने यह भी कहा कि वह इस परंपरा को तोड़ना नहीं चाहता। मामला निःसंतान हिंदू विधवा की संपत्ति के उत्तराधिकार से जुड़ा है जिसमें संपत्ति ससुराल वालों को मिलती है।

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    कोर्ट ने कहा कि हिंदू विवाह में जब कोई महिला शादी करती है, तो उसका गोत्र बदल जाता है।

    डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम (HSA) की उस धारा पर सुनवाई के दौरान एक अहम टिप्पणी की है जिसमें कहा गया है कि निःसंतान हिंदू विधवा की मृत्यु के बाद उसकी संपत्ति उसके मायके के बजाय ससुराल वालों को मिलती है।

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    कोर्ट ने कहा कि हिंदू विवाह में जब कोई महिला शादी करती है, तो उसका गोत्र बदल जाता है और यह परंपरा हजारों वर्षों से चली आ रही है।

    न्यायमूर्ति बी.वी. नागरत्ना ने कहा कि हिंदू समाज में 'कन्यादान' की अवधारणा है। इसके तहत विवाह के समय महिला का गोत्र बदलकर उसके पति के गोत्र में शामिल हो जाता है। गौरतलब है कि न्यायमूर्ति बी.वी. नागरत्ना सुप्रीम कोर्ट की इकलौती महिला जज हैं।

    कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि वह ऐसी परंपरा को तोड़ना नहीं चाहता, जो सदियों से चली आ रही है।

    क्या है पूरा मामला?

    मामला एक निःसंतान हिंदू विधवा की संपत्ति के उत्तराधिकार से जुड़ा है, जो बिना वसीयत के मर जाती है। मौजूदा कानून के तहत, ऐसी स्थिति में संपत्ति मायके के बजाय ससुराल वालों को दी जाती है। कोर्ट में कई याचिकाओं के जरिए यह सवाल उठा कि क्या यह प्रावधान उचित है।

    एक मामले में कोविड-19 के कारण एक युवा दंपति की मृत्यु हो गई और अब पुरुष की मां और महिला की मां के बीच संपत्ति को लेकर कानूनी जंग छिड़ी है।

    पुरुष की मां का दावा है कि उसे पूरी संपत्ति मिलनी चाहिए, जबकि महिला की मां अपनी बेटी की कमाई और संपत्ति पर हक जताती है। एक अन्य मामले में निःसंतान दंपति की मृत्यु के बाद पुरुष की बहन संपत्ति पर दावा कर रही है। याचिकाकर्ता के वकील ने कोर्ट को बताया कि यह एक जनहित का मामला है और सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप की जरूरत है।

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    'कन्यादान' और 'गोत्र-दान' की परंपरा

    न्यायमूर्ति बी.वी. नागरत्ना और आर. महादेवन की बेंच ने याचिकाकर्ता के वकील से कड़े सवाल किए। न्यायमूर्ति नागरत्ना ने कहा कि हिंदू विवाह में 'कन्यादान' और 'गोत्र-दान' की परंपरा के तहत महिला अपने पति और उसके परिवार की जिम्मेदारी में आती है।

    उन्होंने यह भी कहा कि एक विवाहित महिला अपने भाई के खिलाफ भरण-पोषण का दावा नहीं करती। खासकर दक्षिण भारत में विवाह के रीति-रिवाजों में यह साफ किया जाता है कि महिला एक गोत्र से दूसरे गोत्र में जाती है।

    न्यायमूर्ति नागरत्ना ने यह भी कहा कि अगर कोई महिला चाहे तो वह वसीयत के जरिए अपनी संपत्ति का बंटवारा कर सकती है या दोबारा विवाह भी कर सकती है।

    हालांकि, मौजूदा कानून (HSA की धारा 15(1)(b)) के तहत, यदि किसी निःसंतान विधवा की बिना वसीयत के मौत हो जाती है और उसने दोबारा विवाह नहीं किया है तो उसकी संपत्ति उसके पति के वारिसों को मिलती है, न कि उसके मायके के लोगों की मिलती है।

    सुप्रीम कोर्ट ने एक संपत्ति विवाद के मामले को मध्यस्थता के लिए भेजते हुए इस धारा की वैधता पर सुनवाई को नवंबर तक के लिए स्थगित कर दिया।

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