'अदालतें धन वसूली की एजेंट नहीं', SC ने की बड़ी टिप्पणी; व्यक्त की चिंता
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि अदालतें बकाया राशि की वसूली के लिए एजेंट नहीं हैं और दीवानी विवादों को आपराधिक मामलों में बदलने की प्रवृत्ति की निंदा की है। अदालत ने कहा कि बकाया राशि की वसूली के लिए गिरफ्तारी की धमकी नहीं दी जा सकती। कोर्ट ने पुलिस को सलाह दी कि गिरफ्तारी से पहले विवेक का प्रयोग करें।

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि बकाया धनराशि की वसूली के लिए अदालतें वसूली एजेंट नहीं हैं। दीवानी विवादों को आपराधिक मामलों में बदलने की प्रवृत्ति की निंदा करते हुए अदालत ने कहा कि न्यायिक प्रणाली के इस दुरुपयोग की अनुमति नहीं दी जा सकती।
जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस एन. कोटिश्वर सिंह की पीठ ने यह टिप्पणी करते हुए कि बकाया राशि की वसूली के लिए गिरफ्तारी की धमकी नहीं दी जा सकती। हाल में यह चलन बन गया है कि धन वसूली के लिए आपराधिक मामले दर्ज करा दिए जाते हैं, जो विशुद्ध रूप से दीवानी विवाद होता है। शीर्ष अदालत ने ये टिप्पणियां सोमवार को उत्तर प्रदेश के एक आपराधिक मामले में कीं, जिसमें धन वसूली के विवाद में एक व्यक्ति पर अपहरण के आरोप लगा दिए गए थे।
एएसजी बोले, बीच में फंस जाती है पुलिस
उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से एडिशनल सालिसिटर जनरल केएम नटराज ने ऐसी शिकायतों में बढ़ोतरी की ओर इशारा किया और कहा कि ऐसे मामलों में पुलिस बीच में फंस जाती है क्योंकि जहां संज्ञेय अपराध का आरोप लगाया जाता है और वह मामला दर्ज नहीं करती है, तो अदालत उसे फटकार लगाती है।
अगर वह मामला दर्ज करती है, तो उस पर पक्षपात और कानून की उचित प्रक्रिया का पालन नहीं करने का आरोप लगाया जाता है। आमतौर पर इन शिकायतों में धन वसूली के विवाद में आपराधिक अपराध का आरोप लगाया जाता है।
रिटायर्ड जज को नोडल अधिकारी नियुक्त कर पुलिस ले सकती है परामर्श
जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि वह पुलिस की दुविधा को समझते हैं। पीठ ने पुलिस को सलाह दी कि किसी व्यक्ति को गिरफ्तार करने से पहले वह अपने विवेक का प्रयोग करके देखे कि यह दीवानी मामला है या आपराधिक। आपराधिक कानून का ऐसा दुरुपयोग न्याय प्रणाली के लिए गंभीर खतरा पैदा कर रहा है।
शीर्ष कोर्ट ने नटराज को सुझाव दिया कि राज्य सरकार प्रत्येक जिले में एक नोडल अधिकारी नियुक्त कर सकती जो एक सेवानिवृत्त जिला हो सकते हैं। पुलिस उनसे परामर्श कर सकती है को कोई अपराध दीवानी है या आपराधिक। उसके बाद कानून के अनुसार आगे बढ़ सकती है।
पीठ ने इस बाबत दो सप्ताह में अदालत को सूचित करने को कहा। शीर्ष अदालत हाल ही में बार-बार पक्षकारों द्वारा शिकायतों के शीघ्र निपटान के लिए दीवानी विवादों में आपराधिक मामले दर्ज कराने की हालिया प्रवृत्ति पर चिंता व्यक्त करती रही है।
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