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'क्या किसी व्यक्ति की जानकारी के बिना उसके खिलाफ आपराधिक कार्यवाही शुरू हो सकती है'

सिब्बल ने पीएमएलए के कुछ प्रविधानों को चुनौती देने वाले याचिकाकर्ताओं की ओर से कहा कि आपराधिक न्याय प्रणाली में आपराधिक जांच से जुड़ी कोई भी प्रक्रिया खुली होनी चाहिए। एक व्यक्ति को यह बताए बिना बुलाया जा रहा है कि वह एक आरोपित है या गवाह।

By Monika MinalEdited By: Published: Wed, 26 Jan 2022 06:20 AM (IST)Updated: Wed, 26 Jan 2022 06:25 AM (IST)
'क्या किसी व्यक्ति की जानकारी के बिना उसके खिलाफ आपराधिक कार्यवाही शुरू हो सकती है'

नई दिल्ली, प्रेट्र। प्रिवेंशन आफ मनी लांड्रिंग एक्ट (पीएमएलए) के कुछ प्रविधानों की व्याख्या से संबंधित मुद्दों पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट में यह सवाल रखा गया कि क्या किसी व्यक्ति को उसके खिलाफ मामले की जानकारी दिए बगैर आपराधिक कार्यवाही शुरू की जा सकती है। जस्टिस एएम खानविलकर, जस्टिस दिनेश महेश्वरी और जस्टिस सीटी रविकुमार की पीठ से वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने कहा कि शीर्ष अदालत को पेश मामले में इस सवाल पर भी विचार करना होगा।

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सिब्बल पीएमएलए के कुछ प्रविधानों को चुनौती देने वाले याचिकाकर्ताओं की ओर से बहस कर रहे थे। उन्होंने पीठ से कहा कि आपराधिक न्याय प्रणाली में आपराधिक जांच से जुड़ी कोई भी प्रक्रिया खुली होनी चाहिए। एक व्यक्ति को यह बताए बिना बुलाया जा रहा है कि वह एक आरोपित है या गवाह। दलीलों के दौरान पीठ ने कहा कि भ्रष्ट तरीकों से अर्जित धन का पता लगाने के लिए कानून में संशोधन करना होगा। सिब्बल ने कहा कि वह इस पर विवाद नहीं कर रहे हैं और उनकी दलीलें संवैधानिक मुद्दे पर हैं।

PMLA(धन को अवैध रूप से देश से बाहर ले जाने की रोकथाम का कानून) पर आई आपत्तियों के बाबत दायर याचिकाओं में कुछ प्रविधानों पर आपत्ति जताई गई है। शीर्ष न्यायालय से इनका आशय परिभाषित करने की मांग की गई है। याचिकाओं में कहा गया है कि इन प्रविधानों के आधार पर प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) मनमानी कार्रवाई करता है।

कोरोना पाजिटिव होने के कारण अधिवक्ताओं को कोर्ट में पेश होने में हो रही थी कठिनाई

इससे पहले जस्टिस एएम खानविल्कर और जस्टिस सीटी रविकुमार की पीठ को सिब्बल ने बताया था कि उनके कुछ सहयोगी कनिष्ठ अधिवक्ता कोरोना संक्रमित हैं, इसके कारण उन्हें कोर्ट में पेश होने में कठिनाई आ रही है। रोहतगी ने भी अपने साथ ऐसी ही समस्या बताई। उन्होंने सुनवाई को चार या छह सप्ताह टालने का अनुरोध किया था।मामले में सोलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सुनवाई की जरूरत बताते हुए कहा था कि करीब 200 याचिकाओं पर सुनवाई होनी है। इनमें से कुछ याचिकाएं गंभीर प्रकृति के मामलों से जुड़े लोगों की हैं। उन्होंने जब तक सुनवाई चलेगी तब तक मामलों पर कार्रवाई की गति धीमी रहने की आशंका जताई थी।


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