Lok Sabha Election 2024: सीएए पर भरोसे और भ्रम का द्वंद्व; नागरिकता मिलने से बढ़ा विश्वास, बंगाल के चुनाव में कितना असर डालेगा मुद्दा?
West Bengal Lok Sabha Election 2024 सीएए यानी संशोधित नागरिकता कानून को लेकर पश्चिम बंगाल में भ्रम और द्वंद्व की स्थिति पैदा हो गई है। जहां भाजपा इसके फायदे बता रही है तो वहीं टीएमसी इसे लेकर खतरनाक साबित करने में लगी है। इस बीच इससे सबसे ज्यादा प्रभावित मतुआ समुदाय दोनों पहलुओं के बीच में फंसा है। जानिए बंगाल के चुनाव में इसका कितना होगा असर।

जयकृष्ण वाजपेयी, कोलकाता। इस चुनावी मौसम में संशोधित नागरिकता कानून (सीएए) पर बंगाल में भ्रम और भरोसे के बीच द्वंद्व छिड़ा है। एक तरफ प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह हैं, जो सीएए का विरोध करने वालों पर हमले बोल रहे हैं और संदेश दे रहे हैं कि कोई भी उनके रहते इस कानून को खत्म नहीं कर सकता है।
उनका कहना है कि वे बांग्लादेश, पाकिस्तान, अफगानिस्तान से आए हिंदू, बौद्ध, सिख, जैन और ईसाई शरणार्थियों को नागरिकता देकर ही रहेंगे। वहीं दूसरी ओर तृणमूल भ्रम और संदेह पैदा करने का कोई कोर कसर नहीं छोड़ रही है। विशेषकर मुख्यमंत्री व तृणमूल कांग्रेस सुप्रीमो ममता बनर्जी तो लगातार सीएए को लेकर तरह-तरह के बयान दे रही हैं, ताकि सीएए के चुनावी प्रभाव को कम किया जा सके।
आक्रामक है भाजपा
भाजपा इस मुद्दे को लेकर लगातार आक्रामक है। इसी कड़ी में 15 मई को 14 शरणार्थियों को सीएए के तहत नागरिकता प्रमाणपत्र दिए जाने की फोटो व खबरों को खूब प्रचारित व प्रसारित किया और कराया गया। इन प्रयासों से मतुआ समुदाय में सीएए के तहत नागरिकता प्राप्त करने के लिए आवेदन करने को लेकर जो उदासीनता होने की बातें कही जा रही थी वह अब धीरे-धीरे छटती दिख रही है।
मतुआ शरणार्थियों में भय व भ्रम
अब भी कुछ भ्रम और संदेह की स्थिति है। इसकी वजह ममता बनर्जी का भाषण है जो वह लगातार सीएए का विरोध कर देती आ रही हैं। उनका कहना है कि यह कानून नागरिकता छीनने और आवेदन करने वालों को डिटेंशन कैंप में डालने वाला है। यही नहीं वह रैलियों में कह रही हैं कि अगर उनकी केंद्र में सरकार बनती है तो सीएए को निरस्त किया जाएगा। इससे मतुआ शरणार्थियों में भय, भ्रम और संदेह पैदा हुआ है।
बनगांव लोकसभा क्षेत्र से सटे दत्तोपुकुर इलाके में रहने वाले मतुआ समुदाय के एक सदस्य पेशे से मूर्तिकार बिनय शंखारी से जब पूछा कि सीएए को लेकर आवेदन करेंगे तो उन्होंने कहा कि क्यों आवेदन करें, जब मेरा वोट, आधार से लेकर अन्य सभी तरह का कार्ड है तो फिर क्या जरूरी है। आवेदन कर कौन डिटेंशन कैंप में जाएगा। उनकी बातों से लगा कि वे बनर्जी की बातों से प्रभावित हैं।
सीएए को लेकर विभाजन की रेखा स्पष्ट
बांग्लादेश में अत्याचार और उत्पीड़न के बाद भागकर आए मतुआ समुदाय का सबसे बड़ा गढ़ या आस्था व विश्वास का स्थान उत्तर 24 परगना जिले के बनगांव स्थित ठाकुरनगर है। यहां मतुआ समुदाय में देवता माने जाने वाले श्रीश्री हरिचांद ठाकुर और गुरुचांद ठाकुर का बड़ा मंदिर है। यहीं पर मतुआ महासंघ का मुख्यालय भी है। यहां भी सीएए को लेकर विभाजन की रेखा स्पष्ट है।
मतुआ समुदाय जिन्हें अपना भगवान मानते हैं, उन्हीं हरिचांद ठाकुर के परिवार के दो सदस्य एक शांतनु ठाकुर हैं, जो भाजपा के निवर्तमान सांसद और केंद्रीय मंत्री हैं और दूसरी बार चुनावी मैदान में हैं। उनकी चाची ममताबाला ठाकुर हैं, जो तृणमूल कांग्रेस से राज्यसभा सदस्य हैं। मतुआ समुदाय के महासंघ प्रमुख को लेकर चाची और भतीजे के बीच की लड़ाई हाई कोर्ट तक पहुंच चुकी है।
शांतनु ठाकुर खुद को महासंघ प्रमुख मानते हैं तो दूसरी ओर उनकी चाची भी खुद को महासंघ प्रमुख मानती हैं। इसीलिए शायद ठाकुर नगर के मंदिर प्रांगण में ही सीएए विरोधी बड़े-बड़े पोस्टर दिखाई दिए, जिसपर सीएए को लेकर लिखा है कि अगर आपने आवश्यक दस्तावेज नहीं दिए तो आप पर अवैध घुसपैठिये होने का तमगा चस्पा दिया जाएगा। शायद यही वजह है कि बिनय शंखारी जैसे मतुआ सदस्य सीएए को लेकर सशंकित हैं।
आवदेन करने वालों की संख्या बढ़ी
एक अन्य दृश्य भी ठाकुरनगर में दिखा यहां मतुआ महासंघ के मुख्यालय में सीएए के तहत आवदेन करने के लिए आने वाले लोगों की संख्या 15 मई के बाद से बढ़ी है। ऐसा ही एक मतुआ शरणार्थी समर हलदर कोलकाता के राजारहाट न्यूटाउन से ठाकुरनगर महासंघ कार्यालय अपनी बूढ़ी मां और दस्तावेज के साथ पहुंचे थे। वे महासंघ के दफ्तर में पूछताछ कर रहे थे कि सीएए को लेकर कैसे आवेदन होगा। वहां मौजूद एक कर्मचारी ने उनसे कहा कि इस समय चुनाव को लेकर सभी लोग व्यस्त हैं, इसीलिए 20 मई के बाद ऑनलाइन आवेदन प्रक्रिया शुरू की जाएगी।
14 हजार लोग कर चुके हैं आवेदन
शांतनु ठाकुर ने दैनिक जागरण से बात करते हुए दावा किया कि अब तक करीब 14000 लोगों ने सीएए के तहत आवेदन किए हैं। उन्होंने महासंघ कार्यालय के निकट लगे सीएए विरोधी पोस्टर को लेकर भी प्रतिक्रया दी और कहा कि तृणमूल ने लगवाया है। इससे कुछ नहीं होने वाला है। डिटेंशन कैंप और अन्य बातें बेमानी हैं।
11 लोकसभा सीटों पर है प्रभाव
यह मतुआ समुदाय अनुसूचित जाति वर्ग में आते हैं और इनका बंगाल में 70 से अधिक विधानसभा और 11 लोकसभा सीटों पर प्रभाव है। यही वजह है कि इस समुदाय की श्री हरिचांद व गुरुचांद ठाकुर के वंशज प्रमथा रंजन ठाकुर और उनकी पत्नी वीणापाणि देवी उर्फ बड़ो मां जब तक जिंदा थीं, तो सभी दलों के शीर्ष नेता उन्हें प्रणाम करने के लिए पहुंचते थे।
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बड़ो मां ने मतुआ महासंघ की छत्रछाया में पूरे समुदाय को एकजुट किया और उन्हें भारतीय नागरिकता दिलाने के लिए कई आंदोलन किए थे। आज उन्हीं के पौत्र शांतनु सीएए के तहत नागरिकता दिलाने की कोशिश कर रहे हैं तो दूसरी ओर उनकी बहू ममताबाला विरोध में खड़ी हैं।
तृणमूल ने बनंगाल में वोट विभाजित करने के लिए इस सीट से मतुआ नेता बिश्वजीत दास को मैदान में उतारा है। 20 मई को बनगांव लोकसभा सीटे के लिए मतदान भले ही संपन्न हो गया है, लेकिन इस जिले की तीन और सीटों पर वोटिंग अभी बाकी है। इसमें बशीरहाट वाली सीट है जहां अनुसूचित जाति और जनजाति की आबादी बड़ी है। अब देखना है कि भरोसा या फिर भ्रम के इस द्वंद्व को मतुआ समुदाय कैसे खत्म करते हैं।
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