खबरदार! एचआइवी पीड़ित लोगों से अधिक है आलस की वजह से मरने वालों की संख्या
आलसी बने रहना डायबिटीज, दिल के रोग, और एचआईवी से पीडि़त होने से कहीं अधिक खतरनाक है।
नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। घर में पांव-पसार का बैठना या बिस्तर पर लेटना भला किसे अच्छा नहीं लगता। इसमें भी यदि एक आवाज पर सारी चीजें आपके बिना कुछ किए वहीं मिल जाए तो ये सोने पे सुहागा होने जैसा ही है। हालांकि यह कहना भी गलत नहीं होगा कि हममें से ज्यादातर लोगों की ख्वाहिश कुछ ऐसा ही समय बिताने की होती है। लेकिन आपको बता दें कि यदि यही आपकी दिनचर्या का हिस्सा है तो यह आपके लिए बेहद खतरनाक है। इसकी गंभीरता का अंदाजा आप इस बात से भी लगा सकते हैं कि सिर्फ इसी आलस की वजह से दुनियाभर में लाखों लोगों की जान चली जाती है।
कहीं अधिक खतरनाक
आपको जानकर हैरत होगी कि इसकी गिनती एचआइवी की वजह से मरने वालों से कहीं अधिक है। ऐसे लोगों का जीवन डायबिटीज, दिल के रोगियों एवं धूम्रपान करने वालों के मुकाबले ज्यादा जोखिमभरा है। एक रिसर्च में यह बात सामने आई है कि जो लोग ज्यादा समय बैठे रहने में बिताते हैं उन्हें जान का खतरा बढ़ जाता है। एरिजोना स्टेट यूनिवर्सिटी स्थित मायो क्लिनिक की डायरेक्टर डॉक्टर जेम्स का मानना है कि बदलते दौर में अधिक समय तक बैठे रहना या आलस कई बीमारियों से अधिक खतरनाक है। शोध में इसको लेकर कई तथ्य सामने आ रहे हैं। शोध में यह भी सामने आया है कि कैंसर और टाइप टू डायबिटीज समेत दिल के रोग से भी कहीं अधिक नुकसानदेह है। एक ताजा शोध में यह बात भी सामने आई है कि भारत में ही करीब छह करोड़ से अधिक लोग डायबिटीज से पीडि़त हैं। वहीं करीब आठ करोड़ लोग प्री डायबिटीक हैं। देश में किडनी खराब होने का सबसे बड़ा कारण भी डायबिटीक होना होता है।

तकनीक ने बनाया आलसी
इंसान की जिंदगी और दिनचर्या में तकनीक का इस हद तक दखल पड़ चुका है कि सुबह उठने से लेकर सोने तक हर काम बिना मेहनत और आसानी से किया जा सकता है। ऐसे में लोग ज्यादा सुस्त हो चुके हैं। इंटरनेट क्रांति के बाद औद्योगिक क्षेत्रों में कंप्यूटर के बढ़ते इस्तेमाल ने इंसान के दिमाग को भी काफी हद तक निष्क्रिय कर दिया है।
पैसे की चमक-धमक भी बनी वजह
गरीब देशों की तुलना में ब्रिटेन और अमेरिका जैसे संपन्न देशों 37 फीसद लोग पर्याप्त शारीरिक गतिविधि नहीं करते हैं। मध्य आय वर्ग वाले देश के लिए यह आंकड़ा 26 फीसद और निम्न आय वर्ग के लिए यह 16 फीसद है। यानी गरीब देशों में सुविधा विहीन लोग अपनी जीविका के लिए ज्यादा काम करते हैं।
खतरे में जीवन
आपको यहां पर ये भी बता दें कि अंतरराष्ट्रीय मेडिकल जर्नल लैंसेट में प्रकाशित अध्ययन के मुताबिक अपर्याप्त शारीरिक गतिविधियों की वजह से पूरी दुनिया में 1.4 अरब लोगों की जिंदगी खतरे में है। दुनिया में हर तीन में से एक महिला और हर चार में से एक पुरुष इस समस्या प्रवृत्ति से ग्रसित है। दुखद यह है कि तमाम गंभीर रोगों में साल-दर साल सुधार दिखा है, लेकिन यह रोग लाइलाज होता जा रहा है। 2001 से इस प्रवृत्ति में कोई सुधार नहीं दिखा है। भारत में 25 फीसद पुरुष और 50 फीसद महिलाएं इसी श्रेणी में आते हैं।
महिलाएं आगे
सभी देशों में महिलाएं पुरुषों की तुलना में ज्यादा निष्क्रिय हैं, लेकिन पूर्वी और दक्षिण पूर्वी एशिया, मध्य एशिया, दक्षिण एशिया और पश्चिम एशिया, उत्तरी अफ्रीका और उच्च आय के पश्चिमी देशों में ये फर्क ज्यादा है। इसकी वजह है कि कई देशों में महिलाएं घर के बाहर काम नहीं करती हैं। घर और बच्चों की देखभाल में महिलाएं सामान्य व्यायाम के लिए भी समय नहीं निकाल पाती हैं। सामाजिक-सांस्कृतिक मान्यताएं भी एक कारण है।
बचाक के करें उपाय
- सप्ताह में 150 मिनट ऐसे व्यायाम करें जिनकी शुरुआत धीमी हो लेकिन धीरे-धीरे उसमें तेजी आए। या हफ्ते में 75 मिनट ऐसे व्यायाम करें जिसमें तेजी से कैलोरी खर्च हो।
- मांशपेशियों को मजबूत करने वाली कसरत हफ्ते में कम से कम दो दिन करें।
- लंबे समय तक बैठने से परहेज करें।
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