नई दिल्ली, अनुराग मिश्र। दिल्ली-एनसीआर में अचानक से आई प्रदूषण की घनी चादर किसी एक वजह से नहीं बनी है। विशेषज्ञों का मानना है कि यह मानव जनित गलतियों, प्राकृतिक कारणों और दुर्भाग्य से बने संयोगों का मिला-जुला असर है। पंजाब में जल रही पराली, दिल्ली में चल रहे कंस्ट्रक्शन का दुष्प्रभाव, अचानक हवाओं की रफ्तार थमने और प्रदूषक तत्वों के बाहर न निकल पाने के दुर्योग और मौसम में बढ़ी ठंडक रूपी दुर्घटना ने दिल्ली-एनसीआर को गैस चैंबर में तब्दील कर दिया है। विशेषज्ञों का मानना है कि अगले 15 दिन तक हालात बदलने वाले नहीं हैं।

जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) के पर्यावरण विभाग के प्रोफेसर सुदेश यादव कहते हैं, दिल्ली में प्रदूषण का स्तर काफी ज्यादा हो चुका है। मिक्सिंग हाईट कम होने की वजह से भी प्रदूषक कणों का फैलाव हवा में नहीं हो पाता है, जिससे यह वातावरण में फंसे रह जाते हैं। गर्मी में मिक्सिंग हाईट तीन किमी तक होती है, जबकि ठंड में यह 1.5 किमी से लेकर 300 मीटर तक रह जाती है। इसकी वजह से प्रदूषण बढ़ जाता है। मौजूदा समय में हवा की गति कम होने की वजह से भी प्रदूषण का स्तर बढ़ रहा है। हवा की गति अधिक होने की स्थिति में वह प्रदूषकों को फैला देती है।

यादव कहते हैं कि स्थिर तापमान, ठहरी हवा, मिक्सिंग हाईट और पराली, निर्माण कार्य से बढ़े प्रदूषण के कॉकटेल ने स्थिति को अधिक विकराल बना दिया है। बाहरी राज्यों से आ रहा पराली का धुआं मुसीबत को दोगुना कर रहा है। सर्दियों के मौसम में पराली का धुंआ उत्तर और उत्तर-पश्चिम दिशा से आने लगता है, जिससे दिल्ली सबसे अधिक प्रभावित होती है। निर्माण कार्य की वजह से प्रदूषकों को बढ़ना भी दिल्ली में प्रदूषण का बड़ा कारण है। निर्माण कार्यों की वजह से पार्टिकुलेट मैटर का प्रदूषण सबसे अधिक बढ़ता है।

बाबा साहब भीमराव अंबेडकर यूनिवर्सिटी के पर्यावरण विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर डा. शैलेंद्र कुमार यादव कहते हैं कि मौसमी बदलाव प्रदूषण का बड़ा कारण है। दिवाली बीते साल अक्तूबर माह में थी, जो इस साल नवंबर में पड़ रही है। ऐसे में इस बार ऐसा लग रहा है कि दिवाली के पहले प्रदूषण ज्यादा हो गया है। अमूमन ज्यादातर इस माह में प्रदूषण रिकॉर्ड खतरनाक स्तर पर पहुंच जाता है। तापमान के गिरने, हवा की गति कम होने से प्रदूषण बढ़ रहा है। जितनी हवा चलेगी उतना प्रदूषण कम होगा। यही नहीं इनवर्जन लेयर के नीचे होने से भी प्रदूषण का स्तर बढ़ता है। इनवर्जन लेयर विभिन्न कारणों से बनती है। यह लेयर सूर्य की रोशनी को नीचे नहीं आने देती, जिससे जमीन की सतह का तापमान बढ़ नहीं पाता और स्मॉग की मोटी लेयर नीचे ही बन जाती है। इस स्मॉग में कोहरा, धुआं और प्रदूषण का मिश्रण होता है। हवा कम होती है, जिससे यह स्मॉग साफ नहीं हो पाता। वहीं दिल्ली में ठंड बढ़ने पर लैंडलॉक्ड स्थिति बन जाती है, जिससे हवाएं बंधने लगती है। डॉ. शैलेंद्र कहते हैं कि मॉनिटरिंग बढ़ने से इस बात की जानकारी मिलना शुरू हुई है कि कौन से प्रदूषण तत्वों का प्रतिशत अधिक है, लेकिन इसके लिए छोटे-छोटे सामूहिक प्रयास करने ज्यादा जरूरी हैं।

आईपी यूनिवर्सिटी के पर्यावरण विभाग के प्रोफेसर एन.सी. गुप्ता कहते हैं कि अक्तूबर में धान की फसल मैच्योर होती है। किसानों को इसके निस्तारण के बारे में कोई बेहतर आईडिया नहीं होता है। ऐसे में वह पराली को जलाते हैं जिसका असर दिल्ली-एनसीआर और पंजाब में होता है। पराली और पार्टिकुलेट मैटर से होने वाला धुआं 90 दिनों में सैटल होता है। अक्तूबर माह में एटमॉस्फिरक बाउंड्री लेयर बेहद कम हो जाती है। वह कहते हैं कि दिल्ली के कंबर के तौर पर मान सकते हैं यह जितना बड़ा होगा उतना ही प्रदूषण कम होगा। गर्मी में यह लेयर तीन किमी तक होती है जबकि इस मौसम में यह पांच सौ मीटर तक हो जाती है।

चावल की ऐसी प्रजाति विकसित की जाए इसकी बुआई जल्दी हो और कटाई अक्तूबर के पहले हफ्ते तक हो जाए तो इससे पराली के प्रदूषण को रोका जा सकता है।

आईपी यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर एन.सी. गुप्ता कहते हैं कि अगर किसान पराली न जलाए तो दूरगामी परिस्थिति में उनकी आय बढ़ सकती है। संभव है कि किसानों को जब तक ये बात समझ आए बहुत देर हो चुकी हो। लेकिन अगर वो इस बात को समझ जाएं तो तो उनकी आय तो बढ़ेगी ही उनके खेतों में हरियाली भी बढ़ेगी। देश के कई इलाकों में मिट्टी में आर्गेनिक कार्बन की कमी दर्ज की जा रही है जिसको लेकर विशेषज्ञ चिंता जता रहे हैं। वह कहते हैं कि इससे जमीन की उर्वरा शक्ति भी प्रभावित होते हैं। इसके वैकल्पिक इस्तेमालों को बढ़ाना होगा। प्लाईवुड इंडस्ट्री में इसका इस्तेमाल किया जा सकता है। इसके लिए विशेषज्ञों, स्टॉर्टअप को बड़ी तादाद में आगे आना होगा ताकि इसका दीर्घकालिक हल तलाशा जा सकें।

क्या है मिक्सिंग हाईट

यह हवा तथा निलंबित कणों की सतह के ऊपर लंबवत मिश्रण की ऊंचाई को बताता है। यह ऊंचाई वायुमंडलीय तापमान प्रोफाइल के अवलोकन से निर्धारित होती है। पृथ्वी की सतह से उठने वाली वायु प्रकोष्ठ में एक निश्चित दर (शुष्क-एडियाबेटिक लैप्स दर) से तापमान में परिवर्तन होता है। जब तक वायु प्रकोष्ठ का तापमान आसपास के परिवेश के तापमान से अधिक गर्म होता है, तब तक तापमान में गिरावट जारी रहती है, लेकिन जब वायु प्रकोष्ठ पर्यावरण के तापमान से अधिक ठंडा हो जाता है तो आगे तापमान में कमी देखने को नहीं मिलता है। यह ऊंचाई मिक्सिंग हाइट को निर्धारित करती है। उच्च मिक्सिंग हाइट होने पर प्रदूषण में कमी आती है। सुदेश यादव कहते हैं कि आप इसे छत की तरह भी मान सकते हैं। अगर छत की ऊंचाई अधिक होगी तो हवा को फैलने का अधिक मौका मिलेगा।

क्या है इनवर्जन लेयर

इनवर्जन लेयर उस लेयर को कहते हैं, जिसके ऊपर तापमान अधिक होता है। जबकि नीचे जमीन की सतह से लेकर करीब 300 से 400 फीट ऊपर तक तापमान कम होता है। हालांकि सामान्य मौसम में इसका उल्टा होता है। यानी जैसे-जैसे ऊंचाई बढ़ती जाती है, तापमान घटता जाता है।

अक्टूबर में दिल्ली की वायु गुणवत्ता 2020 के बाद से सबसे खराब

इस साल अक्टूबर में दिल्ली की वायु गुणवत्ता 2020 के बाद से सबसे खराब रही और मौसम विज्ञानियों ने इसके लिए वर्षा की कमी को जिम्मेदार ठहराया। दिल्ली में अक्टूबर 2023 में केवल एक दिन (5.4 मिमी वर्षा) हुई, जबकि अक्टूबर 2022 में छह दिन (129 मिमी) और अक्टूबर 2021 में सात दिन (123 मिमी) बारिश हुई थी।

पड़ोसी राज्यों से आ रहा प्रदूषण

ऑस्ट्रिया स्थित इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट फॉर अप्लायड सिस्टम एनालिसिस और नागपुर स्थित इंवायरनमेंटल इंजीनियरिंग रिसर्च इंस्टीट्यूट (नीरी) ने संयुक्त रूप से दिल्ली के प्रदूषण पर शोध किया है। इसमें कहा गया है कि दिल्लीवासी पीएम 2.5 से प्रदूषित हवा के लिए 40 फीसद जिम्मेदार हैं, जबकि 60 फीसद परेशानी की वजह पड़ोसी राज्य हैं। शोध के अनुसार, दिल्ली की हवा पड़ोसी राज्यों पंजाब, हरियाणा आदि से अधिक जहरीली हो रही है। रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है कि अगर ऐसे ही हालात रहे तो आने वाले दिनों में दिल्ली में स्थिति और खराब होगी।

रिपोर्ट को मार्कस एमन, पल्लव पुरोहित और एमरिक बेरटोक ने तैयार किया है। शोधकर्ताओं का कहना है कि दिल्ली के वातावरण में मौजूद पीएम 2.5 के लिए वाहनों को जिम्मेदार माना जाता है। लेकिन असलियत यह है कि वाहन सिर्फ 20 फीसद पीएम 2.5 के लिए जिम्मेदार हैं। वातावरण में अधिक घातक कण, खेती से जुड़ी गतिविधियों, सड़कों की धूल और नगरपालिका का कूड़ा और बायोमास से पहुंच रहे हैं।

मौसम का असर

मौसम वैज्ञानिक समरजीत चौधरी कहते हैं कि साउथ वेस्ट मानसून के जाने के साथ ही हवा की रफ्तार धीमी हो जाती है। अगले 10 दिन तक हवा की रफ्तार बढ़ने की संभावना कम है। उत्तर से आने वाली हवाएं पराली जलाने से निकला धुआं और अन्य तरह का प्रदूषण लेकर दिल्ली-एनसीआर की ओर आ रही हैं। गिरता तापमान और बढ़ती आर्द्रता ने मुश्किल बढ़ाई है। हवा में आर्द्रता का स्तर लगभग 90 फीसदी पर बना हुआ है। ऐसे में हवा में मौजूद प्रदूषक कण लम्बे समय तक हवा में फंसे हुए हैं। फिलहाल हवा की स्पीड बेहद कम है। दोपहर के समय हवा की स्पीड लगभग 8 से 10 किलोमीटर प्रति घंटा तक पहुंचती है। लेकिन जब तक ये 15 से 20 किलोमीटर प्रति घंटा तक नहीं पहुंचती, हवा में प्रदूषण का स्तर घटने की संभावना कम है।

जहर का कॉकटेल

इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट फॉर अप्लायड सिस्टम एनालिसिस के पॉल्यूशन मैनेजमेंट रिसर्च ग्रप के सीनियर रिसर्च स्कॉलर पल्लव पुरोहित ने जागरण प्राइम को बताया कि वातावरण में सबसे अधिक घातक अजैविक एयरोसॉल का निर्माण बिजली घरों, उद्योगों और ट्रैफिक से निकलने वाली सल्फ्यूरिक एसिड और नाइट्रोजन ऑक्साइड और कृषि कार्यों से पैदा होने वाले अमोनिया के मेल से होता है। 23 फीसद प्रदूषण की वजह यह कॉकटेल है।

पूरे देश की समस्या बना प्रदूषण

सीएसई के विवेक चट्टोपध्याय के मुताबिक, प्रदूषण आपकी उत्पादकता को प्रभावित करता है क्योंकि अगर आप सेहतमंद नहीं होंगे तो कार्यक्षेत्र में बेहतर नहीं कर पाएंगे। विवेक कहते हैं कि वायु प्रदूषण को घटाने के लिए सरकार अगर सही कदम उठाए और इसको नियंत्रित कर सके तो इससे जीडीपी को होने वाले नुकसान को काफी कम किया जा सकता है।

क्या होते हैं पर्टिकुलेट मैटर

पर्टिकुलेट मैटर (PM) वातावरण में मौजूद ठोस कणों और तरल बूंदों का मिश्रण है। हवा में मौजूद कण इतने छोटे होते हैं कि आप नग्न आंखों से नहीं देख सकते हैं। कुछ कण इतने छोटे होते हैं कि केवल इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोप का उपयोग करके पता लगाया जा सकता है। कण प्रदूषण में पीएम 2.5 और पीएम 10 शामिल हैं जो बहुत खतरनाक होते हैं। पर्टिकुलेट मैटर विभिन्न आकार के होते हैं और यह मानव और प्राकृतिक दोनों स्रोतों के कारण से हो सकता है। स्रोत प्राइमरी और सेकेंडरी हो सकते हैं। प्राइमरी स्रोत में ऑटोमोबाइल उत्सर्जन, धूल और खाना पकाने का धुआं शामिल हैं। सेकेंडरी स्रोत सल्फर डाइऑक्साइड और नाइट्रोजन ऑक्साइड जैसे रसायनों की जटिल प्रतिक्रिया हो सकती है। इनके अलावा जंगल की आग, लकड़ी के जलने वाले स्टोव, उद्योग का धुआं, निर्माण कार्यों से उत्पन्न धूल वायु प्रदूषण आदि अन्य स्रोत हैं। ये कण आपके फेफड़ों में चले जाते हैं, जिससे खांसी और अस्थमा के दौरे पड़ सकते हैं। उच्च रक्तचाप, दिल का दौरा, स्ट्रोक और भी कई गंभीर बीमारियों का खतरा बन जाता है।

सेहत के लिए हानिकारक है पराली का धुआं

दिल्ली में इन दिनों पड़ोसी राज्यों से पराली का धुंआ आ रहा है, जो सेहत के लिए हानिकारक है। इससे वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड, कार्बन मोनोआक्साइड और मीथेन जैसी जहरीली गैसें घुलती हैं, जो सांस व आंखों के रोग पैदा करती हैं। सेंटर फॉर साइंस एंड इंवायरनमेंट (CSE) की कार्यकारी निदेशक (रिसर्च और एडवोकेसी) अनुमिता रायचौधरी के अनुसार, प्रदूषण के चलते दिल्ली की हवा में खतरनाक गैसों का स्तर भी लगातार बढ़ रहा है। हवा में ओजोन का स्तर मानक से अधिक दर्ज किया जा रहा है। वहीं, स्मॉग के चलते हवा में कार्बन मोनो ऑक्साइड का स्तर भी मानकों से अधिक बना हुआ है। दिल्ली मेडिकल काउंसिल की साइंटफिक कमेटी के चेयरमैन डा. नरेंद्र सैनी कहते हैं कि जब से हवा में प्रदूषण बढ़ा है सांस के मरीजों की संख्या तेजी से बढ़ी है। इलाज के लिए अचानक से आने वाले मरीजों में सांस की बीमारी, फेफडे में गंभीर संक्रमण, गले में खराश और इंफेक्शन सहित श्वसन तंत्र में संक्रमण के मरीजों की संख्या 50 फीसदी से ज्यादा बढ़ी है। नेशनल कैंसर रजिस्ट्री प्रोग्राम आईसीएमआर बेंगलुरु के डायरेक्टर डॉ. प्रशांत माथुर कहते हैं कि प्रदूषण भी इसमें बड़ा रोल अदा कर रहा है। प्रदूषण में सिर्फ प्रदूषित हवा ही नहीं है बल्कि आसपास धूम्रपान करनेवाला वातावरण, फैक्टरी और धुंआ है। इसके अलावा घरों के अंदर होने वाले प्रदूषण इसमें लकड़ी-केरोसिन का उपयोग, किचन में निकलने वाले केमिकल भी हैं।

इस तरह घटेगा प्रदूषण

देश में प्रदूषण नियंत्रण के लिए प्रदूषण के मानकों को सख्ती से पालन कराने की जरूरत है। पूरे भारत में बीएस 6 का नियम लागू है, पर बहुत सी पुरानी गाड़ियां चल रही हैं। पब्लिक ट्रांसपोर्ट सिस्टम काफी कमजोर है। इसे मजबूत करना होगा। सड़कों पर प्राइवेट गाड़ियां लगातार बढ़ रही हैं ऐसे में लोगों को भारी जाम और प्रदूषण की समस्या का सामना करना पड़ रहा है। प्रदूषण पर लगाम लगाने के लिए पावर प्लांट के नियम सख्त किए जाने की जरूरत है। इलेक्ट्रिक गाड़ियों को तेजी से बढ़ावा देना होगा। एसयूवी और टू व्हीलर को इलेक्ट्रिक करना होगा। पूरे भारत वर्ष में क्लीन फ्यूल के इस्तेमाल का अभियान चलाना होगा। हमें सामूहिक प्रयास करने होंगे। कूड़े के प्रबंधन, बेहतर पब्लिक ट्रांसपोर्ट सिस्टम सहित कई अन्य प्रयास करने होंगे। सेंटर फॉर साइंस एंड इंवायरनमेंट की अनुमिता रॉय चौधरी के मुताबिक अरावली और रिज इलाकों में पेड़ों की संख्या बढ़ाने के साथ ही हमें दिल्ली और एनसीआर के चारों ओर एक पेड़ों की एक ग्रीन वॉल बनानी होगी। वहीं शहर में गाड़ियों की संख्या घटाने और सड़कों और फुटपाथ को बेहतर बनाने भी प्रदूषण कम होगा। सड़कें टूटी होने पर धूल ज्यादा उड़ती है।

स्मॉग क्या है?

फॉग से अलग स्मॉग धुएं और प्रदूषण का मिश्रण होता है, जो सेहत के लिए बेहद हानिकारक होता है। हवा में सल्फर डाइऑक्साइड (SO2) और बेंजीन जैसी हानिकारक गैसों की उच्च मात्रा में मौजूदगी की वजह से स्मॉग होता है, जो देखने में हल्का ग्रे रंग का नजर आता है। इसका सेहत पर बेहद नकारात्मक असर पड़ता है। स्मॉग की वजह से विजिबिलिटी तो कम होती ही है। डब्ल्यूएचओ के मुताबिक स्मॉग की वजह से आंखों में जलन, स्ट्रोक, हृदय रोग, फेफड़ों का कैंसर और रेस्पिरेटरी सिस्टम से जुड़ी बीमारियों का खतरा भी बढ़ जाता है।