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सिर्फ एक सफल उद्योगपति ही नहीं बल्कि एक कुशल पायलट और अच्‍छे इंसान भी थे JRD Tata

जेआरडी टाटा के व्‍यक्तित्‍व से पूरी दुनिया परिचित है। भारत में तो हर घर में उनकी पहचान एक विश्‍वास के तौर पर है।

By Kamal VermaEdited By: Published: Tue, 28 Jul 2020 06:42 PM (IST)Updated: Wed, 29 Jul 2020 07:51 AM (IST)
सिर्फ एक सफल उद्योगपति ही नहीं बल्कि एक कुशल पायलट और अच्‍छे इंसान भी थे JRD Tata
सिर्फ एक सफल उद्योगपति ही नहीं बल्कि एक कुशल पायलट और अच्‍छे इंसान भी थे JRD Tata

नई दिल्‍ली (ऑनलाइन डेस्‍क)। जहांगीर रतनजी दादाभाई टाटा भारत में वो नाम है जो आज भी बेहद सम्‍मान के साथ लिया जाता है। जेआरडी टाटा बेहद अमीर परिवार में जन्‍म लेने के बाद भी जमीन से जुड़े हुए इंसान थे। हालांकि उनके जीवन भी चुनौतियों से घिरा हुआ था, लेकिन वो हर चुनौती का सामना करते हुए आगे बढ़ते चले गए। टाटा स्‍टील के अलावा एयर इंडिया की कमान संभालने वाले टाटा खुद एक बेहतरीन कमर्शियल पायलट थे। अपने व्‍यस्‍त जीवन में से वो इसके लिए भी समय निकाल ही लिया करते थे।

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29 जुलाई 1904 को फ्रांस की राजधानी पेरिस में पैदा हुए जेआरडी की शुरुआती शिक्षा भी वहीं हुई थी। उन्‍होंने बाद में वहां की सेना में भी अपनी सेवाएं दी। इसकी वजह थी कि वे हर वक्‍त कुछ नया करने और सीखने के जुनूनी व्‍यक्ति थे। जब उनके पिता को इसका पता चला तो उन्‍होंने जेआरडी को भारत वापस बुला लिया। 1930 में जेआरडी का विवाह थेलमा से हुआ था। 29 नवंबर 1993 को स्विट्जरलैंड के जेनेवा शहर में 89 वर्ष की उम्र में भारत रत्‍‌न जेआरडी टाटा ने अंतिम सांस ली थी। उनकी मृत्यु के कुछ ही दिनों बाद उनकी धर्मपत्‍‌नी थेलमा का भी निधन हो गया। भारत सरकार ने 26 जनवरी 1955 को जेआरडी को पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया। 26 जनवरी 1992 को उन्‍हें भारत के सर्वोच्च सम्मान 'भारत रत्‍‌न' की उपाधि से अलंकृत किया गया था। इसके अलावा परिवार नियोजन एवं जनसंख्या नियंत्रण के क्षेत्र में अमूल्य योगदान के लिए 'संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या पुरस्कार' प्रदान किया गया।  

पुत्र के तौर पर

पिता की सलाह पर वे 1924 में सेना की नौकरी छोड़कर भारत आ गए और पिता के साथ कारोबार की बारीकियां सीखीं। उन्होंने अपना व्यवसायिक प्रशिक्षण टाटा उद्योग के मुंबई स्थित मुख्यालय में जेसीके पीटर्सन के मार्गदर्शन में आरंभ किया। 1926 में वो जमशेदपुर गए। यहां पर उन्होंने टाटा आयरन एंड स्टील कंपनी के कार्यो के अध्ययन किया। पिता की मौत के बाद जेआरडी को महज 26 साल की उम्र में टाटा संस लिमिटेड का डायरेक्‍टर बनाया गया था। इसके बाद वो लगातार सफलता की सीढि़यां चढ़ते चले गए। 1938 में टाटा स्टील के तत्कालीन अध्यक्ष सर एनबी सकलतवाला के निधन के बाद उन्‍हें टाटा स्टील का अध्यक्ष मनोनीत किया गया। वे इस पद पर लगातार 46 वर्ष तक काम करते रहे और अपना अनुभव भी साझा करते रहे। टाटा स्टील के वर्तमान विस्तृत रूप में जेआरडी टाटा का बहुत बड़ा योगदान रहा है।

उद्योगपति के तौर पर

जिस वक्‍त जेआरडी ने टाटा समूह की जिम्मेदारी अपने कंधों पर ली थी उस वक्‍त समूह की केवल 14 कंपनियां ही थीं, लेकिन पांच दशक बाद उन्‍होंने इसके अतर्गत 95 कंपनियां ला दी थींं। यह उनकी कार्य कुशलता और उनका जज्‍बा ही था कि इतने कम समय में उन्‍होंने ये कारनाम करके दिखाया था। टाटा समूह की शीर्ष संस्था टाटा संस का चेयरमैन बनने के बाद उनका एक आरंभिक और महत्वपूर्ण कदम था, समूह की सभी कंपनियों को स्वायत्तता प्रदान करना। उनका यह कदम टाटा घराने के विकास और विस्तार में वरदान सिद्ध हुआ। 25 सितंबर 1953 को उन्हें अमेरिका के राष्ट्रीय फोरमैन संघ द्वारा सर्वश्रेष्ठ अंतर्राष्ट्रीय प्रबंधक से सम्मानित किया गया। 

पायलट के तौर पर

10 फरवरी 1929 को ही जेआरडी को प्रथम भारतीय पायलट के रूप में लाइसेंस मिला था। मई 1930 में उन्होंने 'आगा खां उड्डयन प्रतियोगिता' में दूसरा स्थान हासिल किया था। 15 अक्टूबर 1932 को उन्‍होंने कराची से मुंबई के बीच उड़ान भरकर टाटा एविएशन सर्विस की शुरुआत की थी। 8 मार्च 1947 को जेआरडी द्वारा स्थापित एयर इंडिया एक संयुक्त प्रक्षेत्र की कंपनी बनी थी। आजाद भारत में 1 अगस्त 1953 को एयर इंडिया का राष्ट्रीयकरण किया गया और जेआरडी उसके चेयरमैन बनाए गए। 15 अक्टूबर 1966 को भारतीय वायु सेना ने उन्हें एयर कोमोडोर की मानद उपाधि दी। इतना ही नहीं उड्डयन जगत के क्षेत्र में अदम्य साहस के प्रतीक बन चुके जेआरडी को 1974 में एयर वाइस मार्शल की मानद उपाधि से विभूषित किया गया। 15 अक्टूबर 1982 को भारतीय नागरिक उड्डयन की स्वर्ण जयंती पर जेआरडी ने एक बार फिर कराची-मुंबई की उड़ान भरी। फ्रांस सरकार द्वारा भी उन्हें 'फ्रेंच लीजन ऑफ ऑनर' से विभूषित किया गया।

समाजसेवी के तौर पर

जन कल्याण के क्षेत्र में भी जेआरडी ने अद्वितीय योगदान किया। उनका मानना था कि मनुष्य का महत्व मशीन से कम नहीं है। उनकी देखभाल करना एक अच्छे प्रबंधन से अपेक्षित है। उनके मार्गदर्शन में ही टाटा स्टील में पर्सनल विभाग की स्थापना हुई। समाज कल्याण की योजनाएं भी विकसित होती गई। ग्रामीण विकास, सामुदायिक विकास समेत विभिन्न ट्रस्टों सहित कई महत्वपूर्ण संस्थाएं जेआरडी की दूरदृष्टि का ही परिणाम है। 

अपने कर्मचारियों के गार्जियन के तौर पर

1956 में टाटा स्टील और टाटा वर्कर्स यूनियन के बीच एक ऐतिहासिक समझौता हुआ। इस समझौते की नींव खुद जेआरडी ने ही रखी थी। इसके फलस्‍वरूप संयुक्त परामर्श प्रणाली का जन्म हुआ। जमशेदपुर स्थित टाटा स्‍टील का ये इतिहास रहा है कि वहां पर बीते छह दशकों में कभी भी कोई औद्योगिक अशांति जन्‍म नहीं ले सकी। जेआरडीकी दूरदृष्टि ने श्रम और पूंजी को एक-दूसरे का पूरक बना दिया और उद्योग प्रबंधन में श्रमिकों की भागीदारी का एक नया अध्याय शुरू हुआ।

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