नई एयरलाइन कंपनी बनाने की क्या है प्रकिया? क्यों आसान नहीं है हवाई सफर का बिजनेस
भारत में नई एयरलाइन कंपनी शुरू करने की प्रक्रिया जटिल है। हवाई सफर का बिजनेस कई चुनौतियों से भरा है। इसमें लाइसेंस प्राप्त करने से लेकर सुरक्षा मानकों ...और पढ़ें

नई एयरलाइन को सबसे पहले नागरिक उड्डयन मंत्रालय से नो ऑब्जेक्शन सर्टिफिकेट यानी एनओसी लेना होता है। (जागरण)
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। भारत सरकार ने तीन नई एयरलाइंस को मंजूरी दे दी है। इस फैसले को घरेलू उड्डयन मार्केट में प्रतिस्पर्धा बढ़ाने की ओर से सरकार के एक कदम के तौर पर देखा जा रहा है।
नए एयरलाइन्स के शुरू होने से इंडिगो और एयर इंडिया ग्रुप पर निर्भरता कम होगी। इन नई एयरलाइंस से क्षेत्रीय कनेक्टिविटी को भी मजबूती मिलने की उम्मीद है।
नागरिक उड्डयन मंत्रालय ने शंख एयर, अल हिंद एयर और फ्लाईएक्सप्रेस को नो ऑब्जेक्शन सर्टिफिकेट (एनओसी) देकर इसे मंजूरी दी है। शंख एयर को पहले ही एनओसी मिल चुकी थी, जबकि अल हिंद एयर और फ्लाईएक्सप्रेस को यह मंजूरी हाल ही में दी गई। यह कदम हाल की इंडिगो की बड़े पैमाने पर उड़ान रद होने की घटना के बाद उठाया गया है।
नई एयरलाइंस कब शुरू होंगी?
एनओसी मिलने का मतलब यह नहीं है कि ये एयरलाइंस तुरंत उड़ानें शुरू कर देंगी। यह केवल एयरलाइंस शुरू करने की प्रक्रिया को आगे बढ़ाने की अनुमति भर है। कंपनियों को अभी एयर ऑपरेटर सर्टिफिकेट (एओसी) हासिल करना होगा, विमान खरीदने होंगे और अन्य नियामक जरूरतेपूरी करनी होंगी।

शंख एयर (उत्तर प्रदेश आधारित) 2026 की पहली तिमाही में उड़ानें शुरू करने की योजना बना रही है। अल हिंद एयर (केरल आधारित, क्षेत्रीय फोकस) और फ्लाईएक्सप्रेस भी जल्द ऑपरेशंस शुरू करने की तैयारी में हैं, लेकिन सटीक तारीख अभी स्पष्ट नहीं है।
इस आर्टिकल में समझते हैं कि कैसे किसी एयरलाइन की शुरूआत की जाती है और कंपनी मालिकों को ऐसा करने के लिए कितने पायदान चढ़ने होते हैं?
भारत में नई एयरलाइन शुरू करना केवल हवाई जहाज खरीद लेने या टिकट बेचने तक सीमित नहीं है। यह एक लंबी, जटिल और कई स्तरों पर होने वाली कानूनी, तकनीकी और प्रशासनिक प्रक्रिया है।
सरकार इस क्षेत्र को बेहद संवेदनशील मानती है, क्योंकि इसका सीधा संबंध यात्रियों की सुरक्षा, राष्ट्रीय सुरक्षा और अंतरराष्ट्रीय नियमों से जुड़ा होता है। इसलिए कोई भी नई एयरलाइन तभी उड़ान भर सकती है, जब वह सभी नियमों, कानूनों और मानकों पर खरी उतरे।
लेकिन सबसे पहले किसी भी कंपनी को यह तय करना होता है कि वह किस तरह की एयरलाइन शुरू करना चाहती है। यानी घरेलू यात्री सेवा, कार्गो सेवा या चार्टर ऑपरेशन में किस तरह की सेवाएं देना चाहती है।
इसके बाद कंपनी को भारत में पंजीकृत होना जरूरी होता है और उसका मुख्यालय देश के भीतर होना चाहिए। भारत की एफडीआई नीति और विमानन नियमों में साफ किया गया है कि यह भी अनिवार्य है कि कंपनी का स्वामित्व और नियंत्रण भारतीय नागरिकों के हाथ में हो।
इसके बाद कंपनी एक विस्तृत बिजनेस प्लान तैयार करती है। इसमें यह बताया जाता है कि एयरलाइन किन रूट्स पर उड़ान भरेगी, कितने विमान होंगे, वित्तीय संसाधन क्या हैं, यात्रियों की सुरक्षा कैसे सुनिश्चित की जाएगी।
इस दौरान सबसे अहम होता है कि अगर कंपनी घाटा झेलती है तो वह उस वक्त कैसे उबरेगी। ये सारे दस्तावेज आगे चलकर सरकार और नियामक संस्थाओं के सामने जांच का आधार बनता है।

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मंजूरी कैसे मिलती है?
अब प्लानिंग तो कर ली लेकिन बात है कि मंजूरी मिलेगी कैसे? कौन देगा? दरअसल नई एयरलाइन को सबसे पहले नागरिक उड्डयन मंत्रालय से नो ऑब्जेक्शन सर्टिफिकेट यानी एनओसी लेना होता है। यह मंजूरी यह साबित करती है कि सरकार को प्रस्तावित एयरलाइन के अस्तित्व पर कोई आपत्ति नहीं है।
एनओसी के लिए आवेदन करते समय कंपनी को विस्तार से:
- अपने प्रमोटर्स की जानकारी देनी होती है
- फंडिंग का स्रोत बताना होता है।
- शेयरहोल्डिंग पैटर्न डिटेल्स शेयर करना होता है
- भविष्य की संचालन की योजना बतानी होती है
एनओसी मिलने के बाद असली तकनीकी परीक्षा शुरू होती है। इसके लिए नागरिक उड्डयन महानिदेशालय यानी डीजीसीए से एयर ऑपरेटर सर्टिफिकेट लेना जरूरी होता है।
डीजीसीए यह जांचता है कि एयरलाइन के पास योग्य पायलट, प्रशिक्षित केबिन क्रू, इंजीनियर, मेंटेनेंस सिस्टम और सेफ्टी मैनेजमेंट सिस्टम मौजूद हैं या नहीं। इस प्रक्रिया में कई चरणों पर ऑडिट, डॉक्यूमेंट वेरिफिकेशन और ट्रायल फ्लाइट्स कराई जाती हैं।
इसके अलावा एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया से स्लॉट अलॉटमेंट, सुरक्षा एजेंसियों से क्लियरेंस और पर्यावरण मंत्रालय से जरूरी अनुमति भी लेनी होती है। यह पूरी प्रक्रिया अक्सर कई महीनों से लेकर कुछ साल तक खिंच जाती है, क्योंकि हर स्तर पर नियमों का सख्ती से पालन कराया जाता है।
नेशनल लेवल की एयरलाइन बिजनेस के लिए क्या हो इंफ्रास्ट्रक्चर?
यदि कोई कंपनी सिर्फ एक छोटी एयरलाइन नहीं, बल्कि राष्ट्रीय स्तर की मजबूत एयरलाइन बनना चाहती है। यानी ऐसी एयरलाइन जो देश में बड़े पैमाने पर मुसाफिरों को सफर करा सके, तो उसे भारी निवेश और व्यापक इंफ्रास्ट्रक्चर की जरूरत होती है।
इसमें सबसे पहले आधुनिक और भरोसेमंद विमानों के बेड़ों की दरकार होती है। ये विमान नियामक संस्थाओं और सुरक्षा मानकों की परिभाषाओं से मेल खाते हों। इसके अलावा विमानों की खरीद या लीजिंग, दोनों ही मामलों में अरबों रुपये का निवेश करना पड़ता है।
इसके साथ ही मेंटेनेंस, रिपेयर और ओवरहॉल फसिलिटी विकसित करनी होती हैं, ताकि विमानों की सुरक्षा और समय पर उड़ान सुचारू ढंग से हो सके। पायलट और तकनीकी स्टाफ की ट्रेनिंग के लिए सिम्युलेटर, अकादमी और वेरिफाइड ट्रेनर भी जरूरी होते हैं।
कंपनी को अपनी आईटी सिस्टम भी चाहिए होता है। मसलन टिकट बुकिंग, फ्लाइट शेड्यूलिंग, क्रू मैनेजमेंट और कस्टमर सपोर्ट के लिए मजबूत डिजिटल सिस्टम के बिना राष्ट्रीय स्तर पर संचालन संभव नहीं है। इसके अलावा देश के अलग-अलग एयरपोर्ट्स पर कार्यालय, ग्राउंड हैंडलिंग एजेंसियां और कार्गो सुविधाएं भी विकसित करनी पड़ती हैं।

कौन से मानकों का ध्यान रखना जरूरी होता है?
भारत में एयरलाइन संचालन के लिए कई कानून और नियम लागू होते हैं। इनमें एयरक्राफ्ट एक्ट, एयरक्राफ्ट रूल्स, डीजीसीए के सिविल एविएशन रिक्वायरमेंट्स, एविएशन सेफ्टी मैनुअल्स और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आईकाओ के मानक शामिल हैं।
यात्रियों की सुरक्षा सर्वोच्च प्राथमिकता होती है। इसके तहत उड़ान से पहले जांच, आपातकालीन प्रक्रियाएं, क्रू का मेडिकल फिटनेस और विमानों का नियमित ऑडिट अनिवार्य है। इसके अलावा उपभोक्ता अधिकार, टिकट रिफंड, फ्लाइट कैंसलेशन और शिकायत निवारण से जुड़े नियमों का पालन भी जरूरी होता है।
पर्यावरण से जुड़े मानकों को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। ध्वनि प्रदूषण, ईंधन उत्सर्जन और एयरपोर्ट संचालन से जुड़े पर्यावरणीय नियमों का पालन करना कानूनी बाध्यता है। सुरक्षा के लिहाज से गृह मंत्रालय और खुफिया एजेंसियों के निर्देशों का पालन भी अनिवार्य होता है।

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