Sam Manekshaw: गुस्से में ज्वाइन की थी ARMY, 1971 में पाक को खदेड़ बांग्लादेश बनाने वाले सैम बहादुर की कहानी
Field Marshal Sam Manekshaw भारतीय सेना के पहले फील्ड मार्शल जनरल सैम मानेकशॉ का जन्म 3 अप्रैल 1914 को हुआ था। मानेकशॉ ने किस तरह अपने अदम्य साहस से देश की सेना को नई ऊंचाइयां दी। आइए जानते हैं इस आर्टिकल में...
वर्षा सिंह, नई दिल्ली। India First Field Marshal Sam Manekshaw: अपने दोस्तों के बीच सैम के नाम से जाने जाने वाले भारत के पहले फील्ड मार्शल सैम होर्मुसजी फ्रामजी जमशेदजी मानेकशॉ का जन्म 3 अप्रैल, 1914 को हुआ था।
उनकी प्रारंभिक शिक्षा अमृतसर और शेरवुड कॉलेज नैनीताल में हुई थी। मानेकशॉ भारतीय सैन्य अकादमी के लिए चुने जाने वाले 40 कैडेटों के पहले बैच के थे और उन्हें 4 फरवरी 1934 को 12 एफएफ राइफल्स में कमीशन किया गया था। सैम मानेकशॉ को उनके दोस्त, उनकी पत्नी, उनके नाती, उनके अफसर या उनके मातहत या तो उन्हें सैम कह कर पुकारते थे या "सैम बहादुर"।
बता दें कि 1971 की जंग में पाकिस्तान को हराने और नया मुल्क बांग्लादेश बनाने का पूरा श्रेय सिर्फ फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ को जाता है। सैम मानेकशॉ के 4 दशक के सैन्य करियर में 5 युद्ध शामिल हैं। सैम मानेकशॉ इंडिया के पहले फील्ड मार्शल थे। उनका यह सफर बेहद दिलचस्प रहा है।
कौन हैं सैम मानेकशॉ?
सैम मानेकशॉ भारतीय सेना के पहले 5 स्टार जनरल और पहले ऑफिसर जिन्हें फील्ड मार्शल की रैंक पर प्रमोट किया गया था।
इंतिहास में इंडियन आर्मी का शायद ही कोई ऐसा जनरल हो, जिसने राष्ट्रीय स्तर पर इतनी लोकप्रियता कभी हासिल की हो, जितनी सैम को मिली थी। उनके निधन को 14 साल हो गए हैं, लेकिन आज तक उनकी बहादुरी के किस्से और उनके जोक्स लोगों के बीच चर्चा का विषय बने रहते हैं।
क्यों हुए थे फौज में शामिल?
सैम मानेकशॉ का पूरा नाम होरमुजजी फ्रामजी जमशेदजी मानेकशॉ था, लेकिन बचपन से ही निडर और बहादुरी की वजह से इनके चाहने वाले इन्हें सैम बहादुर के नाम से पुकारते थे।
अमृतसर में पले सैम पापा की तरह डॉक्टर बनना चाहता थे। इसके लिए वो लंदन जाना चाहता थे, क्योंकि उनके दो भाई पहले से ही वहां इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहे थे। पापा ने कहा- तुम अभी छोटे हो। इस बात से गुस्सा होकर सैम ने इंडियन मिलिट्री में शामिल होने के लिए फॉर्म भरा और सेलेक्ट हो गए।
पीएम को कहा था- ‘स्वीटी’
जब साल 1971 में तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने सैम मानेकशॉ से लड़ाई के लिए तैयार रहने पर सवाल किया था। इस बात के जवाब में सैम मानेकशॉ ने कहा था, ‘आई एम ऑलवेज रेडी, स्वीटी’। सैम मानेकशॉ द्वारा कही गई ये बात बहुत फेमस हुई थी।
इंदिरा गांधी का विरोध करने में सबसे आगे
1971 की लड़ाई में इंदिरा गांधी चाहती थीं कि वह मार्च में ही पाकिस्तान पर चढ़ाई कर दें, लेकिन सैम ने ऐसा करने से इनकार कर दिया, क्योंकि भारतीय सेना हमले के लिए तैयार नहीं थी।
इंदिरा गांधी इससे नाराज हुईं थी। मानेकशॉ ने पूछा कि अगर आप युद्ध जीतना चाहती हैं तो मुझे छह महीने का समय दीजिए। मैं गारंटी देता हूं कि जीत हमारी ही होगी।
3 दिसंबर को फाइनली वॉर शुरू हुआ। सैम ने पाकिस्तानी सेना को सरेंडर करने को कहा, लेकिन पाकिस्तान नहीं माना। 14 दिसंबर, 1971 को भारतीय सेना ने ढाका में पाकिस्तान के गवर्नर के घर पर हमला कर दिया।
इसके बाद 16 दिसंबर को ईस्ट पाकिस्तान आजाद होकर ‘बांग्लादेश’ बन गया। इसी जंग में पाकिस्तान के 93 हजार सैनिकों ने आत्मसमर्पण भी किया।
सैम मानेकशॉ बनना चाहते थे डॉक्टर
फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ को भारतीय सेना के प्रमुख जनरल एनसी विज ने इंडियन आर्मी के कॉन्क्लेव में बुलाया था। यह कार्यक्रम 23 अक्टूबर 2004 को हुआ था। इसके बाद फील्ड मार्शल मीडिया से बातचीत की थी, तब उनकी आयु 90 वर्ष 6 महीने और 13 दिन थी।
मीडिया से बात करते वक्त वह बहुत खुश नजर आ रहे थे। सैम मानेकशॉ ने बातचीत में कहा कि वह अपने पिता की तरह ही डॉक्टर बनना चाहते थे, लेकिन पिता ने कहा कि उन्हें थोड़ा और बड़ा हो जाना चाहिए। इस बीच उनका आर्मी में चयन हो गया और उन्होंने इसी में अपना करियर बनाया।
फील्ड मार्शल की उपाधि पाने वाले पहले भारतीय जनरल
सैन मानेकशॉ को अपने सैन्य करियर के दौरान कई सम्मान प्राप्त हुए थे। 59 साल की उम्र में उन्हें फील्ड मार्शल की उपाधि से नवाजा गया था। यह सम्मान पाने वाले वह पहले भारतीय जनरल थे। 1972 में उन्हें पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया था।
एक साल बाद 1973 में वह सेना प्रमुख के पद से रिटायर हो गए थे। सेवानिवृत्ति के बाद वह तमिलनाडु के वेलिंग्टन चले गए। वेलिंग्टन में ही वर्ष 2008 में उनका निधन हो गया था।
सैम मानेकशॉ बने इंडियन आर्मी के 8वें चीफ
गोरखा रेजीमेंट से आने वाले सैम मॉनेकशॉ इंडियन आर्मी के 8वें चीफ थे। वो सेना के शायद पहले ऐसे आर्मी चीफ थे जिन्होंने प्रधानमंत्री को दो टूक जवाब दिया था और कहा था कि इंडियन आर्मी अभी पाकिस्तान के साथ युद्ध के लिए तैयार नहीं है।
सैम मानेकशॉ को सन् 1971 में पाकिस्तान पर मिली जीत का मुख्य नायक माना जाता है। मानकेशॉ ने अपने चार दशक के मिलिट्री करियर में पांच युद्ध में योद्धा की भूमिका निभाई थी।
1971 में पाकिस्तान के साथ हुआ युद्ध एक ऐसे युद्ध के तौर पर जाना जाता है, जिसकी चर्चा आज 21वीं सदी की पीढ़ी भी करती है। अप्रैल 1971 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने सेना को बांग्लादेश की मदद करने और पाकिस्तान को सबक सिखाने के लिए अधिकृत कर दिया था।
अप्रैल 1971 में इंदिरा गांधी ने मानकेशॉ से पूछा था कि क्या वह पाकिस्तान के साथ जंग के लिए तैयार हैं? सैम ने इंदिरा गांधी को साफ-साफ कहा कि अगर अभी इंडियन आर्मी युद्ध के लिए जाती है तो फिर उसे हार से कोई नहीं बचा सकता है। उनके इस जवाब पर इंदिरा गांधी काफी नाराज हो गई थीं।
सरेंडर करने में ही है भलाई, पाकिस्तान को दी थी नसीहत
13 दिसंबर 1971 को फील्ड मार्शल मानेकशॉ ने पाकिस्तानी सैनिकों को चेतावनी दी थी। उन्होंने कहा था, ‘या तो आप सरेंडर कर दीजिए नहीं तो हम आपको खत्म कर देंगे।’
इस चेतावनी के 3 दिन बाद ही यानी 16 दिसंबर को भारतीय मिलिट्री के इतिहास की सबसे बड़ी घटना देखने को मिली, जब करीब एक लाख पाक सैनिकों ने हथियार डाल दिए थे।
ढाका जो पूर्वी पाकिस्तान में था और अब बांग्लादेश की राजधानी है, वहां पर पाक सेना ने सरेंडर किया था। भारतीय सेना की पूर्वी कमान के मुखिया लेफ्टिनेंट जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा के सामने पाकिस्तान की पूर्वी कमान के कमांडिंग ऑफिसर लेफ्टिनेंट जनरल एएके नियाजी की अगुआई में पाक सेना ने हथियार डाले। उस पल को आज भी कोई नहीं भूल पाता है।
वह इंडियन आर्मी के लिए एक गौरवशाली पलों में से एक है तो वहीं दूसरी तरफ पाक सेना का सबसे शर्मनाक पल बन गया। भारत ने पाकिस्तान को पूर्वी और पश्चिमी दोनों ही मोर्चों पर जवाब दिया था। यह जंग एक ऐसी जंग थी, जिसमें तीनों सेनाओं ने हिस्सा लिया और दुश्मन को करारी चोट पहुंचाई।
बर्मा के खिलाफ लिया था युद्ध में भाग
सैम मानेकशॉ ने पहले बर्मा अभियान में जापानियों के विरुद्ध कई कार्रवाइयों में भाग लिया। सितांग नदी पर जब वह जापानियों से भिड़ गए, तो पेगू और रंगून की ओर धकेलने के दौरान फील्ड मार्शल (तत्कालीन कैप्टन) मानेकशॉ ने घायल होने के बावजूद साहस और दृढ़ता के साथ अपनी कंपनी का नेतृत्व किया।
उनकी वीरता और नेतृत्व के लिए उन्हें मिलिट्री क्रॉस (MC) से सम्मानित किया गया। बाद में वे दूसरी बार फिर से घायल हो गए और उन्हें भारत ले जाया गया।
द्वितीय विश्व युद्ध में लगी थीं 7 गोलियां
अपने पूरे सैन्य करियर में सैम मानेकशॉ ने कई कठिनाइयों का सामना किया। छोटी-सी उम्र में ही उन्हें युद्ध में शामिल होना पड़ा था। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान सैम के शरीर में 7 गोलियां लगी थीं। सबने उनके बचने की उम्मीद ही छोड़ दी थी, लेकिन डॉक्टरों ने समय रहते सारी गोलियां निकाल दीं और उनकी जान बच गई।
यहां रहे हैं तैनात
• रॉयल स्कॉट्स
• 12 फ्रंटियर फोर्स रेजिमेंट
• 5 गोरखा राइफल्स
• 8 गोरखा राइफल्स
• 167 इन्फैंट्री ब्रिगेड
• 26 इन्फैंट्री डिवीजन
सीडीएस बनते-बनते रह गए थे जनरल मानेकशॉ
लेकिन ये बहुत कम लोगों को ध्यान में है कि आज से सैंतालिस साल पहले सीडीएस की नियुक्ति होते-होते रह गई थी।
1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के तुरंत बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने तय कर लिया था कि देश में चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ के तौर पर एक नए पद का निर्माण कर इस पर तत्कालीन थल सेनाध्यक्ष जनरल सैम मानेकशॉ को बिठा दिया जाए, लेकिन ऐसा हो न सका और जनरल मानेकशॉ को आखिरकार देश के पहले फील्ड मार्शल से ही संतोष करना पड़ा। इस तरह वो देश के पहले फाइव स्टार जनरल बने।
दरअसल आम तौर पर सेना के तीनों अंगों के प्रमुख ही अपनी गाड़ियों पर चार सितारे यानी 4 स्टार लगाते हैं, जबकि फील्ड मार्शल को अपनी गाड़ियों पर 5 सितारे यानी फाइव स्टार लगाने की इजाजत होती है और इसलिए फील्ड मार्शल को फाइव स्टार जनरल भी कहा जाता है।
कपड़ों के शौकीन थे सैम मानेकशॉ
मानेकशॉ को अच्छे कपड़े पहनने का शौक था। अगर उन्हें कोई निमंत्रण मिलता था, जिसमें लिखा हो कि अनौपचारिक कपड़ों में आना है तो वह निमंत्रण अस्वीकार कर देते थे।
दीपेंदर सिंह ने याद करते हुए बताया, "एक बार मैं यह सोच कर सैम के घर सफारी सूट पहन कर चला गया कि वह घर पर नहीं हैं और मैं थोड़ी देर में श्रीमती मानेकशॉ से मिल कर वापस आ जाऊंगा। लेकिन वहां अचानक सैम पहुंच गए।
मेरी पत्नी की तरफ देख कर बोले, तुम तो हमेशा की तरह अच्छी लग रही हो। लेकिन तुम इस "जंगली" के साथ बाहर आने के लिए तैयार कैसे हुई, जिसने इतने बेतरतीब कपड़े पहन रखे हैं?"
सैम चाहते थे कि उनके एडीसी भी उसी तरह के कपड़े पहनें, जैसे वह पहनते हैं, लेकिन ब्रिगेडियर बहराम पंताखी के पास सिर्फ एक सूट होता था।
एक बार जब सैम पूर्वी कमान के प्रमुख थे, उन्होंने अपनी कार मंगाई और एडीसी बहराम को अपने साथ बैठा कर पार्क स्ट्रीट के बॉम्बे डाइंग शो रूम चलने के लिए कहा।
वहां ब्रिगेडियर बहराम ने उन्हें एक ब्लेजर और ट्वीड का कपड़ा खरीदने में मदद की। सैम ने बिल दिया और घर पहुंचते ही कपड़ों का वह पैकेट एडीसी बहराम को पकड़ा कर कहा,"इनसे अपने लिए दो कोट सिलवा लो।"
इदी अमीन के साथ किया था भोज
एक बार युगांडा के सेनाध्यक्ष इदी अमीन भारत के दौरे पर आए। उस समय तक वह वहां के राष्ट्रपति नहीं बने थे। उनकी यात्रा के आखिरी दिन अशोक होटल में सैम मानेकशॉ ने उनके सम्मान में भोज दिया, जहां उन्होंने कहा कि उन्हें भारतीय सेना की वर्दी बहुत पसंद आई है और वो अपने साथ अपने नाप की 12 वर्दियां युगांडा ले जाना चाहते हैं।
सैम के आदेश पर रातोंरात कनॉट प्लेस की मशहूर दर्ज़ी की दुकान एडीज खुलवाई गई और करीब बारह दर्जियों ने रात भर जाग कर इदी अमीन के लिए वर्दियां सिलीं।
उनकी बेटी माया दारूवाला कहती हैं कि पिता (सैम) को खर्राटे लेने की आदत थी। उनकी मां सीलू और सैम कभी भी एक कमरे में नहीं सोते थे, क्योंकि सैम जोर-जोर से खर्राटे लिया करते थे।
एक बार जब वह रूस गए तो उनके लाइजन ऑफिसर जनरल कुप्रियानो उन्हें उनके होटल छोड़ने गए। जब वह विदा लेने लगे तो सीलू ने कहा, "मेरा कमरा कहां है?" रूसी अफसर परेशान हो गए।
सैम ने स्थिति संभाली, असल में मैं खर्राटे लेता हूँ और मेरी बीवी को नींद न आने की बीमारी है। इसलिए हम लोग अलग-अलग कमरों में सोते हैं।
यहां भी सैम की मजाक करने की आदत नहीं गई। रूसी जनरल के कंधे पर हाथ रखते हुए उनके कान में फुसफुसा कर बोले, "आज तक जितनी भी औरतों को वह जानते हैं, किसी ने उनके खर्राटे लेने की शिकायत नहीं की है सिवाए इनके।"
इंदिरा गांधी के साथ के कई किस्से हैं मशहूर
इंदिरा गांधी के साथ उनकी बेतकल्लुफी के कई किस्से मशहूर हैं। मेजर जनरल वीके सिंह कहते हैं, "एक बार इंदिरा गांधी जब विदेश यात्रा से लौटीं तो मानेकशॉ उन्हें रिसीव करने पालम हवाई अड्डे गए। इंदिरा गांधी को देखते ही उन्होंने कहा कि आपका हेयर स्टाइल जबरदस्त लग रहा है। इस पर इंदिरा गांधी मुस्कराईं और बोलीं, और किसी ने तो इसे नोटिस ही नहीं किया।
जनरल टिक्का खां से की थी मुलाकात
पाकिस्तान के साथ लड़ाई के बाद सीमा के कुछ इलाकों की अदला-बदली के बारे में बात करने सैम मानेकशॉ पाकिस्तान पहुंचे थे। उस समय जनरल टिक्का पाकिस्तान के सेनाध्यक्ष थे। पाकिस्तान के कब्जे में भारतीय कश्मीर की चौकी थाकोचक थी, जिसे छोड़ने के लिए वह तैयार नहीं थे।
जनरल एसके सिन्हा बताते हैं कि टिक्का खां सैम से 8 साल जूनियर थे और उनका अंग्रेजी में भी हाथ थोड़ा तंग था, क्योंकि वो सूबेदार के पद से शुरुआत करते हुए इस पद पर पहुंचे थे।
उन्होंने पहले से तैयार वक्तव्य पढ़ना शुरू किया, "देयर आर थ्री ऑल्टरनेटिव्स टू दिस।" इस पर मानेकशॉ ने उन्हें तुरंत टोका, "जिस स्टाफ ऑफिसर की लिखी ब्रीफ आप पढ़ रहे हैं उसे अंग्रेजी लिखनी नहीं आती है। ऑल्टरनेटिव्स हमेशा दो होते हैं, तीन नहीं। हां संभावनाएं या पॉसिबिलिटीज दो से ज्यादा हो सकती हैं।" सैम की बात सुन कर टिक्का इतने नर्वस हो गए कि हकलाने लगे और थोड़ी देर में वो थाकोचक को वापस भारत को देने को तैयार हो गए।
मानेकशॉ और याह्या खान
सैम मानेकशॉ की बेटी माया दारूवाला कहती हैं कि सैम अक्सर कहा करते थे कि लोग सोचते हैं कि जब हम देश को जिताते हैं तो यह बहुत गर्व की बात है, लेकिन इसमें कहीं न कहीं उदासी का पुट भी छिपा रहता है क्योंकि लोगों की मौतें भी होती हैं।
सैम के लिए सबसे गर्व की बात यह नहीं थी कि भारत ने उनके नेतृत्व में पाकिस्तान पर जीत दर्ज की। उनके लिए सबसे बड़ा क्षण तब था, जब युद्ध बंदी बनाए गए पाकिस्तानी सैनिकों ने स्वीकार किया था कि उनके साथ भारत में बहुत अच्छा व्यवहार किया गया था।
साल 1947 में मानेकशॉ और याह्या ख़ा दिल्ली में सेना मुख्यालय में तैनात थे। याह्या खान को मानेकशॉ की मोटरबाइक बहुत पसंद थी। वह इसे ख़रीदना चाहते थे, लेकिन सैम उसे बेचने के लिए तैयार नहीं थे।
याह्या ने जब विभाजन के बाद पाकिस्तान जाने का फैसला किया तो सैम उस मोटरबाइक को याह्या खान को बेचने के लिए तैयार हो गए और दाम लगाया गया 1,000 रुपए।
याह्या मोटरबाइक पाकिस्तान ले गए और वादा कर गए कि जल्द ही पैसे भिजवा देंगे। सालों बीत गए, लेकिन सैम के पास वह चेक कभी नहीं आया।
बहुत सालों बाद जब पाकितान और भारत में युद्ध हुआ तो मानेकशॉ और याह्या खान अपने अपने देशों के सेनाध्यक्ष थे। लड़ाई जीतने के बाद सैम ने मजाक किया, "मैंने याह्या खान के चेक का 24 सालों तक इंतज़ार किया लेकिन वह कभी नहीं आया। आखिर उन्होंने 1947 में लिया गया उधार अपना आधा देश देकर चुकाया।"
सैम मानेकशॉ का परिवार
सैम मानेकशॉ के माता-पिता
- पिता - होर्मुसजी मानेकशॉ (Hormusji Manekshaw) (डॉक्टर)
- माता - हिल्ला (Hilla) (गृहिणी)
सैम मानेकशॉ के भाई
- फली (Fali ) (बड़े भाई, इंजीनियर)
- जैन (Jan) (बड़े भाई, इंजीनियर)
- जेमी (Jemi) (छोटे भाई, रॉयल इंडियन एयर फ़ोर्स के चिकित्सा अधिकारी)
सैम मानेकशॉ की बहनें
- सिला (Sila) (बड़ी बहन, शिक्षिका)
- शेरू (Sheroo) (बड़ी बहन, शिक्षिका)
सैम मानेकशॉ की पत्नी
- सिल्लू बोड़े मानेकशॉ
सैम मानेकशॉ की बेटियां
- शेरी बाटलीवाला (Sherry Batliwala)
- माजा दारूवाला (Maja Daruwala)
इन लड़ाइयों में शामिल थे सैम मानेकशॉ
- द्वितीय विश्व युद्ध (World War 2, 1939)
- भारत विभाजन युद्ध (India Partition War, 1947)
- चीन भारतीय युद्ध (Sino Indian War, 1962)
- भारत पाकिस्तान युद्ध (India Pakistan War, 1965)
- भारत पाकिस्तान युद्ध (India Pakistan War, 1971)
पुरस्कार, सम्मान और उपलब्धियां
- मिलिट्री क्रॉस (Military Cross) (1942)
- बर्मा वीरता पुरस्कार (Burma Gallantry Award) (1942)
- 9 साल का लंबा सेवा पदक (9 Years Long Service Medal ) (1944)
- 1939-1945 स्टार (1939-1945 Star) (1945)
- बर्मा स्टार (Burma Star) (1945)
- युद्ध पदक (War Medal) (1945)
- भारत सेवा पदक (India Service Medal) (1945)
- सामान्य सेवा पदक (General Service Medal) (1947)
- 20 साल का लंबा सेवा पदक (20 Years Long Service Medal) (1955)
- पद्म भूषण (Padma Bhushan) (1968)
- पूर्वी स्टार (Poorvi Star ) (1971)
- पश्चिम स्टार (Paschimi Star ) (1971)
- पद्म विभूषण (Padma Vibhushan) (1972)
- संग्राम मेडल (Sangram Medal) (1972)
सैम मानेकशॉ के बारे में कुछ रोचक तथ्य
- सैम मानेकशॉ पहले भारतीय सेना अधिकारी थे, जिन्हें भारत में फील्ड मार्शल के पद से सम्मानित किया गया।
- जब सैम किशोरावस्था में थे, तो वह चिकित्सा की पढ़ाई करने के लिए लंदन जाना चाहते थे, लेकिन उसके पिता ने मना कर दिया। उन्होंने कहा कि उनके पिता उन्हें लंदन नहीं जाने देंगे, क्योंकि वह अकेले रहने के लिए बहुत छोटे हैं। जिसके बाद वह भारतीय सेना में शामिल हुए।
- वह 1932 में भारतीय सैन्य अकादमी, देहरादून के पहले बैच में शामिल हुए थे। उनके बैच में केवल 40 छात्र थे और उन्हें पायनियर्स कहा जाता था।
- द्वितीय विश्व युद्ध में ब्रिटिश सेना के लिए लड़ते हुए जब वे घायल हो गए तो उनके डिवीजनल कमांडर, सर डेविड टेनेंट कोवान ने सैम के सीने पर अपना मिलिट्री क्रॉस पिन कर दिया और कहा- "एक मृत व्यक्ति को मिलिट्री क्रॉस से सम्मानित नहीं किया जा सकता है"।
- 1960 के दशक की शुरुआत में उनके खिलाफ एक अदालती जांच का आदेश दिया गया था, जिससे उनका करियर खत्म हो सकता था। हालांकि, आरोप कभी सामने नहीं आए, लेकिन माना जाता है कि चीन के खिलाफ 1962 के युद्ध ने उन्हें बचा लिया और मानेकशॉ को 4 कॉर्प्स की कमान सौंपी गई।
- 8 जुलाई 1969 को सैम मानेकशॉ को इंदिरा गांधी सरकार द्वारा आठवें सेना प्रमुख के रूप में नियुक्त किया गया था।
- 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान सैम ने पाकिस्तान के खिलाफ भारतीय सेना का नेतृत्व किया था; जिसने दिसंबर 1971 में भारत की जीत और बांग्लादेश के निर्माण का नेतृत्व किया।
- अप्रैल 1971 में, इंदिरा गांधी ने मानेकशॉ से पूछा कि क्या सेना पाकिस्तान पर हमला करने के लिए तैयार है, जिस पर सैम ने कहा कि असामयिक हमले से हार होगी। जिसके बाद मानेकशॉ ने इंदिरा गांधी से युद्ध के लिए कुछ महीनों का समय मांगा था।
- दिसंबर 1971 में, युद्ध की पूर्व संध्या पर इंदिरा गांधी ने सैम से पूछा कि क्या वह तैयार हैं। सैम ने जवाब दिया- "मैं हमेशा तैयार हूं, स्वीटी"।
- देश के प्रति उनके अनुकरणीय योगदान के लिए उन्हें 1968 में पद्म भूषण और 1972 में पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया था।
- जनवरी 1973 में, उनकी सेवानिवृत्ति के समय उन्हें फील्ड मार्शल के पद से सम्मानित किया गया। जिसके बाद सैम मानेकशॉ भारतीय सेना के सर्वोच्च पद से सम्मानित होने वाले स्वतंत्र भारत के पहले सेना अधिकारी बने।
- अपने करियर के दौरान, मानेकशॉ ने 5 युद्ध लड़े थे- विश्व युद्ध 2, भारत पाकिस्तान विभाजन, 1962 का चीन भारतीय युद्ध, 1965 और 1971 का भारत पाकिस्तान युद्ध।
- 27 जून 2008 को, तमिलनाडु के वेलिंगटन के सैन्य अस्पताल में उनकी मृत्यु हो गई।
- उनकी मृत्यु के कुछ दिन पहले भारत के पूर्व राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम उनसे मिलने सैन्य अस्पताल गए थे, जहां सैम भर्ती थे।
- उनकी मृत्यु के बाद समाज के कई वर्गों में इस बात को लेकर गुस्सा था कि मानेकशॉ का बेहद मामूली तरह से अंतिम संस्कार किया गया। इसके साथ ही लोग इस बात से भी नाराज थे कि अंतिम संस्कार दिल्ली की जगह तमिलनाडु में हुआ।
- कथित तौर पर, लोग परेशान थे कि यह उनके कद का अपमान था। अंतिम संस्कार में न तो प्रधानमंत्री, भारत के राष्ट्रपति और न ही सेना प्रमुख मौजूद थे।
- 11 सितंबर 2008 को गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने अहमदाबाद के शिवरंजनी क्षेत्र में एक फ्लाईओवर का नाम उनके नाम पर रखा।
- 16 दिसंबर 2008 को, मानेकशॉ को उनके फील्ड मार्शल की वर्दी में चित्रित करते हुए एक डाक टिकट भारत की पूर्व राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल द्वारा जारी किया गया था।
- 27 अक्टूबर 2009 को इन्फैंट्री दिवस पर पुणे छावनी के मुख्यालय के पास सैम मानेकशॉ की प्रतिमा का अनावरण किया गया।
- 3 अप्रैल 2014 को सैम मानेकशॉ की 100वीं जयंती पर पूर्व सेना प्रमुख जनरल बिक्रम सिंह ने नई दिल्ली के मानेकशॉ ऑडिटोरियम में उनकी प्रतिमा का अनावरण किया। उन्होंने उन्हें "1971 में बांग्लादेश के रूप में, 13 दिनों में ग्लोब पर एक देश बनाने" का श्रेय भी दिया।
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