तीन शिक्षा आयोग और चार नीतियां भी नहीं दिला सकीं प्राथमिक शिक्षा को ‘ए’ ग्रेड

सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले 14 से 18 आयु वर्ग के एक-चौथाई बच्चे दूसरी कक्षा की किताब नहीं पढ़ सकते हैं आधे से ज्यादा बच्चे ऐसे हैं जो कक्षा 3-4 के स...और पढ़ें
एस.के. सिंह जागरण न्यू मीडिया में सीनियर एडिटर हैं। तीन दशक से ज्यादा के करियर में इन्होंने कई प्रतिष्ठित संस्थानों में ...और जानिए
एस.के. सिंह/स्कंद विवेक धर, नई दिल्ली।
आजादी के बाद भारत की शिक्षा व्यवस्था सुधारने के लिए कई आयोग बने, राष्ट्रीय शिक्षा नीतियां आईं, अनेक रिपोर्ट तैयार किए गए, लेकिन देश की शिक्षा पर अब भी सवाल उठ रहे हैं। इतने आयोगों और रिपोर्टों के बावजूद सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले 14 से 18 आयु वर्ग के एक-चौथाई बच्चे दूसरी कक्षा की किताब नहीं पढ़ सकते हैं, आधे से ज्यादा बच्चे ऐसे हैं जो कक्षा 3-4 के सवाल हल नहीं कर पाते। यह समस्या इसलिए अधिक गंभीर है क्योंकि लगभग 55% बच्चे सरकारी स्कूलों में ही पढ़ते हैं। स्कूलों में शिक्षा की क्वालिटी की समस्या है, क्योंकि मेधावी छात्र टीचर नहीं बनना चाहते। शिक्षा को सभी बच्चों तक पहुंचाने के लिए ‘शिक्षा का अधिकार’ कानून भी बना। हालांकि, संसाधनों के अभाव और देखरेख की कमी के चलते यह अधिकार कागजों में ही सिमट कर रह गया।
ऐसा नहीं कि सब कुछ स्याह ही है। वर्ष 2000 में 86% बच्चे प्राइमरी स्कूल जाते थे और कक्षा 5 तक पहुंचते-पहुंचते सिर्फ 47% बच्चे बच जाते थे। अब प्राइमरी (1-5) और अपर प्राइमरी (6-8) स्तर पर एनरोलमेंट 100 प्रतिशत के करीब पहुंच गया है। लेकिन ऊपर की कक्षाओं में जाने के साथ एनरोलमेंट घटने लगता है। सेकंडरी स्तर पर एनरोलमेंट 79.5 और हायर सेकंडरी स्तर पर 57.5 है। प्राइमरी से सेकंडरी कक्षाओं में जाने की तुलना में सेकंडरी से हायर सेकंडरी में जाने की ट्रांजिशन की दर भी कम है। हालांकि ड्रॉपआउट दर में सुधार है और सेकंडरी स्तर पर यह सिर्फ 12.6% रह गई है।
विशेषज्ञों का कहना है कि हमें सबसे पहले फाउंडेशनल स्टेज को मजबूत करना पड़ेगा। मानव मस्तिष्क का लगभग 80-90% विकास छह साल तक की उम्र तक हो जाता है। इसलिए हमें प्री-प्राइमरी स्तर पर बच्चों को ध्यान देना पड़ेगा ताकि आगे उनके सीखने का मार्ग सुगम हो सके। इसके लिए जापान और वियतनाम जैसे देशों का उदाहरण देते हैं। उनका एक और अहम सुझाव शिक्षा की क्वालिटी में इस तरह सुधार करना है जिससे कक्षा तीन तक के बच्चे सामान्य पढ़ाई-लिखाई कर सकें और बुनियादी गणित हल करने लग जाएं। अच्छी बात यह है कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में इन बातों पर जोर दिया गया है, और इसके सकारात्मक परिणाम दिखने भी लगे हैं।
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