सरकारी बैंकों में विदेशी निवेश बढ़ाने की कवायद, लेकिन वोटिंग अधिकार 10% से अधिक नहीं होगा
FDI in Banks: मौजूदा नियमों के अनुसार, निजी बैंक में विदेशी निवेशक के पास 26 प्रतिशत से अधिक वोटिंग का अधिकार नहीं हो सकता है। सरकारी बैंकों के लिए यह सीमा 10 प्रतिशत है, भले ही निवेशक के पास इससे ज्यादा शेयरहोल्डिंग हो। पिछले दिनों आरबीआई और वित्त मंत्रालय के बीच इस सीमा को बढ़ाने के मसले पर चर्चा हुई, लेकिन अंततः वोटिंग अधिकार नहीं बढ़ाने का निर्णय हुआ।

सरकारी बैंकों में विदेशी वोटिंग अधिकार नहीं बढ़ेगा
सरकार घरेलू बैंकों, खास कर सरकारी बैंकों में विदेशी निवेश (FDI) की सीमा बढ़ाने पर विचार तो कर रही है, लेकिन विदेशी निवेशकों के वोटिंग अधिकार नहीं बढ़ेंगे। न्यूज एजेंसी रायटर्स के अनुसार, इससे संकेत मिलता है कि वित्तीय क्षेत्र को उदार बनाने और अधिक विदेशी निवेश आकर्षित करने के प्रयास सीमित दायरे में ही रहेंगे। एजेंसी ने पिछले हफ्ते बताया था कि सरकारी बैंकों में विदेशी निवेश की सीमा बढ़ाकर 49% करने की योजना पर काम हो रहा है।
क्या है बैंकों में मताधिकार का नियम
मौजूदा नियमों के अनुसार एक शेयरधारक किसी निजी बैंक में 26% से ज्यादा वोटिंग अधिकार नहीं रख सकता, भले ही उसके पास शेयर होल्डिंग इससे ज्यादा क्यों न हो। सरकारी बैंकों के लिए यह सीमा सिर्फ 10% है।
एजेंसी ने सूत्रों के हवाले से बताया है कि केंद्रीय वित्त मंत्रालय और आरबीआई ने रणनीतिक फैसलों में बड़े शेयरधारकों की भागीदारी बढ़ाने के लिए वोटिंग अधिकारों की सीमा बढ़ाने पर चर्चा की, लेकिन अंत में ऐसा नहीं करने का फैसला किया। सरकार चाहती है कि कुछ सुरक्षात्मक उपाय लागू रहें। जैसे, एकल शेयरधारक के लिए 26% मतदान अधिकार की सीमा, ताकि कोई एक व्यक्ति या संस्था निर्णय को प्रभावित न कर सके।
निवेश में बाधक बन सकती है यह सीमा
मतदान अधिकारों पर सीमा बनाए रखने की योजना निवेशकों के लिए भारतीय बैंकों में बड़ी हिस्सेदारी खरीदने में बाधक बन सकती है। भारत में इस वर्ष दो सीमा पार बैंकिंग लेनदेन हुए हैं। एक सौदे में दुबई स्थित एमिरेट्स एनबीडी ने आरबीएल बैंक में 60% हिस्सेदारी खरीदी। दूसरे सौदे में जापान की सुमितोमो मित्सुई बैंकिंग कॉर्पोरेशन ने यस बैंक में निवेश किया है। सरकार आईडीबीआई बैंक में अपनी बड़ी हिस्सेदारी बेचना चाहती है और मार्च 2026 के तक इस प्रक्रिया के पूरा होने की उम्मीद है।
सूत्रों ने बताया कि विदेशी निवेशकों की भारत के बैंकों में गहरी रुचि है। अगर निवेशक अपनी हिस्सेदारी कम करने का फैसला करते हैं, तो उनकी हिस्सेदारी दूसरे लोग खरीद सकते हैं। इससे यह विश्वास भी पैदा होता है कि मतदान सीमा बनाए रखने से कोई समस्या नहीं होगी।

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