फुटपाथ पर रहने वाले लोग भी इंसान हैं, उन्हें हटाने का आदेश नहीं दे सकते: बॉम्बे हाईकोर्ट
बेघर होना एक वैश्विक मुद्दा है लेकिन सड़कों पर रहने वाले लोग भी इंसान हैं और बाकी लोगों की तरह हैं। उन्हें हटाने का आदेश नहीं दे सकते। यह टिप्पणी बॉम्बे हाई कोर्ट ने शुक्रवार को एक याचिका पर सुनवाई करते हुए की।
मुंबई, पीटीआई। बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा है कि बेघर होना एक वैश्विक मुद्दा है, लेकिन फुटपाथ पर रहने वाले लोग भी अन्य लोगों की तरह इंसान हैं। इसके साथ ही, उच्च न्यायालय ने दक्षिण मुंबई में फुटपाथ पर रहने वाले व्यक्तियों को हटाने का निर्देश देने वाले किसी भी आदेश को पारित करने से इनकार कर दिया।
जस्टिस गौतम पटेल और नीला गोखले की खंडपीठ शहर के फुटपाथों और फुटपाथों पर अनधिकृत विक्रेताओं और फेरीवालों के कब्जे के मुद्दे पर हाईकोर्ट द्वारा स्वत: संज्ञान (स्वयं) ली गई याचिका में दायर एक आवेदन पर विचार कर रही थी।
बीएमसी और पुलिस को लिखा पत्र
बॉम्बे बार एसोसिएशन द्वारा दायर आवेदन में कहा गया है कि कई लोग दक्षिण मुंबई में फाउंटेन क्षेत्र के पास फुटपाथ पर रहते और सोते हैं। आवेदन में कहा गया है कि कार्रवाई के लिए शहर की पुलिस और बृहन्मुंबई नगर निगम (बीएमसी) को भी पत्र लिखे गए हैं। पीठ ने हालांकि सवाल किया कि ऐसे मामलों में क्या न्यायिक आदेश पारित किया जा सकता है।
बेघर होना वैश्विक मुद्दा
अदालत ने कहा, "क्या आप कह रहे हैं कि शहर को गरीबों से छुटकारा पाना चाहिए? ये वे लोग हैं, जो दूसरे शहरों से यहां अवसरों की तलाश में आते हैं। बेघर होना एक वैश्विक मुद्दा है।” न्यायमूर्ति पटेल ने कहा, “वे (बेघर व्यक्ति) भी इंसान हैं। वे गरीब या कम भाग्यशाली हो सकते हैं, लेकिन वे अभी भी इंसान हैं और यह उन्हें अदालत में हमारे सामने हर किसी के समान ही बनाता है।"
रैन बसेरों की हो व्यवस्था
एसोसिएशन के वकील मिलिंद साठे ने सुझाव दिया कि फुटपाथ पर रहने वाले ऐसे व्यक्तियों के लिए रैन बसेरों को उपलब्ध कराया जाना चाहिए। पीठ ने कहा कि यह एक समाधान है, जिस पर अधिकारी विचार कर सकते हैं।
एक व्यंग्यात्मक टिप्पणी में, अदालत ने कहा कि ऐसी चुनौतियों का बीएमसी का सबसे आसान समाधान मौके पर निर्माण शुरू करना या मेट्रो स्टेशन बनाना होगा। अदालत ने, हालांकि, कहा कि आवेदन में उठाई गई चिंता अलग थी और स्वत: संज्ञान याचिका में फेरीवालों और विक्रेताओं के मुद्दों से जुड़ी नहीं थी।
साठे ने तब कहा कि एसोसिएशन बेघर व्यक्तियों के मुद्दे पर एक अलग याचिका या जनहित याचिका दायर करने पर विचार करेगा। कोर्ट ने सहमति जताते हुए कहा कि अगर अलग से याचिका या जनहित याचिका दायर की जाती है तो जरूरी निर्देश दिए जा सकते हैं।