मध्य प्रदेश HC की इंदौर बेंच के आदेश के बाद धार भोजशाला का होगा ASI सर्वे, जानिए क्या है विवाद
मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की इंदौर बेंच ने सोमवार को धार जिले की भोजशाला में आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (एएसआई) को सर्वे के आदेश दिए हैं। दरअसल हिंदू फ्रंट फार जस्टिस की ओर से हाईकोर्ट में एक याचिका दायर कर मांग की गई थी कि मुसलमानों को भोजशाला में नमाज पढ़ने से रोका जाए और हिंदुओं को नियमित पूजा का अधिकार दिया जाए।
डिजिटल डेस्क, धार। मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की इंदौर बेंच ने सोमवार को धार जिले की भोजशाला में आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (एएसआई) को सर्वे के आदेश दिए हैं। दरअसल, हिंदू फ्रंट फार जस्टिस की ओर से हाईकोर्ट में एक याचिका दायर कर मांग की गई थी कि मुसलमानों को भोजशाला में नमाज पढ़ने से रोका जाए और हिंदुओं को नियमित पूजा का अधिकार दिया जाए।
इस मामले में सोमवार को वरिष्ठ वकील विष्णु शंकर जैन ने सोशल मीडिया पर जानकारी देते हुए कहा कि इंदौर हाईकोर्ट ने उनकी अपील पर एएसआई सर्वे की इजाजत दे दी है। धार जिले की आधिकारिक वेबसाइट के मुताबिक, राजा भोज (1000-1055 ई.) परमार राजवंश के सबसे बड़े शासक थे। उन्होंने धार में यूनिवर्सिटी की स्थापना की थी। इसे बाद में भोजशाला के रूप में जाना जाने लगा।
भोजशाला को सरस्वती मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। सरकारी वेबसाइट के मुताबिक, इस मंदिर को बाद में यहां के मुस्लिम शासक ने मस्जिद में परिवर्तित कर दिया। इसके अवशेष अभी भी प्रसिद्ध कमाल मौलाना मस्जिद में देखे जा सकते हैं।
Advocate Vishnu Shankar Jain tweets, "My request for ASI survey of bhojshala/dhar in Madhya Pradesh is allowed by Indore High Court..." pic.twitter.com/MzJdLbCDq5— ANI (@ANI) March 11, 2024
इंदौर बेंच ने क्या कहा?
हाईकोर्ट की इंदौर बेंच ने याचिका पर सुनवाई करते हुए सोमवार को कहा कि एएसआई को भोजशाला के 50 मीटर क्षेत्र का वैज्ञानिक सर्वेक्षण करना चाहिए। कोर्ट के निर्देशों के बाद पुरातत्व विभाग के 5 वरिष्ठ अधिकारियों की टीम सर्वे करेगी। फिर 6 सप्ताह बाद सर्वे की रिपोर्ट कोर्ट में जमा करनी होगी।
याचिका में क्या कहा गया?
भोजशाला में हिंदुओं द्वारा नियमित पूजा करने को लेकर हिंदू फ्रंट फॉर जस्टिस की ओर से हाईकोर्ट में एक याचिका दायर की गई थी। जिसमें कहा गया था कि मुसलमानों को भोजशाला में नमाज पढ़ने से रोका जाए और हिंदुओं को नियमित पूजा करने का अधिकार दिया जाए। कोर्ट ने याचिकाकर्ता के आरंभिक तर्क सुनने के बाद मामले में राज्य शासन, केंद्र शासन सहित अन्य संबंधित पक्षकारों को नोटिस जारी कर जवाब मांगा था।
इस याचिका में एक अंतरिम आवेदन प्रस्तुत करते हुए मांग की गई थी कि भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण को आदेश दिया जाए कि वह ज्ञानवापी की तर्ज पर धार की भोजशाला में सर्वे करे। सोमवार को इसी अंतरिम आवेदन पर बहस हुई। जिसके बाद हाईकोर्ट ने इस मामले में जांच के लिए 5 सदस्यीय कमेटी भी गठित की है।
यह कमेटी एएसआई सर्वे का काम देखेगी। कोर्ट ने इस मामले में सर्वे पूरा कर 29 अप्रैल तक रिपोर्ट कोर्ट में पेश करने का आदेश दिया है। मामले की अगली सुनवाई 29 अप्रैल को होगी।
#WATCH | Madhya Pradesh: Visuals from Bhojshala Temple in Dhar.
ASI survey of Bhojshala/dhar in Madhya Pradesh is allowed by Indore High Court, said Advocate Vishnu Shankar Jain pic.twitter.com/XnsrEmfgcJ— ANI MP/CG/Rajasthan (@ANI_MP_CG_RJ) March 11, 2024
हालांकि, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने कोर्ट को बताया कि वर्ष 1902-03 में भोजशाला का सर्वे हुआ था। इसकी रिपोर्ट कोर्ट के रिकॉर्ड में है। नए सर्वे की कोई आवश्यकता नहीं है। मुस्लिम पक्ष भी सर्वे की आवश्यकता को नकार रहा है। उसका कहना है कि वर्ष 1902-03 में हुए सर्वे के आधार पर ही भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने आदेश जारी कर मुसलमानों को शुक्रवार को नमाज का अधिकार लिया था। यह आदेश आज भी अस्तित्व में है।
पूजा के अधिकार की मांग
हिंदू फ्रंट फार जस्टिस की तरफ से एडवोकेट हरिशंकर जैन और एडवोकेट विष्णुशंकर जैन ने पैरवी की। उन्होंने कोर्ट को कहा कि पूर्व में भी जो सर्वेक्षण हुए हैं वे साफ-साफ बता रहे हैं कि भोजशाला वाग्देवी का मंदिर है। इससे अतिरिक्त कुछ नहीं। हिंदुओं का यहां पूजा करने का पूरा अधिकार है। हिंदुओं को पूजा का अधिकार देने से भोजशाला के धार्मिक चरित्र पर कोई बदलाव नहीं होगा।
सर्वे में मिले थे विष्णु और कमल
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की ओर से एडवोकेट हिमांशु जोशी ने कोर्ट को बताया कि वर्ष 1902-03 में पुरातत्व विभाग भोजशाला का सर्वे कर चुका है। इसकी रिपोर्ट भी कोर्ट में प्रस्तुत है। रिपोर्ट के साथ फोटोग्राफ भी संलग्न हैं। इनमें भगवान विष्णु और कमल स्पष्ट नजर आ रहे हैं। नए सर्वे की कोई आवश्यकता ही नहीं है। सर्वे की रिपोर्ट के आधार पर ही 2003 में आदेश जारी हुआ था
सदियों पुराना है भोजशाला विवाद
भोजशाला विवाद सदियों पुराना है। हिंदुओं का कहना है कि यह सरस्वती देवी का मंदिर है। सदियों पहले मुसलमानों ने इसकी पवित्रता भंग करते हुए यहां मौलाना कमालुद्दीन की मजार बनाई थी। भोजशाला में आज भी देवी-देवताओं के चित्र और संस्कृत में श्लोक लिखे हुए हैं। अंग्रेज भोजशाला में लगी वाग्देगी की मूर्ति को लंदन ले गए थे। हाईकोर्ट में चल रही याचिका में कहा गया कि भोजशाला हिंदुओं के लिए उपासना स्थली है। मुसलमान नमाज के नाम पर भोजशाला के भीतर अवशेष मिटाने का काम कर रहे हैं। याचिका में भोजशाला परिसर की खोदाई और वीडियोग्राफी कराने की मांग भी की गई । इस याचिका के साथ 33 फोटोग्राफ भी संलग्न हैं।
यह है भोजशाला का इतिहास
परमार वंश के राजा भोज ने 1034 में धार में सरस्वती सदन की स्थापना की थी। यह एक महाविद्यालय था, जो बाद में भोजशाला के नाम से विख्यात हुआ। राजा भोज के शासनकाल में ही यहां मां सरस्वती (वाग्देवी) की मूर्ति स्थापित की गई थी। यह मूर्ति भोजशाला के पास ही खोदाई में मिली थी। 1880 में इसे लंदन भेज दिया गया। 1456 में महमूद खिलजी ने मौलाना कमालुद्दीन के मकबरे और दरगाह का निर्माण करवाया गया।
कब क्या हुआ?
- भोजशाला को लेकर 1995 में मामूली विवाद हुआ था। इसके बाद मंगलवार को हिंदुओं को पूजा और शुक्रवार को मुसलमानों को नमाज पढ़ने की अनुमति दे दी गई।
- 12 मई 1997 को प्रशासन ने भोजशाला में आम नागरिकों के प्रवेश पर प्रतिबंध लगा दिया। हिंदुओं को वसंत पंचमी पर और मुसलमानों को शुक्रवार एक से तीन बजे तक नमाज पढ़ने की अनुमति दी गई। प्रतिबंध 31 जुलाई 1997 तक रहा।
- 6 फरवरी 1998 को पुरातत्व विभाग ने भोजशाला में आगामी आदेश तक प्रवेश पर प्रतिबंध लगा दिया।
- 2003 में मंगलवार को फिर से पूजा करने की अनुमति दी गई। पर्यटकों के लिए भी भोजशाला को खोल दिया गया।
- जब-जब वसंत पंचमी शुक्रवार के दिन आती है, विवाद बढ़ जाता है।