कोरोना वायरस से संक्रमित मरीजों को वायु प्रदूषण से बढ़ सकता है मौत का खतरा!

डायबिटीज और फेफड़ों के मरीजों को यदि कोरोना वायरस अपनी चपेट में लेता है तो उनकी मृत्यु का खतरा बढ़ जाता है।

By Kamal VermaEdited By: Publish:Fri, 26 Jun 2020 06:28 PM (IST) Updated:Fri, 26 Jun 2020 06:28 PM (IST)
कोरोना वायरस से संक्रमित मरीजों को वायु प्रदूषण से बढ़ सकता है मौत का खतरा!
कोरोना वायरस से संक्रमित मरीजों को वायु प्रदूषण से बढ़ सकता है मौत का खतरा!

ब्रसेल्‍स (रॉयटर्स)। अधिकतर यूरोपीय देशों पर निश्चित समयाविधि में तय मानकों तक शरीर को नुकसान पहुंचाने वाले वायु प्रदूषण को कम न कर पाने का संकट सामने खड़ा है। यूरोपीय कमीशन के मुताबिक, अधिकतर देश इसमें नाकाम साबित होते हुए प्रतीत हो रहे हैं। उन्‍होंने इन देशों की पहली रिपोर्ट पेश करते हुए कहा कि सदस्‍य देशों को इस बारे में और अधिक काम करने की जरूरत है। उनके मुताबिक, हर वर्ष यूरोपीय देशों में वायु प्रदुषण की वजह से करीब 4 लाख लोगों की असामयिक मौत हो जाती है।

मौजूदा समय में यूरोप के सदस्‍य देशों में से केवल चार देश ही 2030 तक निर्धारित तय दर को कम करने में कामयाब हो सके हैं। इनमें क्रोएशिया, साइप्रस, नीदरलैंड और फिनलैंड शामिल हैं। कमीशन के मुताबिक, वर्तमान नीतियों के आधार पर, यूरोपीय संघ के 27 सदस्य देशों में से 10 वायु प्रदूषण को कम करने के लिए अपने 2020 के लक्ष्य को पूरा करने के निकट हैं। कमीशन की ये रिपोर्ट पिछले वर्ष यूरोपीय देशों द्वारा सौंपी गई अपनी रिपोर्ट के आधार पर तैयार की गई है।

गौरतलब है कि कोरोना महामारी के चलते यूरोप में लगे लॉकडाउन से वायु प्रदूषण पहले की अपेक्षा कम जरूर हुआ है लेकिन शोधकर्ताओं का कहना है कि अधिक देर तक खराब या प्रदूषित हवा में रहने से डायबीटिज और फेफडों की बीमारी हो सकती है। इसके अलावा ऐसी हवा में अधिक सांस लेने से कैंसर भी हो सकता है। ऐसी सूरत में यदि कोई व्‍यक्ति जानलेवा कोरोना वायरस से संक्रमित होता है तो उनकी मृत्यु का खतरा भी काफी बढ़ जाता है। कोरोना वायरस महामारी के चलते मार्च से मई अंत और जून की शुरुआत तक लगे लॉकडाउन की बदौलत वायु प्रदूषण काफी हद तक कम हुआ है। इस दौरान यूरोप में यातायात के सभी साधन बंद रहे और उद्योगों से निकलने वाला काला धुआं बंद रहा। इसके कारण शरीर को नुकसान पहुंचाने वाली गैसों का उत्‍सर्जन कम हुआ।

मौजूदा सप्‍ताह की यदि बात करें तो हेलेंस्‍की स्थित सेंटर फॉर रिसर्च ऑन एनर्जी एंड क्‍लीन एयर के शोधकर्ताओं ने पाया है कि हवा में नाइट्रोजनडाइऑक्‍साइड की मात्रा पेरिस ओस्‍लो और बुडापेस में दोबारा से बढ़ गई है। इसकी वजह यहां पर जनजीवन का दोबारा पटरी पर लौटना और अर्थव्‍यवस्‍था की खातिर उद्योगों को शुरू करना शामिल है। कोरोना वायरस से बचने के लिए ज्‍यादातर लोग सार्वजनिक परिवहन का कम इस्‍तेमाल कर रहे हैं और अपनी गाड़ियों से बाहर निकलना ज्‍यादा पसंद कर रहे हैं। उनके मुताबिक, अपनी गाड़ियों में सफर करना ज्‍यादा सुरक्षित है।

आपको बता दें कि लगातार बढ़ रहे वायु प्रदूषण को कम करने के लिए यूरोपीय यूनियन ने राष्‍ट्रीय स्‍तर पर इसको कम करने के लिए निश्चित समयाविधि में निश्चित मात्रा में इसको कम करने का लक्ष्‍य तय किया था। इसमें पांच ऐसी गैसों का उत्‍सर्जन कम करना था, जो शरीर को नुकसान पहुंचाने में सहायक साबित होती हैं और हमारे पर्यावरण को भी नुकसान पहुंचाती हैं। इनमें सल्‍फर डाइऑक्‍साइड, नाइट्रोजन ऑक्‍साइड, नॉनमिथेन वॉलेटाइल ऑर्गेेनिक कंपाउंड, अमोनिया और फाइन पार्टिकुलर मैटर शामिल है। इनमें शोधकर्ताओं को अमोनिया भी की भी मात्रा बढ़ी हुई मिली है जिसका इस्‍तेमाल किसान खेती के लिए करते हैं। यूरोपीय यूनियन ने 2030 तक इसमें 20 फीसद तक की कमी करना तय किया है

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