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    Victory Day के मौके पर निकली परेड़ में जवानों ने नहीं पहना था मास्‍क, निशाने पर पुतिन सरकार

    By Kamal VermaEdited By:
    Updated: Fri, 26 Jun 2020 08:53 AM (IST)

    मास्‍को में Victory Day के मौके पर निकली परेड में जवनों ने मास्‍क नहीं पहना था। ऐसा तब हुआ जब रूस में लगातार कोरोना के मामले बढ़ रहे हैं।

    Victory Day के मौके पर निकली परेड़ में जवानों ने नहीं पहना था मास्‍क, निशाने पर पुतिन सरकार

    मास्‍को (न्‍यूयॉर्क टाइम्‍स)। एक तरफ जहां रूस कोरोना वायरस की चपेट में बुरी तरह से घिरा हुआ है और लगातार इसकी रोकथाम के प्रयास कर रहा है, वहीं दूसरी तरफ मास्‍को में दूसरे विश्‍वयुद्ध की जीत की खुशी में निकाली गई परेड में इसके कोई इंतजाम देखने को नहीं मिले। शारीरिक दूसरी तो छोड़ो, किसी सैनिक के मुंह पर मास्‍क तक दिखाई नहीं दिया। हालांकि, इस महामारी की वजह से रूस ने 9 मई को होने वाली इस परेड को छह माह बाद आयोजित किया था। ये परेड हर वर्ष नाजियों के पतन और जर्मनी पर जीत की खुशी में निकाली जाती है। हर वर्ष की तरह इस बार भी रेड स्‍क्‍वायर के सामने से निकलने वाली इस परेड में हजारों सैनिकों ने हिस्‍सा लिया था। इसमें भारतीय जवानों की एक टुकड़ी ने भी हिस्‍सा लिया था। Victory Day के मौके पर ऐसे जवान भी परेड का हिस्‍सा बने थे, जिनकी उम्र 80-90 वर्ष के बीच थी। ये सभी परेड में शामिल उन 14 हजार जवानों का हिस्‍सा थे, जिन्‍होंने यहां पर कदम से कदम मिलाया था। इन जवानों के अलावा इस परेड में बड़ी संख्‍या में टैंक, मिसाइल, बमवर्षक विमान, फाइटर जेट, हेलीकॉप्‍टर और कई दूसरे सैन्‍य हथियार भी शामिल हुए थे। इस परेड में कदम से कदम मिलाते जवानों के साथ मंत्र मुग्‍ध कर देने वाली धुन बजाने वाली टुकड़ी भी इस परेड के आकर्षण का केंद्र रही।

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    हालांकि, इसको लेकर क्रेमलिन विरोधियों के निशाने पर भी आ गया है। विपक्ष का आरोप है कि पुतिन ने इस परेड में शामिल लोगों और जवानों के स्‍वास्‍थ्‍य के साथ खिलवाड़ किया है। इस महामारी के बीच जवानों को बिना मास्‍क पहने इसमें शामिल किया गया जो खतरनाक था। गौरतलब है कि व्‍लादिमीर पुतिन अपने देश के संविधान में संशोधन करने के बाद वर्ष 2036 तक देश के राष्‍ट्रपति बने रह सकते हैं। मास्‍को के मेयर ने लोगों से अपील की थी कि वे इस परेड को अपने घर ही टीवी पर देखें। इसके बावजूद हजारों की संख्‍या में लोग इसका गवाह बने। हालांकि इस बार होने वाली लोगों की ये भीड़ हर वर्ष इस खास दिन पर जुटने वाली भीड़ की अपेक्षा बेहद कम थी। इस परेड को देखने पहुंचे 36 वर्षीय मनोचिकित्‍सक येलेना लोगीनोवा का कहना था कि उसने मेयर की अपील को ठुकराते हुए यहां से परेड देखने का फैसला किया। उनका कहना था कि घर में टीवी पर देखने से अच्‍छा उन्‍हें यहां पर लोगों के बीच इस भव्‍य परेड को देखना था। यहां पर आकर अपने सामने दुनिया भर के जवानों को देखकर मन में जो अनुभूति होती है कि उसको शब्‍दों में कहपाना काफी मुश्किल है।

    सरकार की तरफ से भले ही परेड में शामिल जवानों के बचाव को लेकर कोई सतर्कता नहीं बरती गई लेकिन यहां पर आने वाले दर्शकों ने इसका जरूर पालन किया था। येलेना खुद काफी दूर से यहां पर अपने बेटे के साथ आई थी और मुंह को पूरी तरह से कवर किए हुए थीं। उनका कहना था कि कोरोना से बचाव के अलावा और कुछ उपाय नहीं है। वह नहीं चाहती हैं कि किसी अजनबी से उन्‍हें ये बीमारी मिले इसलिए एहतियात बरतनी ही जरूरी है। भारत के अलावा चीन के नेता भी इसके गवाह बने। हालांकि गलवन घाटी में हुए विवाद के चलते इन दोनों ही नेताओं ने आपसी मुलाकात नहीं की। आपको बता दें कि गलवन में 15-16 जून की रात को दोनों सेनो के जवानों के बीच हुई हिंसक झड़प में 20 भारतीय जवान शहीद हो गए थे। Victory Day के मौके पर निकली इस परेड में चीन की तरफ से सबसे अधिक जवान हिस्‍सा लेने के लिए मास्‍को भेजे गए थे।

    आपको बता दें कि बीते तीन माह से अपने सरकारी घर से ही सारा कामकाज देख रहे हैं। वहीं उनकी पत्‍नी कोरोना पॉजीटिव होने के बाद से ही अस्‍पताल में हैं। महामारी के इस दौर में रूस को भी काफी कुछ सहना पड़ रहा है। देश की आर्थिक गतिविधियां लगभग पूरी तरह से ठप हो चुकी हैं। Victory Day के मौके पर रूस के राष्‍ट्रपति व्‍लादिमीर पुतिन ने कहा कि "यह कल्पना करना भी असंभव है कि दुनिया के साथ क्या हुआ होगा। इस मौके के दुनिया के कुछ नेता भी गवाह बने। यूरोपीय संघ में शामिल देशों में से सर्बिया को छोड़कर कोई दूसरा नेता इस परेड के आयोजन में शिरकत करने के लिए मास्‍को नहीं पहुंचा था। हालांकि फ्रांस के राष्‍ट्रपति इमैन्‍युल मैक्रॉन इसमें शामिल होना चाहते थे लेकिन ऐन समय पर उन्‍होंने अपना विचार बदल दिया। इसमें पूर्व सोवियत संघ का हिस्‍सा रहे मोल्‍दोवा के राष्‍ट्रपति ने भी हिस्‍सा लिया।