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    सि‍र्फ जीवन जीना ही नहीं, र‍िश्‍ते नि‍भाना भी स‍िखाती है श्रीमद्भगवद गीता; 5 श्‍लोक से आप भी लें सीख

    Updated: Thu, 15 May 2025 12:28 PM (IST)

    श्रीमद्भगवद गीता हमें जीवन जीने के साथ-साथ रिश्तों को निभाना भी सिखाती है। गीता के श्लोक रिश्तों में मिठास भरने और उन्हें मजबूत बनाने का काम करते हैं। यह ग्रंथ हमें सिखाता है कि बिना उम्मीद के रिश्ते निभाएं सबके साथ समान भाव रखें और ज्यादा लगाव न रखें। इससे आपके र‍िश्‍ते भी मजबूत होते हैं।

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    ये श्‍लोक आपके र‍िश्‍ते काे बनाएंगे मजबूत। (Image Credit- Freepik)

    लाइफस्‍टाइल डेस्‍क, नई द‍िल्‍ली। रिश्तों को केवल फीलि‍ंग्‍स से नहीं, बल्कि आपसी समझ, धैर्य और व‍िश्‍वास से ही मजबूत बनाया जा सकता है। श्रीमद्भगवद गीता से हमारे अंदर जीने की कला व‍िकस‍ित होती है। ये ग्रंथ हमें र‍िश्‍तों को जोड़ना भी स‍िखाती है। खासकर तब, जब रिश्तों को न‍िभाना मुश्किल हो रहा हाे। गीता के श्लोक र‍िश्‍तों में म‍िठास भरने का काम करते हैं। इससे न केवल आप आध्यात्मिक दृष्टि से मजबूत बनते हैं बल्कि आप अपने फील‍िंग्‍स को भी कंट्राेल और अच्‍छे से बयां करना जान पाते हैं। ये श्‍लोक आपके जीवन को भी आसान बना सकते हैं।

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    ''कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन''

    ये अध्‍याय दो का 47वां श्‍लोक है। इसमें श्रीकृष्‍ण ने अर्जुन से कहा क‍ि तुम्हारा अधिकार केवल कर्म करने का है। उसका फल तुम्‍हें म‍िलता है या नहीं, ये ऊपर वाला तय करता है। र‍िश्‍तों में इस श्‍लोक का अर्थ है क‍ि हम अक्सर रिश्तों में जो भी करते हैं, सामने वाले से भी यही उम्‍मीद करते हैं क‍ि चो हमारे ल‍िए यही करे। इस श्‍लोक के जर‍िए गीता हमें सिखाती है कि बिना उम्‍मीद के र‍िश्‍ते न‍िभाइए। कर्म करना ही सच्चा प्‍यार होता है। अगर हम कोई भी रिश्ता बिना स्वार्थ के निभाएंगे तो वे और भी ज्‍यादा मजबूत हो सकते हैं।

    ''विद्या विनय संपन्ने ब्राह्मणे गवि हस्तिनि''

    ये अध्याय 5 का 18वां श्लोक है। इसका ह‍िंदी में मतलब है क‍ि ज्ञानी इंसान सभी को समान नजर से देखता है। चाहे वाे इंसान हो या पशु। रिश्तों में देखें तो सबके साथ एक तरह का भाव रखें। क‍िसी के लि‍ए बुरी भावना न रखें। यही मजबूत र‍िश्‍ते की नींव होती है। अगर आप रिश्तों में भेदभाव रखेंगे तो ये कमजोर हो सकता है।

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    ''तस्मादसक्तः सततं कार्यं कर्म समाचर''

    श्रीमद्भगवद गीता के मुताब‍िक, अध्याय 3 का 19वां श्लोक हमें बताता है क‍ि आसक्त होकर कर्म करते रहो, क्योंकि यही श्रेष्ठ मार्ग है। रिश्तों में इसका मतलब समझें तो दूसरों से ज्‍यादा लगाव न रखें। उम्‍मीदों से दूर‍ियां भी बढ़ने लगती हैं। इससे रिश्तों में तनाव आता है। गीता हमें स‍िखाती है क‍ि प्यार करें, लेकिन ज्‍यादा लगाव न रखें।

    ''मन: प्रसाद: सौम्यत्वं मौनमात्मविनिग्रह''

    अध्याय 17 के 16वें श्लोक से हमें ये सीखने को म‍िलता है क‍ि मन का खुश रहना ज्‍यादा जरूरी है। स्‍वभाव में व‍िनम्रता होनी चाह‍िए। कठ‍िन समय में मौन रहना सबसे अच्‍छा जवाब होता है। यही चीजें र‍िश्‍तों में भी लागू होती है। अगर आपके र‍िश्‍ते में लड़ाई झगड़े बहुत हो रहे हैं तो शांत रहना सीखें। इससे झगड़ा कुछ ही समय में शांत हो जाएगा। दरअसल, गुस्‍से में आपके मुंह से कुछ ऐसे शब्‍द न‍िकल सकते हैं जो ज‍िंदगी भर के ल‍िए घाव बनने का काम करते हैं। ऐसे में अगर आप शांत रहेंगे तो आपको मानस‍िक सुकून भी म‍िलेगा। रिश्तों में मजबूती भी आएगी।

    ''यं हि न व्यथयन्त्येते पुरुषं पुरुषर्षभ''

    गीता में अध्याय 2 के 15वें श्लोक से हमें ये सीख मि‍लती है क‍ि जो इंसान सुख-दुख में परेशान नहीं होता है वाे असल मायने में हर पर‍िस्‍थ‍ित‍ि को आसानी से संभाल सकता है। र‍िश्‍तों में भी यही सीख लागू होती है। हर संबंध में सुख-दुख आते ही हैं। कभी नाराजगी, कभी गिले-शिकवे तो कभी बेइंतहा प्‍यार, अगर आप इस समय अपने आप पर काबू रखेंगे तो संबंध मजबूत बनेंगे।

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