घर पास आते ही क्यों यूरिन कंट्रोल करना हो जाता है मुश्किल, शरीर नहीं आपके दिमाग से जुड़ी है वजह
क्या आपके साथ भी ऐसा होता है कि घर पहुंचते ही यूरिन कंट्रोल करना मुश्किल हो जाता है? अगर हां तो ऐसा महसूस करने वाले आप अकेले नहीं हैं। यह कोई बीमारी नहीं है बल्कि दिमाग का खेल है। आइए आज इस आर्टिकल में जानेंगे इसके पीछे का पूरा साइंस।

लाइफस्टाइल डेस्क, नई दिल्ली। क्या आपके साथ भी अक्सर ऐसा होता है कि रास्ते भर यूरिन कंट्रोल करने के बाद अचानक घर पहुंचते ही, इसे कंट्रोल करना मुश्किल हो जाता है। यह थोड़ा अजीब है कि बाहर से कभी भी घर वापस आते समय आपके अक्सर यूरिन करने की जरूरत महसूस होती है, लेकिन जैसे-जैसे आपका घर पास आते जाता है, यह प्रेशर तेजी से बढ़ता जाता है।
यह एहसास कई बार इतना तेज हो जाता है कि चाबी से गेट खोलना तक मुश्किल हो जाता है। इतनी ही नहीं, यह तब तक नहीं रुकता, जब तक आप वॉशरूम यूज नहीं कर लेते। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि आखिर कैसे क्यों होता है। पूरे रास्ते जब आप आसानी से इसे कंट्रोल कर लेते हैं, तो घर पहुंचते ही यह कंट्रोल से बाहर क्यों हो जाती है? क्या ये कोई बीमारी है या इसकी कोई और वजह है? आइए इस आर्टिकल में जानते हैं इसके पीछे का साइंस-
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हर किसी को होता है एहसास
अगर आप भी उन लोगों में से हैं, जिन्हें अक्सर यह एहसास होता है, तो आप अकेले नहीं है। ऐसा लगभग हर किसी के साथ होता है और यह पूरी तरह से सामान्य है। दरअसल, यह कोई बीमारी या समस्या नहीं, बल्कि इसके पीछे पूरा दिमाग का खेल होता है, जो साइंस से जुड़ा है।
दिमाग का है पूरा खेल
आप यह तो जानते ही होंगे कि हमारा मन और शरीर काफी हद तक एक-दूसरे से जुड़े होते हैं, लेकिन क्या आपको पता है कि ऐसा ही एक कनेक्शन हमारे ब्रेन और ब्लैडर यानी मूत्राशय के बीच भी होता है। दरअसल, यूरिन लगने पर जब आप घर के बाहर होते हैं, तो दिमाग और ब्लैडर के बीच लगातार एक कम्युनिकेशन चलता रहता है, जिसमें ब्रेन ब्लैडर को बताता है कि अभी वॉशरूम जाना सही है या नहीं।
जब आप काम या कहीं बाहर से घर लौट रहे होते हैं, तो आपका ब्रेन सिग्नल देता है अभी नहीं, जब तक आप घर के करीब नहीं पहुंच जाते, और फिर ब्रेन का यह सिग्नल मिलते ही ब्लैडर यूरिन कंट्रोल कर देता है।
इसके बाद जैसे-जैसे आप बाथरूम के करीब पहुंचते हैं, ब्रेन से आने वाले सिग्नल कम होते जाते हैं और यूरिन करने का एहसास और भी तेज होता जाता है। घर पहुंचने तक आप जितना ज्यादा देर तक टॉयलेट का इस्तेमाल करने का इंतजार करेंगे, आपका दिमाग घर आने के बाद उतनी ही जल्दी वॉशरूम जाने के लिए मजबूर करेगा। इस तरह यह एक पैटर्न बन जाता है, जिसे दिमाग रोज फॉलो करने लगता है।
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