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    सिर्फ फेफड़े ही नहीं, दिमाग को भी बीमार कर रही जहरीली हवा; बच्चों के IQ पर मंडरा रहा है खतरा

    Updated: Sun, 28 Dec 2025 10:57 AM (IST)

    अक्सर जब हम वायु प्रदूषण की बात करते हैं, तो हमारा ध्यान खांसी, सांस लेने में तकलीफ या आंखों में जलन जैसी समस्याओं पर ही जाता है, लेकिन स्वास्थ्य विशे ...और पढ़ें

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    प्रदूषित हवा से मानसिक रोगों का भी बढ़ता है खतरा (Image Source: AI-Generated) 

    प्रेट्र, नई दिल्ली। राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली समेत देशभर के काफी शहरों में वायु प्रदूषण का बढ़ता स्तर हर किसी की चिंता बढ़ा रहा है। इसके दुष्परिणाम कई रूपों में सामने आ रहे हैं। अब स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि वायु प्रदूषण न केवल शारीरिक स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचा रहा है, बल्कि मानसिक स्वास्थ्य पर भी गंभीर असर डाल रहा है। इससे बच्चों में कम आइक्यू स्तर, स्मरण शक्ति में बाधा और एकाग्रता में कमी (एडीएचडी) विकसित होने की आशंका बढ़ रही है।

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    शोध पर आधारित साक्ष्यों की ओर इशारा करते हुए डाक्टरों का कहना है प्रदूषित हवा अवसाद, स्मरण शक्ति और संज्ञानात्मक विकास में बाधा का कारण बन रही है। लंबे समय तक प्रदूषण के संपर्क में रहने से अल्जाइमर्स और पार्किंसंस जैसे न्यूरोडीजेनेरेटिव रोगों का भी खतरा बढ़ता है।

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    (Image Source: Freepik) 

    सिर्फ फेफड़े नहीं, अब 'दिमाग' पर भी हमला

    मानसिक रोगियों की देखभाल करने वाली संस्था इमोनीड्स की मनोचिकित्सक डॉ. आंचल मिगलानी के मुताबिक, वायु प्रदूषण के दुष्प्रभाव को लेकर खास फोकस श्वसन, हृदय संबंधी और एलर्जिक समस्याओं पर होता है, जबकि इस मामले में मनोवैज्ञानिक प्रभाव भी उतना ही चिंताजनक है। शोधों से प्रदूषण और बढ़ते संज्ञानात्मक और न्यूरोटिक विकारों के बीच स्पष्ट संबंध स्थापित होता है, जिसमें बच्चे, वृद्ध और निम्न-आय वाले समुदाय सबसे अधिक संवेदनशील होते हैं।

    उनके अनुसार, प्रदूषित हवा में लंबे समय तक रहने से अल्जाइमर्स और पार्किंसंस जैसे रोगों का खतरा बढ़ता है। प्रदूषित वातावरण में बड़े होने वाले बच्चों का आइक्यू स्तर कम होता है, याददाश्त में बाधाएं आती हैं और एडीएचडी विकसित होने का जोखिम अधिक होता है। प्रदूषित वायु के दीर्घकालिक संपर्क में होने से कोर्टिसोल स्तर बढ़ता है, मूड नियंत्रण में बाधा आती है और यह क्रानिक तनाव का कारण बनता है।

    डिप्रेशन और चिंता का खतरा 40% तक ज्यादा

    डॉ. मिगलानी ने बताया कि दिल्लीवासियों में अवसाद और चिंता की दरें उन शहरों की तुलना में 30-40 प्रतिशत अधिक हैं, जहां एयर क्वालिटी इंडेक्स (एक्यूआई) स्तर कम है। सामाजिक अलगाव, बाहरी गतिविधियों में कमी और निरंतर स्वास्थ्य चिंता इन दुष्प्रभावों को और बढ़ा देती है।

    इमोनीड्स की मनोवैज्ञानिक फिजा खान का कहना है कि लोग अक्सर प्रदूषण को "फेफड़ों की समस्या" के रूप में देखते हैं, लेकिन इसका प्रभाव केवल फेफड़ों तक ही सीमित नहीं है, बल्कि यह मानसिक स्वास्थ्य पर भी गहरा असर डालता है । जब आसमान धुंधला होता है और दृश्यता कम होती है तो कई लोग असामान्य रूप से चिड़चिड़े, बेचैन, उदास या मानसिक रूप से थके हुए महसूस करते हैं। यह केवल उनके मन में नहीं होता । उच्च स्तर के वायु प्रदूषण के लंबे समय तक संपर्क में रहने से चिंता, अवसाद, एकाग्रता में कठिनाई और नींद में बाधा का खतरा बढ़ता है। प्रदूषक शरीर में सूजन और तनाव प्रतिक्रियाओं को उत्तेजित कर सकते हैं, जो मस्तिष्क के कार्य और भावनात्मक नियंत्रण को प्रभावित करते हैं।

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    (Image Source: Freepik)

    विशेषज्ञों ने प्रदूषण को बताया 'मेंटल हेल्थ इमरजेंसी

    सीताराम भरतिया इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस एंड रिसर्च के उप चिकित्सा अधीक्षक और बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. जितेंद्र नागपाल का कहना है कि दिल्ली के बच्चे दुनिया के सबसे प्रदूषित वातावरण में बड़े हो रहे हैं और इसका प्रभाव उनके फेफड़ों से कहीं अधिक है। बड़ी संख्या में व्यावहारिक और सीखने की समस्याएं जैसे एकाग्रता में कठिनाई, चिड़चिड़ापन और खराब शैक्षणिक प्रदर्शन कई बच्चों में देखी जा रही हैं।

    एम्स दिल्ली की मनोवैज्ञानिक डॉ. दीपिका दहिमा ने कहा कि वायु प्रदूषण संकट मानसिक स्वास्थ्य की आपात स्थिति के रूप में उतना ही गंभीर है जितना कि यह पर्यावरणीय है । प्रभावी हस्तक्षेप के लिए वायु गुणवत्ता प्रबंधन को मानसिक स्वास्थ्य ढांचे के साथ एकीकृत करना आवश्यक है। मानसिक स्वास्थ्य की रक्षा पर्यावरण नीतियों का केंद्रीय मानदंड होना चाहिए और साफ हवा को संज्ञानात्मक लचीलापन के लिए आवश्यक माना जाना चाहिए।

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