मोटापा बढ़ा सकता है अल्जाइमर का खतरा, सीधे दिमाग तक पहुंचता है फैटी टिश्यू का 'खतरनाक सिग्नल'
मोटापा शरीर में कई तरह की बीमारियां पैदा करती है लेकिन एक हालिया शोध ने इसके एक और चौंकाने वाले खतरे को उजागर किया है। दरअसल वैज्ञानिकों ने पाया है कि मोटापा सीधे तौर पर अल्जाइमर रोग का कारण बन सकता है। आइए विस्तार से जानते हैं इसके बारे में।

एजेंसी, नई दिल्ली। आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में मोटापा आम समस्या बन चुका है। यह न सिर्फ हमारे हार्ट, लिवर और जोड़ों पर असर डालता है, बल्कि अब वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि यह हमारे मस्तिष्क के लिए भी खतरनाक साबित हो सकता है। हाल ही में हुए एक अध्ययन में खुलासा हुआ है कि मोटापा अल्जाइमर जैसी गंभीर बीमारी का खतरा बढ़ा सकता है।
फैट टिश्यू भेजता है खतरनाक संदेश
वैज्ञानिकों ने पाया कि शरीर में मौजूद फैट टिश्यू यानी वसा ऊतक केवल चर्बी जमा नहीं करते, बल्कि वे शरीर के अलग-अलग हिस्सों से संवाद भी करते हैं। जब व्यक्ति मोटापे से ग्रस्त होता है, तो ये फैट टिश्यू माइक्रो वेसिकल्स के जरिए मस्तिष्क तक ऐसे रासायनिक संकेत भेजते हैं, जो मस्तिष्क की कोशिकाओं को नुकसान पहुंचा सकते हैं।
इन संकेतों के कारण मस्तिष्क में एमिलॉयड-बी नामक प्रोटीन जमा होने लगता है, जो अल्जाइमर रोग की प्रमुख पहचान माना जाता है। यही प्रोटीन धीरे-धीरे स्मृति और सीखने की क्षमता को कमजोर कर देता है।
ब्लड-ब्रेन बैरियर को पार कर जाता है खतरा
सामान्य तौर पर हमारा मस्तिष्क एक 'ब्लड-ब्रेन बैरियर' यानी सुरक्षा दीवार से सुरक्षित रहता है, लेकिन मोटापे की स्थिति में निकलने वाले ये हानिकारक वेसिकल्स इस दीवार को पार कर जाते हैं। यानी शरीर में जमा फैट अब सिर्फ पेट या जांघों तक सीमित नहीं रहता, बल्कि वह मस्तिष्क के अंदर तक पहुंचकर नुकसान कर सकता है। यह खोज यह दिखाती है कि मोटापा और मस्तिष्क के बीच एक गहरा जैविक संबंध है, जो अब तक विज्ञान के लिए पूरी तरह स्पष्ट नहीं था।
अध्ययन से मिली नई दिशा
यह अध्ययन "अल्जाइमर एंड डिमेंशिया: द जर्नल ऑफ द अल्जाइमर एसोसिएशन" में प्रकाशित हुआ है। इसे वैज्ञानिक स्टीफन वाग और उनकी टीम ने किया। उनका कहना है कि अमेरिका समेत कई देशों में डिमेंशिया (भूलने की बीमारी) के प्रमुख कारणों में अब मोटापे को भी शामिल किया जा सकता है।
शोध में पाया गया कि मोटे और सामान्य वजन वाले लोगों के वेसिकल्स में लिपिड (फैट के अणु) की संरचना अलग-अलग होती है। यही अंतर यह तय करता है कि एमिलॉयड-बी प्रोटीन कितनी तेजी से मस्तिष्क में जमा होगा। प्रयोगशाला में किए गए परीक्षणों में चूहों और मानव फैट सैंपल्स के जरिए यह प्रभाव स्पष्ट रूप से देखा गया।
क्या मोटापा कंट्रोल कर अल्जाइमर रोका जा सकता है?
शोधकर्ताओं का मानना है कि अगर भविष्य में इन सूक्ष्म संदेशवाहकों को लक्षित कर उनके हानिकारक संकेतों को रोका जाए, तो अल्जाइमर जैसी बीमारियों का खतरा कम किया जा सकता है। यानी अगर मोटापे से जुड़ी इस "फैट से मस्तिष्क तक" की बातचीत को बाधित किया जाए, तो यह दिमाग को सुरक्षित रखने का नया तरीका साबित हो सकता है।
हेल्दी वजन, हेल्दी ब्रेन
यह अध्ययन हमें एक गहरा संदेश देता है- मोटापा सिर्फ शरीर का नहीं, दिमाग का भी दुश्मन है। स्वस्थ खानपान, नियमित व्यायाम और सक्रिय जीवनशैली न सिर्फ शरीर को हल्का रखती है, बल्कि याददाश्त और मानसिक स्वास्थ्य को भी मजबूत बनाती है। कुल मिलाकर, अगर हम अपने वजन पर नियंत्रण रख सकें, तो शायद अल्जाइमर जैसी गंभीर बीमारी से भी एक कदम दूर रह सकें।
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