पति-पत्नी में अक्सर एक जैसी होती हैं Mental Health से जुड़ी परेशानियां, नई स्टडी ने खोला राज
आज कई लोग Mental Health पर खुलकर बात करने लगे हैं। इस बीच हाल ही में आई एक इंटरनेशनस स्टडी ने हैरान कर देने वाले नतीजे सामने रखे हैं। नेचर ह्यूमन बिहेवियर नामक पत्रिका में छपी इस रिसर्च में पता चला कि अगर एक पार्टनर को कोई मानसिक समस्या है तो दूसरे को भी वैसी ही या उससे मिलते-जुलते डिसऑर्डर होने का खतरा बढ़ जाता है।

लाइफस्टाइल डेस्क, नई दिल्ली। क्या आप जानते हैं कि आपके और आपके पार्टनर की मेंटल हेल्थ एक-दूसरे से काफी जुड़ी हो सकती है? एक बड़ी इंटरनेशनल स्टडी में कुछ ऐसा ही सामने आया है।
नेचर ह्यूमन बिहेवियर नामक जर्नल में पब्लिश हुई रिसर्च में ताइवान, डेनमार्क और स्वीडन के करीब 50 लाख मैरिड कपल्स का डेटा शामिल किया गया। इसमें पाया गया कि डिप्रेशन, एंग्जायटी, सिजोफ्रेनिया, एडीएचडी, नशे की लत और बाइपोलर डिसऑर्डर जैसी समस्याएं दंपतियों में अक्सर साझा रूप से पाई जाती हैं।
क्यों होता है ऐसा?
स्टडी में विशेषज्ञों ने इसके पीछे कई कारण बताए गए हैं। आइए जानें।
मिलती-जुलती सोच वाले पार्टनर चुनना
अक्सर लोग ऐसे पार्टनर चुनते हैं जिनसे उनका स्वभाव, आदतें और कभी-कभी मानसिक प्रवृत्तियां भी मिलती-जुलती हों।
एक जैसा माहौल
शादीशुदा जोड़े रोजमर्रा की जिम्मेदारियों, आर्थिक दबाव और पारिवारिक उलझनों को साथ झेलते हैं। यही साझा तनाव मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित करता है।
सामाजिक धारणाएं और सीमित विकल्प
मानसिक बीमारी से जूझ रहे लोगों के लिए विवाह के विकल्प अक्सर सीमित हो जाते हैं। ऐसे में, वे उन्हीं से विवाह कर लेते हैं जो किसी हद तक समान परिस्थितियों से गुजर रहे हों।
भारतीय संदर्भ में क्यों अहम है यह नतीजा?
भारत जैसे देश में जहां शादी सिर्फ दो लोगों का नहीं बल्कि पूरे परिवार का बंधन मानी जाती है, वहां यह निष्कर्ष और भी ज्यादा मायने रखता है।
जागरूकता और समय रहते पहचान
अगर एक पार्टनर डिप्रेशन, चिंता या नशे जैसी समस्या से जूझ रहा है, तो दूसरे पार्टनर को भी सावधान रहना चाहिए और शुरुआती लक्षणों पर ध्यान देना चाहिए।
स्टिग्मा कम करना जरूरी
भारत में मानसिक बीमारियों को लेकर अब भी शर्म और झिझक मौजूद है। अगर कपल इसे गंभीरता से लें और मदद लें, तो समस्या जल्दी काबू में आ सकती है।
शादी और काउंसलिंग
अरेंज मैरिज की परंपरा में अक्सर पार्टनर एक-दूसरे को गहराई से नहीं जानते। ऐसे में प्री-मैरिटल काउंसलिंग या शादी से पहले मेंटल हेल्थ पर खुली बातचीत मददगार हो सकती है।
बच्चों पर असर
अगर दोनों माता-पिता मानसिक बीमारी से ग्रस्त हों, तो बच्चों पर इसका खतरा और भी बढ़ जाता है। इसलिए शुरुआती इलाज और सही देखभाल से अगली पीढ़ी पर बोझ कम किया जा सकता है।
भारतीय शोध भी देते हैं सबूत
भारत में किए गए छोटे स्तर के शोध भी यही बताते हैं कि मानसिक बीमारियां शादीशुदा जीवन को गहराई से प्रभावित करती हैं।
एक अध्ययन में पाया गया कि शराब की लत से जूझ रहे पुरुषों की पत्नियों में से 65% को मानसिक समस्याएं थीं, खासकर चिंता और डिप्रेशन।
एक अन्य रिसर्च में यह सामने आया कि सिजोफ्रेनिया से ग्रसित मरीजों की शादीशुदा जिंदगी में संतोष का स्तर बाइपोलर डिसऑर्डर वाले मरीजों से कहीं कम था।
यह स्टडी हमें चेतावनी भी देती है और उम्मीद भी जगाती है। चेतावनी इसलिए कि मानसिक बीमारियां केवल व्यक्ति तक सीमित नहीं रहतीं, बल्कि पार्टनर और फैमिली तक भी फैल सकती हैं।
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Source: Nature Human Behaviour
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