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    कहीं आपका बच्चा भी तो नहीं सेपरेशन एंग्जाइटी का शिकार, इन लक्षणों से समय रहते करें पहचान

    Updated: Mon, 08 Sep 2025 08:38 PM (IST)

    आज पति-पत्नी दोनों का काम करना आम है। ऐसे में बच्चों को भावनात्मक रूप से सुरक्षित रखना चुनौती बनता जा रहा है। कामकाजी माता-पिता अक्सर इस बात को लेकर चिंतित रहते हैं कि उनका बच्चा उनसे अलग होने पर कैसा महसूस करेगा। बच्चों में होने वाली सेपरेशन एंग्जाइटी को लेकर सलाह दे रही हैं डॉ. मोना गुजराल।

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    बच्चों में अलगाव की चिंता कारण, लक्षण और समाधान (Picture Credit- Freepik)

    आरती तिवारी, नई दिल्ली। चार साल के करियर ब्रेक के बाद दोबारा आफिस जाने को तैयार हैं नेहा, बस चिंता एक ही है चार साल की बेटी तारा। नहाने के दौरान भी तारा दो से तीन बार बाथरूम का दरवाजा खटखटा जाती है या कुछ देर नजरों से दूर हो जाओ तो बिलख-बिलखकर रो पड़ती है। ऐसे में दिन के सात से आठ घंटे कैसे दूर रहेगी।

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    नेहा की मां तारा का ध्यान रखने के लिए तो हैं मगर तारा में सेपरेशन एंग्जाइटी कुछ अतिरिक्त है। नेहा जानती हैं कि अलगाव के कारण होने वाली यह एंग्जाइटी बच्चों के विकास का हिस्सा है, जो आमतौर पर आठ से 10 महीने की उम्र के बीच शुरू होती है और तीन साल की उम्र तक कम हो जाती है। हालांकि, कुछ बच्चों में यह डर आसानी से नहीं जाता। यह बढ़ सकता है, जिससे उनकी दिनचर्या में रुकावट आती है और परिवार के रिश्ते भी प्रभावित होते हैं।

    बड़ा खतरनाक है ये बच्चों के मन का डर

    बच्चों में अलगाव के कारण होने वाली एंग्जाइटी का एक स्तर कुछ समय के लिए होता है। जैसे जब आप बच्चे को डेकेयर या प्ले स्कूल छोड़ने जाते हैं तो कुछ देर तो वह वहां रोता है, मगर आपके जाते ही सहपाठियों के साथ रम जाता है। मगर कई बार यह एंग्जाइटी एक समय के बाद डिसआर्डर या विकार का रूप ले लेती है। यह इसके लिए बच्चों की तयशुदा उम्र से ज्यादा और लंबे समय तक रहने वाला डर है, जो हफ्तों या महीनों तक रहता है।

    इसमें बच्चा स्कूल जाने से मना कर सकता है, उसे अलग होने के बारे में बुरे सपने आ सकते हैं। लक्षण चार सप्ताह से ज्यादा समय तक बने रहते हैं, तो यह सामान्य से अलग है। अगर बच्चे की प्रतिक्रिया इतनी तेज है कि वह सामान्य गतिविधियों में हिस्सा लेने से मना कर देता है या बार-बार सिरदर्द, जी मिचलाना या ज्यादा थकान जैसी अवस्था हो तो यह स्थिति की गंभीरता के संकेत हैं। ऐसे में तुरंत किसी बाल मनोवैज्ञानिक या काउंसलर से सलाह लें।

    समझें उनकी भावनाएं

    बेहतर होगा कि आप सहानुभूति से बच्चे की भावना को पहचानें। उसे बताएं कि भले ही अभी आप जा रहे हैं मगर जल्द ही आप उसके पास होंगे या आपका काम पर जाना भी उतना ही जरूरी है। आप जब इस तरह से बच्चे की भावनाओं को समझते हैं तो बच्चे महसूस करते हैं कि आप उनकी भावनाओं को समझते हैं। आत्मविश्वास के साथ सुरक्षा का भरोसा देकर आप बच्चों में भी सहजता पैदा कर सकते हैं। अक्सर पैरेंट्स बच्चे के डर को सही मानते हुए उसे सांत्वना देने या अलविदा कहते समय ज्यादा देर रुकने की गलती कर बैठते हैं, लेकिन ऐसा करने से बच्चे का यह सोच मजबूत होता है कि अलग होना असुरक्षित है।

    सिर्फ बच्चों की बात नहीं

    अलगाव के कारण होने वाली एंग्जाइटी सिर्फ बच्चों में ही नहीं होती। माता-पिता भी बच्चे को छोड़ते समय अपराधबोध, चिंता या लाचारी महसूस करते हैं। अगर ये भावनाएं खुलकर जाहिर हों, तो बच्चे का डर और भी बढ़ सकता है। इसलिए बेहतर होगा कि आप अलविदा कहने का एक छोटा, निश्चित तरीका अपनाएं। जैसे गले लगकर अलविदा कहना। जब माता-पिता अपनी भावनाओं पर नियंत्रण रखते हैं, तो बच्चे भी इसे आत्मसात कर लेते हैं और समझते हैं कि अलग होना सामान्य और सुरक्षित है।

    ऐसे कराएं अभ्यास

    • शिशु और छोटे बच्चे (6 माह - 3 साल): कुछ मिनट के लिए दूसरे कमरे में जाएं और फिर वापस आ जाएं। इससे उनमें आपके वापस आने का भरोसा पैदा होता है।
    • प्री-स्कूल के बच्चे (3–5 साल): गुडबाय के बारे में कहानियां पढ़ने से वे इसे सामान्य तरीके से लेने लगते हैं।
    • स्कूल जाने वाले बच्चे (6+ साल): मिलकर इस बारे में बात करें कि जब वे आपको याद करते हैं, तो क्या करते हैं। आप उन्हें अपने साथ एक छोटा टोकन (जैसे परिवार की तस्वीर या उनके लंचबाक्स में एक नोट) दे सकते हैं।

    ध्यान रखें ये बातें

    • चुपके से न जाएं, ऐसा करना भरोसे को तोड़ता है।
    • अपने अपराधबोध को ज्यादा न दिखाएं।
    • बच्चे की भावनाओं को दबाएं नहीं, ‘रोना बंद करो, कुछ नहीं हुआ’ जैसे संवाद उन्हें दब्बू बना देंगे।
    • जब बच्चा अच्छे से पूरा दिन स्वयं को संभाले तो उसके प्रयास की प्रशंसा करें।

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