रोजमर्रा की चीजों के जरिए शरीर में जा रहा Microplastics, ऐसे कर सकते हैं इससे अपना बचाव
च्युइंगम चबाना भले ही बड़ा कूल लगता हो लेकिन क्या आपको पता है इससे हजारों की संख्या में माइक्रोप्लास्टिक निकलते हैं। इतना ही नहीं रोजाना इस्तेमाल होने वाली चीजों के जरिए भी माइक्रोप्लास्टिक हमारे शरीर के अंदर जा रहा है। अब सवाल ये है कि ये माइक्रोप्लास्टिक हमारी सेहत के लिए कितने खतरनाक हैं और इनसे बचने के क्या उपाय किए जा सकते हैं?

लाइफस्टाइल डेस्क, नई दिल्ली। हमारे आसपास कई लोग बड़े शौक से च्युइंगम खाते हैं। हालांकि, यह कई तरह से हमारी सेहत के लिए हानिकारक होते हैं। सैन डिएगो में पेश की गई एक रिसर्च में यह पता चला कि च्युइंगम से हजारों की संख्या में माइक्रोप्लास्टिक निकलते हैं।
ये माइक्रोप्लास्टिक च्युइंगम और रोजमर्रा की चीजों के जरिए हमारे शरीर में प्रवेश कर जाते हैं। इस बात को लेकर चिंता जाहिर की जा रही है कि जब इतनी मात्रा में हमारे शरीर में माइक्रोप्लास्टिक जा रहा है तो इससे सेहत को गहरा असर हो रहा होगा। ऐसे में आज इस आर्टिकल में हम आपको बताएंगे कि कैसे खुद को इससे बचा सकते हैं:-
माइक्रोप्लास्टिक हर जगह है
यह गिनती कर पाना असंभव है कि कितनी चीजों में प्लास्टिक है, लेकिन निश्चित रूप से ये ज्यादातर में होता है। सामानों की पैकेजिंग और इलेक्ट्रॉनिक्स से लेकर कपड़ों और मेडिकल डिवाइस तक में। वैसे तो प्लास्टिक बेहद ही उपयोगी मटेरियल है, लेकिन इसका एक बुरा पहलू भी है: माइक्रोप्लास्टिक। 5 मिलीमीटर से भी छोटे आकार के ये प्लास्टिक के टुकड़े, पर्यावरण और इंसानों के लिए चिंता का कारण बने हुए हैं।
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कहां से आते हैं ये माइक्रोप्लास्टिक?
इसके कई स्रोत हैं- सबसे बड़ा स्रोत है बड़े प्लास्टिक के छोटे-छोटे कण, जो आसानी से नजर भी नहीं आते। दूसरा सबसे बड़ा स्रोत है, सिंथेटिक कपड़े, कार के टायर, शहर में उड़ने वाली धूल, रोड के मार्किंग। माइक्रोप्लास्टिक का एक बड़ा ही कॉमन स्रोत है माइक्रोबेड्स। इनका इस्तेमाल आमतौर पर पर्सनल केयर प्रोडक्ट्स जैसे स्क्रबिंग वाले एजेंट्स, शावर जेल, क्रीम, पेस्ट में होता है।
कैसे इंसान माइक्रोप्लास्टिक के संपर्क में आते हैं?
- इसके तीन तरीके हैं- हम जो खाते-पीते हैं उनमें माइक्रोप्लास्टिक हो सकता है। ऐसा प्लास्टिक पैकेजिंग की वजह से है। जिस मिट्टी या खाद में माइक्रोप्लास्टिक का इस्तेमाल किया गया है, उनमें उगे हुए अनाज के जरिए भी ये हमारे शरीर में जा सकता है। प्लास्टिक के बर्तन और नॉन-स्टिक कुकवेयर भी खाने को दूषित कर सकते हैं।
- सांस के जरिए भी हम माइक्रोप्लास्टिक को अंदर ले सकते हैं, क्योंकि ये बेहद ही छोटे टुकड़ों में टूट जाता है। शहरों में चलने वाली हवा के जरिए ये हमारी सांस से अंदर आ सकता है, गाड़ी से निकलने वाले धुएं, कचरे वाले मैदानों और समंदर से उठने वाली लहरों से भी इनका प्रवेश करना संभव है।
- स्किन के संपर्क में आने से भी माइक्रोप्लास्टिक शरीर में जा सकता है। ये माइक्रोप्लास्टिक हेयर फॉलिकल्स, पसीने के ग्लैंड और स्किन के छोटे-मोटे जख्मों के जरिए भी प्रवेश कर सकता है।
क्या होता है जब माइक्रोप्लास्टिक शरीर में जाता है
- माइक्रोप्लास्टिक तो पूरे इंसानी शरीर में पाया जाता है, खून, लार, लिवर, किडनी, लंग्स और प्लासेंटा में। इसकी वजह से हार्ट अटैक, स्ट्रोक, सूजन और ब्लड क्लॉटिंग का खतरा बढ़ जाता है।
- माइक्रोप्लास्टिक में मौजूद केमिकल्स की वजह से काफी स्वास्थ्य समस्याएं हो सकती हैं- जैसे कैंसर, इम्यून सिस्टम का कमजोर हो जाना, री-प्रोडक्शन से जुड़ी परेशानी और बच्चों के विकास में देरी।
कैसे इससे बचा जा सकता है
- सबसे पहले तो सिंगल यूज प्लास्टिक की जगह री-यूजेबल प्रोडक्ट्स का इस्तेमाल करें।
- सिंथेटिक की जगह नेचुरल फाइर्ब्स चुनें।
- माइक्रोफाइर्ब्स को रोकने के लिए वॉटर फिल्टर का इस्तेमाल करें और प्लास्टिक की बोटल से पानी न पिएं। इनमें सबसे ज्यादा मात्रा में माइक्रोप्लास्टिक होता है।
- प्लास्टिक के कचरे को अच्छी तरह फेकें, ताकि वो माइक्रोप्लास्टिक न बना पाए।
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