Blood Cancer के खिलाफ स्वदेशी जीन थेरेपी बनी उम्मीद की नई किरण, 73% मरीजों में दिखा पॉजिटिव असर
कैंसर के खिलाफ लड़ाई में भारत को एक बड़ी सफलता मिली है। भारतीय वैज्ञानिकों द्वारा विकसित स्वदेशी जीन थेरेपी (Indigenous Gene Therapy) जिसे सीएआर-टी सेल थेरेपी कहा जाता है ब्लड कैंसर (Blood Cancer) के मरीजों के लिए एक नई आशा की किरण बनकर आई है। इस थेरेपी के शुरुआती नतीजे बेहद उत्साहित करने वाले हैं और यह सुलभ होने के साथ-साथ किफायती भी है।

एजेंसी, नई दिल्ली। Indigenous Gene Therapy: कैंसर से जंग में भारत ने एक बहुत बड़ी कामयाबी हासिल की है। दरअसल, भारतीय वैज्ञानिकों ने जीन थेरेपी विकसित की है, जो ब्लड कैंसर (Blood Cancer) से जूझ रहे मरीजों के लिए उम्मीद की एक नई किरण लेकर आई है। इस थेरेपी का नाम सीएआर-टी सेल थेरेपी है, और यह कैंसर के मरीजों को नई जिंदगी देने की ताकत रखती है।
सबसे अच्छी बात ये है कि ये थेरेपी ज्यादा महंगी भी नहीं है, जिससे ज्यादा से ज्यादा लोगों को इसका फायदा मिल सकेगा। हाल ही में एक मशहूर मेडिकल जर्नल में इस थेरेपी के परीक्षणों के नतीजे प्रकाशित हुए हैं, जो कि बहुत ही उत्साहजनक हैं। ब्लड कैंसर के 73 प्रतिशत मरीजों में इस थेरेपी का पॉजिटिव असर देखा गया है।
क्या कहती है रिसर्च?
जर्नल 'लैंसेट हेमेटोलाजी' में प्रकाशित क्लीनिकल ट्रायल के अनुसार, ब्लड कैंसर के 73% मामलों में यह थेरेपी असरदार साबित हुई है। यह थेरेपी विशेष रूप से ल्यूकेमिया (बोन मैरो कैंसर) और लिम्फोमा (लसीका तंत्र कैंसर) के मरीजों के लिए प्रभावी मानी जा रही है।
इस सफलता को "मेक इन इंडिया" और "आत्मनिर्भर भारत" के लिए भी एक महत्वपूर्ण उपलब्धि माना जा रहा है। यह थेरेपी आईआईटी-बॉम्बे, टाटा मेमोरियल अस्पताल और इम्यूनोएक्ट के संयुक्त प्रयासों से विकसित की गई है।
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कैसे काम करती है यह थेरेपी?
- सीएआर-टी सेल थेरेपी मरीज की टी-कोशिकाओं (प्रतिरक्षा कोशिकाओं) में विशेष जीन एडिटिंग के जरिए बदलाव करती है, जिससे वे कैंसर कोशिकाओं की पहचान कर उन्हें नष्ट कर सकती हैं।
- यह तकनीक शरीर की प्राकृतिक प्रतिरोधक क्षमता को मजबूत बनाकर कैंसर से लड़ने में मदद करती है और बीमारी के दोबारा होने की संभावना को भी कम करती है।
दूसरी थेरेपी से सस्ती और प्रभावी
यह थेरेपी दुनियाभर में मौजूद अन्य सीडी19 सीएआर-टी सेल थेरेपी की तुलना में दस गुना सस्ती है।
- इसकी कीमत मात्र 30,000 अमेरिकी डॉलर (करीब 26 लाख रुपये) है, जबकि अन्य देशों में यह थेरेपी करोड़ों में होती है।
- यह निम्न और मध्यम आय वाले देशों के मरीजों के लिए भी एक उम्मीद बन सकती है।
कैसे किया गया क्लीनिकल ट्रायल?
- पहला चरण: 18 साल से अधिक उम्र के 14 मरीजों पर परीक्षण किया गया।
- दूसरा चरण: 15 साल से अधिक उम्र के 50 मरीजों को यह थेरेपी दी गई।
अध्ययन में शामिल कुल 64 मरीजों में से 73% पर सकारात्मक प्रभाव देखा गया।
क्या कहते हैं वैज्ञानिक?
आईआईटी बॉम्बे के प्रोफेसर राहुल पुरवार का कहना है कि यह थेरेपी उन मरीजों को जीवन का दूसरा मौका दे सकती है जिन पर अन्य इलाज काम नहीं करता।
टाटा मेमोरियल अस्पताल के प्रोफेसर डॉ. हसमुख जैन ने बताया कि यह थेरेपी सस्ती और लंबे समय तक असरदार रह सकती है।
भारत में विकसित सीएआर-टी सेल थेरेपी ब्लड कैंसर के इलाज में एक क्रांतिकारी बदलाव ला सकती है। इसके सकारात्मक नतीजे और किफायती दाम इसे वैश्विक स्तर पर भी बेहद महत्वपूर्ण बनाते हैं। यह थेरेपी ब्लड कैंसर के मरीजों को नई जिंदगी देने के साथ-साथ भारत को बायोटेक्नोलॉजी के क्षेत्र में अग्रणी बनाने में मदद करेगी।
इनपुट- पीटीआई
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