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    मोटापा बिगाड़ रहा है युवाओं की सेहत, सुधार करने के लिए अपनानी पड़ेगी भारतीय आहार-विहार परंपरा

    हर तरफ चर्चा है मोटापे से बिगड़ती सेहत की मगर इसे सुधारने के लिए कोई पहाड़ नहीं तोड़ना है। इसके लिए किसी की देखादेखी यूं ही किसी भी डाइट चार्ट के पीछे नहीं भागना है। डॉ. मिक्की मेहता के अनुसार आहार-विहार की पारंपरिक भारतीय जीवनशैली अपनाकर भी आप संतुलित कर सकते हैं सेहत का पलड़ा। आइए जानें मोटापे से बचने के लिए क्या करें।

    By Jagran News Edited By: Swati Sharma Updated: Mon, 17 Mar 2025 01:48 PM (IST)
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    मोटापे के खिलाफ जंग में मदद करेंगी पारंपरिक भारतीय जीवनशैली (Picture Courtesy: Freepik)

    डॉ. मिक्की मेहता, नई दिल्ली। बीते पखवाड़े प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भारत में बढ़ते मोटापे की समस्या को एक बार फिर रेखांकित करते हुए कहा कि ‘यह तमाम बीमारियों की जड़ है।’ भारत में ओवरवेट और मोटापे के शिकार लोगों की संख्या में तेजी से वृद्धि हो रही है।

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    आशंका है कि वर्ष 2050 तक 44 करोड़ भारतीय मोटापे की गिरफ्त में होंगे। समय रहते जीवनशैली न बदली तो इनमें भी हम युवाओं में मोटापे की श्रेणी में चीन को भी पछाड़ देंगे। जिन देशों में मोटापा पहले से ही अपने चरम पर है, वहां मोटापे और उससे जुड़ी जीवनशैली की स्थितियों के नैदानिक प्रबंधन और उपचार संबंधी निवेश के लिए राष्ट्रीय स्तर पर नीतियां बनाई जानी चाहिए। दो दशकों से मोटापे के वैश्विक स्वास्थ्य एजेंडे में होने के बावजूद केवल 40 प्रतिशत देशों, जिनमें से 10 प्रतिशत निम्न और मध्यम आयवर्ग के देश हैं, में ही ऐसी नीतियां हैं।

    नीतियों से इतर व्यक्तिगत रूप से देखें तो मोटापे का उपचार दो तरह से हो सकता है। पहला, स्वस्थ जीवनशैली को अपनाकर इसे पनपने, बढ़ने और बीमारी का रूप लेने से पहले ही जड़ से कुचल दिया जाए। अथवा दूसरा, महंगी दवाओं, इलाज और सर्जरी पर अपनी गाढ़ी कमाई का वह पैसा खर्च किया जाए, जो आपकी जिंदगी को किसी और रूप में बेहतर बना सकता था।

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    परंपराओं में थी सही पोषण की विधि

    वेट लास, यानी हमारे शरीर में जो अतिशय वजन बढ़कर हमारे ही शरीर पर बोझ बन जाता है उस भार को पिघलाना। वजन हमारा दुश्मन नहीं है। हां, जब वो बोझ बनता है तो बीमारियां लाता है। अति और गति ये दोनों चीजें इंसान के लिए हानिकारक हो सकती हैं। खाने से मोह और इसकी अति वजन बढ़ा देती है।

    इन दिनों वन मील ए डे (ओएमएडी), वारियर डाइट से लेकर तमाम तरह की इंटरमिटेंट डाइट प्रचलन में हैं। जबकि भारतीय परंपरा में तो वन मील ए डे का अभ्यास सदा से होता आया है, जहां पर लोग जीने के लिए भोजन करते थे, भोजन के लिए नहीं जीते थे। ओएमएडी प्लान में हमारे शरीर की पाचन शक्ति को खाना पचाने के लिए कई घंटे मिलते हैं।

    भोजन से जरूरी तत्व सोखने और उससे अपशिष्ट बाहर निकालने के लिए शरीर बड़े सुकून से ऊर्जा बचाकर भोजन पचाता है। आमतौर पर लोग दोपहर का भोजन पचने से पहले ही शाम को फास्टफूड या हैवी स्नैकिंग कर लेते हैं। जो भोजन पचता नहीं है, वह भोजन हमारे शरीर पर नकारात्मक प्रभाव छोड़ जाता है। इसी से मोटापे का जन्म होता है।

    भोजन का क्या है श्रेष्ठ समय

    संतुष्टि और संतुलन के लिए दिन में एक बार भोजन करें, वह भी दोपहर में 10 से दो बजे के बीच, जब पाचन शक्ति शिखर पर होती है। 12 बजे यह पित्तकाल सबसे तेज होता है। उस काल में जो भोजन करता है, उसमें कहा जाता है कि विष भी अमृत बन सकता है। तो दोपहर का एक भोजन करें, बाकी सुबह फल, अंकुरित दालें आदि खा सकते हैं और शाम को सूप या काढ़ा पी सकते हैं।

    इस तरह किया गया आंतरिक उपवास आपको स्वच्छ रखता है और उसकी वजह से आप स्वस्थ रहते हैं। बच्चों को भी ऐसे जीवन की साधना कराई जाए तो वे भी बेहतर स्वास्थ्य पा सकते हैं। अंदर से हल्के रहेंगे तो मन हल्का रहेगा और मन हल्का रहेगा तो मानसिक पीड़ाएं जकड़कर नहीं रख सकती हैं। जैन मत में इसको आयंबिल कहते हैं, जहां सूर्यास्त के बाद खाना नहीं खाते।

    स्वस्थ रहने का सरल संकल्प

    भारतीयों में मोटापा इस वजह से भी आया है क्योंकि हमने अतिशय चिकनाई और मैदा खाना शुरू कर दिया है। पैकेटबंद भोजन, प्रोसेस्ड, फ्लेवर्ड भोजन खाना आरंभ कर दिया है। हम सूर्योदय से पूर्व उठना भूल चुके हैं और रात्रिचर जीवों की तरह जागने लग गए हैं। इससे हमारी बाडी क्लाक का संतुलन डगमगा गया है। अगर हम अपने ऋषि-मुनियों की परंपरा में लीन हो जाएं तो हर भारतीय स्वच्छ हो जाएगा, स्वस्थ हो जाएगा, उसको सिद्धि हो जाएगी, उसमें संकल्प आ जाएगा और वो समृद्ध हो जाएगा।

    इसी तरह हमारी दिनचर्या में योग अभ्यास शामिल हो, स्वस्थ रखने के लिए हम साइकिलिंग की परंपरा को अपना लें, जिसमें बच्चे स्कूल-कालेज और वयस्क काम पर साइकिल से ही जाएं। इससे सेहत में सुधार तो होगा ही, ईंधन की खपत भी कम होगी और पर्यावरण स्वच्छ भी रहेगा!

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    बीएमआई पर सवाल

    मोटापे का आकलन करने के लिए बाडी मास इंडेक्स (बीएमआई) की गणना पर भरोसा किया जाता रहा है। बीएमआई एक मेडिकल स्क्रीनिंग टूल है जो किसी व्यक्ति के शरीर में वसा की मात्रा का अनुमान लगाने के लिए उसकी लंबाई और उसके वजन के अनुपात को मापता है। मगर हाल ही में प्रतिष्ठित मेडिकल जर्नल द लैंसेट डायबिटीज एंड एंडोक्रिनोलाजी ने कहा है कि बीएमआई सही परिणाम नहीं देता है। डाक्टरों को कम से कम एक अन्य शारीरिक माप, उदाहरण के लिए कमर की परिधि या शरीर की चर्बी को मापकर यह पुष्टि करनी चाहिए कि किसी व्यक्ति को मोटापा है या नहीं।

    वर्तमान परिभाषा कहती है कि 30 किलोग्राम प्रति वर्ग मीटर और उससे अधिक बीएमआई वाले व्यक्ति को मोटा माना जा सकता है। मगर लैंसेट के अनुसार, अतिरिक्त शारीरिक चर्बी वाले लोगों का बीएमआई हमेशा 30 से ऊपर नहीं होता है, जिसका अर्थ है कि उनके स्वास्थ्य संबंधी खतरे पर किसी का ध्यान नहीं जा सकता है। इसी प्रकार, उच्च मांसपेशी द्रव्यमान वाले लोगों, जैसे एथलीट में सामान्य वसा द्रव्यमान के बावजूद उच्च बीएमआई होता है और उन्हें मोटापे या बीमारी से ग्रस्त बताना ठीक नहीं है।

    लैंसेट के शोध में कहा गया है कि मोटापे के निदान के लिए केवल बीएमआई पर निर्भर रहना समस्याजनक है, क्योंकि कुछ लोगों में कमर पर या उनके आंतरिक अंगों जैसे कि लीवर, हृदय या मांसपेशियों के आस-पास अतिरिक्त चर्बी जमा हो जाती है और यह तब की तुलना में स्वास्थ्य के खतरे से अधिक जुड़ा है, जब अतिरिक्त चर्बी हाथों, पैरों या शरीर के अन्य हिस्सों में त्वचा के ठीक नीचे जमा होती है। लैंसेट के मुताबिक भारत में पेट का मोटापा बहुत आम है। बीएमआई माप पर आधारित मौजूदा मानदंड अक्सर इसे वर्गीकृत करने में विफल रहते हैं। नया वर्गीकरण इस समस्या को दूर करने में मदद करेगा!

    आर्थिकी पर दबाव

    अधिक वजन या मोटापे से ग्रस्त के रूप में वर्गीकृत आधे से अधिक वयस्क निम्न आठ देशों में रहते हैं (देखें चार्ट)। लैंसेट रिपोर्ट के निष्कर्षों के अनुसार, 34.6 करोड़ अमेरिकियों में से 17.2 करोड़ (49.71 प्रतिशत) अधिक वजन वाले या मोटापे से ग्रस्त हैं, जबकि 1.45 अरब भारतीयों में से 18 करोड़ (12.41 प्रतिशत) इस श्रेणी में आते हैं।

    बीमारी का दरवाजा

    विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के अनुसार मोटापा कई गैर-संचारी रोगों (एनसीडी) के लिए दरवाजा है, जिसमें टाइप-टू मधुमेह, हृदय रोग, उच्च रक्तचाप, स्ट्रोक और विभिन्न प्रकार के कैंसर शामिल हैं। इससे प्रभावी ढंग से निपटने के लिए स्वास्थ्य सेवा, खाद्य वातावरण, सार्वजनिक नीतियों और सामाजिक संरचनाओं सहित विभिन्न क्षेत्रों में सुधार की आवश्यकता है, ताकि सभी के लिए एक स्वस्थ भविष्य बनाया जा सके।

    (लेखक फिट इंडिया मूवमेंट के ब्रांड एंबेसडर हैं)

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