राहत की खबर! Ebola Virus का काल बनेगी एक छोटी-सी गोली, बंदरों पर सफल परीक्षण ने जगाई नई उम्मीद
ये बात तो हम सभी जानते हैं कि इबोला वायरस (Ebola Virus) कितना खतरनाक है लेकिन अच्छी खबर ये है कि हाल ही में एक अध्ययन में पाया गया कि एक खास गोली के जरिए इबोला से संक्रमित बंदरों का सफलतापूर्वक इलाज किया जा सकता है। यह खोज भविष्य में इस घातक वायरस से लड़ने के तरीके को पूरी तरह बदल सकती है। आइए जानें।

लाइफस्टाइल डेस्क, नई दिल्ली। अमेरिका की यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्सास मेडिकल ब्रांच के वायरोलॉजिस्ट थॉमस गीसबर्ट और उनकी टीम ने यह अध्ययन साइंस एडवांसेज पत्रिका में प्रकाशित किया। उन्होंने Ebola Virus के इलाज के लिए ओबेल्डेसिविर नामक एंटीवायरल दवा का परीक्षण किया। यह दवा रेमडेसिविर का ओरल फॉर्म है, जिसे पहले कोविड-19 के इलाज के लिए विकसित किया गया था।
शोधकर्ताओं ने रहसस मैकाक और साइनोमोलगस मैकाक प्रजाति के बंदरों को इबोला वायरस के मैकोना वेरिएंट की उच्च मात्रा से संक्रमित किया। इसके बाद 10 बंदरों को रोजाना ओबेल्डेसिविर की गोली दी गई, जबकि तीन बंदरों को कोई उपचार नहीं दिया गया और वे सभी मर गए।
गोली ने कितना असर दिखाया?
- 80% साइनोमोलगस मैकाक बंदर इस गोली से बच गए।
- 100% रहसस मैकाक बंदर, जो जैविक रूप से मनुष्यों के अधिक करीब हैं, पूरी तरह सुरक्षित रहे।
हालांकि इस अध्ययन में कम संख्या में बंदरों का इस्तेमाल किया गया था, लेकिन शोधकर्ताओं के अनुसार इसके आंकड़े काफी प्रभावशाली हैं। इस परीक्षण में बंदरों को इंसानों के लिए घातक मानी जाने वाली खुराक से 30,000 गुना अधिक वायरस दिया गया था, फिर भी गोली ने उन्हें बचा लिया।
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दवा की सबसे बड़ी खासियत
अन्य एंटीबॉडी उपचार केवल जैरे स्ट्रेन पर असर दिखाते हैं, लेकिन ओबेल्डेसिविर का प्रभाव कई तरह के इबोला वायरस पर देखा गया है। यह इसका सबसे बड़ा फायदा माना जा रहा है। अध्ययन में बताया गया कि यह दवा रोग प्रतिरोधक क्षमता को विकसित करने में मदद कर सकती है और साथ ही शरीर में होने वाली गंभीर सूजन को रोकने में भी सक्षम है।
गरीब देशों में कारगर साबित हो सकती है दवा
इबोला आमतौर पर सहारा के दक्षिणी अफ्रीकी देशों में फैलता है, जहां स्वास्थ्य सुविधाएं सीमित हैं। एंटीबॉडी उपचार को स्टोर करने के लिए महंगे कोल्ड स्टोरेज की जरूरत होती है, जो इन इलाकों में संभव नहीं है। ऐसे में एक गोली के रूप में उपलब्ध दवा बहुत ज्यादा प्रभावी साबित हो सकती है।
थॉमस गीसबर्ट के अनुसार, उनकी टीम एक ऐसी दवा विकसित करने की कोशिश कर रही थी जो आसान, सस्ती और अधिक व्यावहारिक हो। अब, इस शोध के सकारात्मक परिणामों के आधार पर अमेरिकी फार्मा कंपनी गिलियड ने ओबेल्डेसिविर को मरबर्ग वायरस (जो इबोला का करीबी रिश्तेदार है) के लिए फेज-2 क्लिनिकल ट्रायल में शामिल कर लिया है।
इबोला वायरस क्या है?
इबोला एक वायरल हेमोरेजिक फीवर है, जिसे सबसे पहले डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कांगो (DRC) में खोजा गया था। वैज्ञानिकों का मानना है कि यह वायरस फल खाने वाले चमगादड़ से फैलता है, जो खुद इस बीमारी से प्रभावित नहीं होते, लेकिन इसे प्राइमेट्स (बंदरों और इंसानों) में फैला सकते हैं।
अब तक इबोला वायरस की छह प्रजातियां खोजी जा चुकी हैं, जिनमें से तीन – जैरे, सूडान और बुंडीबुग्यो – अफ्रीका में गंभीर महामारी फैला चुकी हैं। बीते 10 वर्षों में जैरे स्ट्रेन सबसे खतरनाक साबित हुआ है।
क्या यह खोज इबोला को मात दे सकती है?
अगर यह दवा इंसानों पर भी उतनी ही प्रभावी साबित होती है जितनी कि बंदरों पर, तो यह इबोला के खिलाफ सबसे बड़ी सफलता साबित हो सकती है। एक साधारण गोली के रूप में उपलब्ध यह दवा भविष्य में इबोला के प्रकोप को रोकने और नियंत्रित करने में मदद कर सकती है।
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