बिल्ली का लगातार म्याऊं-म्याऊं करना है डिमेंशिया का लक्षण, स्टडी में सामने आई सच्चाई
आजकल की भागदौड़ भरी जिंदगी में ब्रेन हेल्थ को नजरअंदाज कर दिया जाता है जिससे डिमेंशिया का खतरा बढ़ जाता है। हालांकि ये तो इंसानों की बात हो गई लेकिन एक रिसर्च में पता चला है कि बिल्लियों में भी डिमेंशिया इंसानों की तरह ही होता है। वैज्ञानिकों ने बिल्लियों के दिमाग में जहरीला प्रोटीन पाया जो अल्जाइमर में भी पाया जाता है।

लाइफस्टाइल डेस्क, नई दिल्ली। आजकल की भागदौड़ भरी जिंदगी में लोग ब्रेन हेल्थ को नजरअंदाज कर देते हैं। लगातार फोन चलाना और देर रात तक जगना, हमारे दिमाग के लिए बिल्कुल भी सही नहीं है। जब हमारे दिमाग को आराम नहीं मिल पाता है तो इससे स्ट्रोक और डिमेंशिया का खतरा बढ़ जाता है। आमतौर पर आपने ये बीमारी इंसानों में ही देखी होगी। शायद ही कोई होगा जो ये जानता होगा कि डिमेंशिया का खतरा इंसानों के साथ-साथ बिल्लियों को भी होता है।
जी हां, ऐसा हम नहीं, बल्कि यूनिवर्सिटी ऑफ एडिनबर्ग की रिसर्च बता रही है। शोधकर्ताओं ने 25 बिल्लियों के दिमाग का पोस्टमार्टम किया। ये सभी बिल्लियां पहले से डिमेंशिया जैसे लक्षण दिखा रहीं थीं। रिसर्च में पता चला कि बिल्लियों में डिमेंशिया (भूलने की बीमारी) इंसानों की तरह ही डेवलप होती है।
बिल्लियों में भी नजर आते हैं कई लक्षण
इस पर वैज्ञानिकों का कहना है कि ये खोज इंसानों और बिल्लियों, दोनों के लिए नए इलाज के रास्ते तलाशने में मदद कर सकती है। आपको बता दें कि इस स्टडी को यूरोपियन जर्नल ऑफ न्यूरोसाइंस (European Journal of Neuroscience) में प्रकाशित किया गया है। स्टडी के मुताबिक, बिल्लियों में भी डिमेंशिया के कुछ आम लक्षण नजर आते हैं।
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ये हैं लक्षण
- उलझन (कंफ्यूजन)
- नींद के समय में गड़बड़ी
- ज्यादा बार म्याऊं-म्याऊं करना
- लिटर बॉक्स (टॉयलेट) का इस्तेमाल भूल जाना
दिमाग में जमा था खतरनाक प्रोटीन
रिसर्च में वैज्ञानिकों ने माइक्रोस्कोप की मदद से देखा कि बिल्लियों के दिमाग में एमाइलॉइड-बीटा प्लाक्स जमा हो गए थे। जो कि एक जहरीला प्रोटीन होता है। ये दिमाग के संदेश पहुंचाने और याद रखने की क्षमता को नुकसान पहुंचाता है। यही प्रोटीन अल्जाइमर (Alzheimer’s) बीमारी में भी पाया जाता है। जो इंसानों में डिमेंशिया का सबसे आम कारण है। स्टडी के लेखक रॉबर्ट मैकगीचन के मुताबिक, ये नतीजे दिखाते हैं कि बिल्लियों का डिमेंशिया और इंसानों का अल्जाइमर एक-दूसरे से काफी मिलता-जुलता है।
इलाज में जागी नई उम्मीद
बिल्लियों में ये दिमागी बदलाव नेचुरली होता है। वे बीमारी को समझने के लिए इंसानों के मुकाबले बेहतर मॉडल साबित हो सकती हैं। आमतौर पर वैज्ञानिक डिमेंशिया पर रिसर्च के लिए ऐसे चूहों का इस्तेमाल करते हैं, जिन्हें जेनेटिकली बदला गया होता है, लेकिन उनमें ये बीमारी नेचुरली नहीं आती है। फीलाइन मेडिसिन की प्रोफेसर डेनिएल गन-मूर के मुताबिक, बिल्लियों में डिमेंशिया अल्जाइमर को समझने के लिए एक परफेक्ट नेचुरल मॉडल है।
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इंसानों के अल्जाइमर के इलाज में मिलेगी मदद
इससे बीमारी के बढ़ने की प्रक्रिया को समझने और भविष्य में नए इलाज को विकसित करने में मदद मिल सकती है। इस पर रिसचर्स का कहना है कि इससे न सिर्फ इंसानों के अल्जाइमर के इलाज में मदद मिलेगी, बल्कि बिल्लियों के डिमेंशिया का भी बेहतर इलाज संभव हो पाएगा। ये बीमारी बिल्ली और उसके मालिक दोनों के लिए बहुत परेशान करने वाली होती है।
Source-
- https://onlinelibrary.wiley.com/doi/10.1111/ejn.70180
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