जीवन देने वाली हवा अब छीन रही है जान! कैसे बढ़ते वायु प्रदूषण से कर सकते हैं अपना बचाव
इस बार बरसात ने दिखा दिया कि जब पानी बेकाबू होता है तो कैसी तबाही मचती है, अब बारी वायु के कसैलेपन की है। कभी जीवन देने वाली प्राणवायु अब जीवन छीनने लगी है, क्यों ले रही है प्रकृति मनुष्य से प्रतिशोध, बता रहे हैं अनिल प्रकाश जोशी।

ज़हरीली हवा: बढ़ते प्रदूषण से कैसे सुरक्षित रहें? (Picture Credit- Free
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। प्रकृति कितनी हमारे साथ है, यह बात अब हम सबको साफ हो ही चुकी है। हमने जंगल, हवा और पानी— इन तीनों का बहुत तिरस्कार किया है। हमने पृथ्वी को तो लगभग समाप्त कर ही दिया, लेकिन समुद्र और आकाश को भी नहीं छोड़ा। यही कारण है कि आज प्रकृति के सभी तत्व गहरी चिंताजनक स्थिति में पहुंच चुके हैं। हमने यह समझने की कोशिश ही नहीं की कि इन बिगड़ते हालात का सीधा और गंभीर प्रभाव किस पर पड़ेगा। यह जानकारी केवल अध्ययनों, शोध पत्रों और अखबारों तक सीमित रह गई। शोर-शराबे के बावजूद हमने कभी गंभीरता से उन बातों को नहीं लिया, जिनसे हमारा शरीर वर्तमान और आने वाले समय में किसी न किसी रूप में प्रभावित होता रहेगा।
खतरे में प्राणवायु
इस बार की बारिश ने यह साफ कर दिया कि पानी के उग्र रूप का क्या अर्थ होता है। देश में जिस तरह से पहाड़ों से लेकर समुद्र तट तक पानी ने कोहराम मचाया, वह एक बड़ा और स्पष्ट संकेत था, लेकिन अब आने वाली चिंता वायु को लेकर है, क्योंकि अब वह समय है जब हम प्राणवायु को दूषित करना शुरू कर चुके हैं। अक्टूबर से शुरू हुआ मौसमी परिवर्तन सीधे प्राणवायु पर असर डालेगा। दशहरा, दीपावली और पराली, सब मिलकर जलाने की समस्या हर वर्ष की तरह इस बार अपना असर दिखाने लगी है। हमारे तमाम पर्यावरणीय अभियानों और जनजागरूकता के बावजूद समाजजनित प्रदूषण को गंभीरता से समझ नहीं पाए हैं। पराली को लेकर भी सामाजिक और राजनीतिक खींचतान लगातार बनी हुई है, इसलिए यह नहीं लगता कि हम अपनी प्राणवायु को बचा पाएंगे।
सबसे घातक है वायु प्रदूषण
अगर हम प्रकृति के सभी तत्वों को देखें और उनका संबंध अपने स्वास्थ्य से जोड़ें, तो सबसे अधिक घातक प्रभाव डालने वाला तत्व वायु ही है। इसी कारण इसका नाम प्राणवायु रखा गया है। हम लंबे समय तक प्रदूषित वातावरण में जीते रहते हैं और कोई तत्काल असर महसूस नहीं करते, लेकिन अचानक हमारे शरीर में प्रतिकूल स्वास्थ्य संकेत प्रकट होने लगते हैं। प्राणवायु का असर हमारे श्वसन तंत्र और हृदयवाहिकीय तंत्र पर सीधा पड़ता है। यह अजीब बात है कि सब कुछ जानते हुए भी हमने अपने व्यवहार में कोई परिवर्तन नहीं किया।
धुंध, धुआं और स्मॉग की मार
एक दशक से वायु प्रदूषण का प्रकोप बढ़ता ही जा रहा है। इस वर्ष स्थिति और गंभीर हो सकती है, क्योंकि लगातार लंबे समय तक हुई वर्षा ने तापमान को निम्न रखा है, जिससे धुंध बढ़ेगी और फिर स्माग बड़ी मार देगा।
घर के अंदर घटाएं प्रदूषण
अब समय आ गया है कि हम अपने स्तर पर भी कुछ कदम उठाएं क्योंकि अगर वायु प्रदूषण से जीवन खत्म होना है, तो वह हमारा ही होगा। पहला कदम है कि हम अपने घरों को बाहरी प्रदूषित हवा से बचाएं। जब तक आवश्यकता न हो, खिड़कियां और दरवाजे बंद रखें। यह कदम अपने आप में घर के अंदर के वायु प्रदूषण को लगभग 30 प्रतिशत तक कम कर सकता है।
उठाने होंगे ये कदम
अक्टूबर अंत से फरवरी तक बाहर निकलते समय मास्क का प्रयोग करें, क्योंकि एन-95 ग्रेडिंग मास्क पीएम- 5, 10 और पीएम-2.5 जैसे कणों को शरीर में जाने से रोकता है। घर की सफाई से निकली धूल को सड़कों पर न फेंकें, क्योंकि वही धूल वाहनों के चलने से उड़कर वापस हमारे घरों और शरीर में प्रवेश कर जाती है। साथ ही, इस दौर में केवल शौक के लिए लकड़ी से खाना पकाने, हीटिंग या जलाने से भी बचें, क्योंकि घर के अंदर यह प्रदूषण का एक बड़ा कारण बन जाता है।
हरियाली ही अंतिम उपाय
हमें अपने घर और आसपास अधिक से अधिक हरियाली बढ़ाने की कोशिश करनी चाहिए, क्योंकि पौधे वायु प्रदूषण को अवशोषित करके वातावरण को स्वच्छ बनाते हैं। अब तो ऐसे पोधे भी उपलब्ध हैं जिनका उपयोग प्रदूषण नियंत्रण के लिए किया जा सकता है। इसके साथ ही जहां तक संभव हो, पैदल चलें या साइकिल का उपयोग करें। यह न केवल प्रदूषण कम करेगा बल्कि हमारे स्वास्थ्य के लिए भी लाभकारी होगा। इस समय निर्माण कार्यो से भी बचें। यह स्पष्ट है कि अब हमें व्यक्तिगत रूप से भी कदम उठाने होंगे, क्योंकि पर्यावरण और प्रकृति केवल सरकार की जिम्मेदारी नहीं होती तब जबकि इसका नियंत्रण स्वयं लोगों के हाथ में हो। यही सबसे बड़ा और प्रभावी कदम होगा।

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